SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ २७ यही अनुरोध मैंने पं० हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्री और पं० कैलाशचन्द्रजी जैन सिद्धान्ताचार्य से कई बार किया; पर मुझे सफलता नहीं मिल सकी। श्वे० तेरापंथी सम्प्रदाय के आचार्य श्री तुलसी से भी मैंने यही अनुरोध किया है कि उनके एक दो मुनियों को यही काम सौंप दिया जाय कि मुख्य-मुख्य दिग० शास्त्रों को तटस्थता से पढ़ डालें। श्वे० ग्रन्थों का तो उनका अध्ययन है ही, अतः दोनों सम्प्रदायों के सभी प्रधान ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन हो जाने पर वे मूल मार्ग को प्रकाशित करते हुए मान्यता-भेद पर भी गम्भीर विचार प्रस्तुत कर सकें। यदि समन्वय रूप में कोई भी मार्ग उनके चिन्तन-मनन में आजाए तो उसे प्रकाश में लावें, क्योंकि, आज के नवयुवकों में छोटी-छोटी बातों को लेकर जो रस्साकसी चलती है, उसे बिल्कुल पसन्द नहीं करते । वे तो स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हमें झगड़े वाली बातें नहीं बताकर सरल और सच्चा रास्ता बतायें, जिसे हम पालन कर सकें और आत्म-कल्याण कर सकें। गत ५० वर्षों में जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है व समझा है वहाँ एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि जैनधर्म और भगवान महावीर आदि तीर्थङ्करों का सन्देश यही रहा है कि राग, द्वष व मोह ही कर्म बन्धन के प्रधान कारण हैं। हमारे तीर्थङ्कर वीतरागी होते हैं और हमें भी वीतराग बनने का लक्ष्य एवं प्रयत्न करना चाहिये । समभाव और सम्यकत्वादि मोक्षमार्ग हैं। जैन धर्म का प्राचीन नाम श्रमण धर्म था और उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि समता से ही श्रमण होता है। ___ अन्ततः, मैं यही कहूंगा कि सिद्धान्त शिरोमणि मुख्तार सा० की कृतियों से निश्चित ही भावी व वर्तमान पीढ़ी उपकृत होगी और करणानुयोग के ज्ञान को अधिकाधिक विकसित कर पावेगी । स्व. मुख्तार सा०, करीब वर्ष भर पूर्व दिवंगत हुए। वे और रहते तो हमें तो निश्चित ही लाभ था, पर होनहार कौन टाल सकता है ? आयु कर्म किसी के प्राधीन नहीं । साधनारत महाविद्वान् * श्री सत्यन्धर कुमार सेठी, उज्जैन मुझे यह जानकर अति प्रसन्नता हुई कि दि० जैन समाज अपने महाविद्वान् पूज्य विद्वद्वर्य (स्व०) श्री रतनचन्दजी साहब की महान साधनाओं व सेवाओं से प्रभावित होकर उनकी स्मृति में एक ग्रन्थ प्रकाशित करने जा रहा है आयोजकों व समाज का यह एक अनुकरणीय सुन्दर प्रयास है। विद्वान् समाज के गौरव हैं, उन्हीं की प्रेरणाओं से समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति पैदा होती है, जिससे समाज का नव निर्माण होता है। जैन समाज के विद्वानों में पूज्य मुख्तार साहब का गणनीय स्थान था। उनका चिन्तन और साधनामय जीवन वास्तव में अनुकरणीय था। वे सिद्धान्तग्रन्थों के विद्वान् तो थे ही, साथ ही परम्परा के पोषक विद्वान् भी थे। मैं उनके सम्पर्क में बहुत कम आया हूँ। मेरा उनसे प्रथम परिचय इन्दौर में हुआ था, जब श्री कानजी स्वामी से सम्बन्धित विषय को लेकर अखिल भारतवर्षीय दि० जैन महासभा की विशेष मीटिंग आयोजित की गई थी। उस विशेष मीटिंग में मैं भी निमंत्रित किया गया था। मेरे और उनके विचारों में गहरा मतभेद रहा है, लेकिन मैं मतभेद को व विचारभेद को महत्त्व नहीं देता। इन्दौर के सम्पर्क से मुख्तार सा० के प्रति मेरे हृदय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy