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________________ ७०४ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : प्रादि पशुओं की उत्तम नस्ल के लिये उत्तम जाति के सांड आदि की प्रावश्यकता होती है। वर्तमान में भारत सरकार ने उत्तम नस्ल के सांड आदि हर एक जिले व तहसील में रक्खे हैं जिससे उत्तम नस्ल की गऊ प्रादि की उत्पत्ति हो। सहारनपुर में घोड़ों का सरकारी रिमाउंट डिपो है। उसमें उन घोड़े और घोड़ी का मिलान नहीं कराया जाता जो सात पीढ़ी ( Pedigrees ) से या उससे कम से फंटे हुए हैं, क्योंकि इनके मेल से उत्तम नस्ल का घोड़ा उत्पन्न नहीं होगा। इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि रज व वीर्य जिससे शरीर बनता है, का असर जीव के विचारों पर पड़ता है। (२) एक क्षत्रिय के रण में जाते समय परिणामों में कुछ कायरता आ गई, उसने अपनी माता से पूछा कि मेरा जन्म किसके वीर्य से हआ है। माता ने उत्तर दिया कि तेरा जन्म तो तेरे पिता के वीर्य से ही हमा है। किन्तु जब तू बच्चा था और रोने लगा था तो एक बार धाय ने तुझे चुप करने के लिए अपना दिया था। उस दूध के कारण तेरे परिणामों में कायरता आई है। इससे स्पष्ट है कि धाय के दूध का कितना असर उच्च कुली के परिणामों पर पड़ा। (३) वीर अभिमन्यु ने चक्रव्युह की रचना गर्म अवस्था में सीखी थी इससे यह सिद्ध होता है कि माता पिता के विचारों का असर बच्चे के विचारों पर पड़ता है। (४) संमति का भी असर परिणामों पर पड़ता है। (५) एक नगर के मनुष्य क्रूर परिणामी थे। कारण की जांच करने पर ज्ञात हुआ कि नगर के आसपास कसाई खाने (Slaughter house ) हैं इसीलिये इस नगर के मनुष्य ऋर परिणामी होते हैं। इस प्रकार क्षेत्र का असर भी परिणामों पर पड़ता है। अतः जिनका जन्म उच्च कुलीन स्त्री-पुरुषों के रजोवीर्य से न हुआ हो, जिनका खान-पान उत्तम न हो, जिनकी संगति व निवासस्थान (क्षेत्र ) उत्तम न हो ऐसे जीवों के परिणाम उत्तम नहीं हो सकते, उनके हाथ का भोजन या जल नहीं ग्रहण करना चाहिये। उच्छिष्ट भोजन, अशुद्ध भूमि में पडया भोजन, म्लेच्छादिकनि कर स्पाभोजन व पान, अस्पृश्य शूद्र का लाया जल, शद्रादिक का किया भोजन, अयोग्य क्षेत्र में घरचा भोजन, मांस भोजन करनेवाले का भोजन, नीचकूल के गृहनि में प्राप्त भया भोजन जलादिक अनुपसेव्य है। (भगबती आराधनासार, पृ० ६७५)। -जं. सं. 10-4-58/VI/ उ. च. देवराज, दोउल देशव्रत प्रथम प्रतिमाधारी अन्याय व अमक्ष्यसेवन नहीं करता शंका-रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक १३७ में जो लक्षण पहली प्रतिमा का दिया है, उसके अनुसार उसमें अन्याय और अभक्ष्य के सेवन का त्याग नहीं आता। तब क्या इस मतानुसार अन्याय और अभक्ष्य का सेवन पहली प्रतिमा में सम्भव है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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