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________________ ६८८ ] किस काल में कौनसे ग्रन्थ नहीं पढ़ने चाहिए ? शंका- श्री धवल ग्रंथराज खण्ड ४ पुस्तक ९ पृ० २५५ व २५७ पर गाया ९३ व १०६-१०९ तक यह लिखा है कि दावानल का धुंआ होने पर तथा पर्वादि के दिनों में अध्ययन नहीं करना चाहिये । यदि अध्ययन किया जायगा तो अनिष्ट फल होगा। प्रश्न यह है कि वे कौन से शास्त्र हैं जिनका अध्ययन नहीं करना चाहिये ? समाधान - मूलाचार पंचाचाराधिकार में भी काल-शुद्धि का कथन करते हुए यही बतलाया गया है। कि चन्द्रग्रहण आदि के समय स्वाध्याय वर्जित है । वहाँ पर बतलाया है - निम्न ग्रन्थों की स्वाध्याय काल-शुद्धि के समय करनी चाहिए, अस्वाध्याय -काल में नहीं करनी चाहिए। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त श्राराधनासार आदि अन्य ग्रन्थों की स्वाध्याय अकाल में भी की जा सकती है। इसी प्रकार का कथन मूलाचार प्रदोष छठा अधिकार श्लोक ३२- ३७ में भी है । Jain Education International [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार सुत्तं गणधरकथिदं तहेव पत्तयबुद्धिकथिदं च । सुदकेवलिया कथिवं अभिण्ण तदपुष्वकथिदं च ॥ ८० ॥ ते पढिदुमसज्झाये णो कष्पदि विरव इस्थिवग्गस्स । एतो अण्णो गंथो कम्पदि पढिवु असझाए ॥ ८१ ॥ आराहणणिज्जत्ती मरणविभत्ती य संगहत्थु दिओ । पच्चक्खाणावासयधर मकहाओ य अंगपूर्वाणि वस्तुनि प्राभृतादीनि यानि च । भाषितानि गणाधीशं : प्रत्येक बुद्धियोगिभिः ॥ ६।३२ ॥ एरिसओ ॥ ८२ ॥ ( मूलाचार ) तकेवलिभिः विद्भिः दशपूर्वरैर्भुवि । अप्रस्खलित संवेगंस्तानि सर्वाणि योगिनाम् ।। ३३ ।। चतुराराधनाग्रंथा पंचसंग्रहग्रंथाश्च उक्तस्वाध्यायवेलायां युज्यन्ते चायिकात्मनाम् । पठितुं चोपदेष्टु च न स्वाध्यायं विना क्वचित् ॥ ३४ ॥ षडावश्यक संदृब्धा शलाकापुरुषाणांचानुप्रेक्षादि गुणे इत्याद्या ये परे ग्रंथाश्चरित्रादय सर्वदा योग्याः सत्स्वाध्यायं मृत्युसाधन सूचका: । प्रत्याख्यानस्त वोद्भवाः ॥ ३५ ॥ महाधर्मकथान्विताः । भृताः ॥ ३६ ॥ एव ते । विनासताम् ॥ ३७ ॥ मूलाचार प्रदीप इन गाथा व श्लोकों में बतलाया गया है कि-अंग, पूर्वं वस्तु तथा प्राभृत जो गणधरों के कहे हुए हैं तथा प्रत्येक बुद्ध, श्रुतकेवली, दशपूर्वधारी के द्वारा कहे हुए हैं उन ग्रन्थों को स्वाध्याय के काल में ही पढ़ने चाहिए, अस्वाध्याय काल में नहीं पढ़ने चाहिए। श्राराधना ग्रन्थ, मृत्यु के साधनों को सूचित करने वाले ग्रंथ, पंचसंग्रह, प्रत्याख्यान तथा स्तुति के ग्रन्थ छह आवश्यक को कहने वाले ग्रन्थ, महाधर्म कथा ग्रन्थ, शलाका पुरुषों के चरित्र ग्रन्थ आदि जितने अन्य ग्रन्थ उनको स्वाध्याय के अतिरिक्त अन्य काल में भी पढ़ सकते हैं - जै. ग. 6-6-68/VI / बसन्तकुमार जैन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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