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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६१५ स्थिति है तथा त्रिलोक प्रज्ञप्ति चतुर्थ अधिकार गाथा २९३८ में लिखा है कि विद्याधरों के विद्याएँ छोड़ देने पर चौदह गुणस्थान भी सम्भव है । शंका यह है कि क्या आज की तिथि में भी विद्याधर मोक्ष जाते हैं ? अर्थात् जब हमारे यहाँ पाँचवाँ व छठा काल होता है तब विजयाधं पर्वत की ११० नगरियों से विद्याधर मोक्ष जाते हैं या नहीं ? समाधान - विजयार्ध की ११० नगरियों में वर्तमान में चतुर्थ काल के अन्त जैसा काल वर्त रहा है श्रीर चतुर्थं काल में उत्पन्न हुआ जीव मोक्ष जा सकता है, जैसे गौतम । यदि उन ११० नगरियों में से कोई विद्याधर विदेह क्षेत्र में जाकर विद्याएं छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर मोक्ष चला जावे तो सिद्धांत से कोई बाधा नहीं आती; किन्तु आगम में ऐसा कथन देखने में नहीं श्राया और न यह कथन देखने में आया कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि विद्याधरों में उत्पन्न हो सकता है । - पत्राचार 1-3-80/ज. ला. जैन, भीण्डर व्यवहार काल शंका - आवली, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, नालिका, मुहूर्त, अन्तर्मुहूर्त ( जघन्य, उत्कृष्ट ) इनका वर्तमान प्रणालिकानुसार प्रत्येक का सेकण्ड व मिनट कितना काल होता है ? समाधान - आवली का काल इतना छोटा ( सूक्ष्म ) असम्भव है । उच्छ्वास निःश्वास उउ मिनट; स्तोक = मुहूर्त = ४= मिनट, जघन्य अन्तर्मुहूर्त = समय अधिक आवली, होता है कि उसको सेकण्ड व मिनट में कहना मिनट, लव = मिनट नालिका = २४ मिनट, उत्कृष्ट प्रन्तर्मुहूर्त = समय कम ४८ मिनट । - सं. 13-12-56 / VII / सों. घ. का. डबका शंका- अन्तर्मुहूर्त का काल कितना है । श्रन्तर्मुहूर्त काल का जघन्य व उत्कृष्ट परिमाण समाधान - एक समय कम मुहूर्त ( दो घड़ी, ४८ मिनट ) तो उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है और आवली का श्रसंख्यातवाँ भाग जघन्य अन्तर्मुहूर्त है । स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा २२० की टीका में कहा है 'एकसमयेन होनो भिन्नर्मुहूर्त: उत्कृष्टान्तर्मुहूर्त इत्यर्थः । ततो अग्रेद्विसमयोनाद्या आवल्यसंख्यातक भागांताः सर्वेऽन्तरमुहूर्ताः । ४८ मिनट से एक समय कम जो काल है वह भिन्न मुहूर्त अर्थात् उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । उससे दो समय कम तीन समय कम इत्यादि भावली के असंख्यातवें भाग अर्थात् एक सैकिण्ड के प्रसंख्यातवें भाग तक जितने भी काल के भेद हैं वे सब अन्तर्मुहूर्त के विकल्प हैं । Jain Education International अन्तर्मुहूर्त अर्थात् असंख्य श्रावली शंका- संख्यात भावलियों का एक उच्छ्वास होता है और ३७७३ उच्छ्वासों का एक मुहूर्त होता है । षट्खंडागम पुस्तक ३ पृ० ६९-७० पर विशेषार्थ में लिखा है कि तीन गुणस्थानों की संख्या लाने के लिये अन्तर्मुहूर्त का अर्थ मुहूर्त से अधिक काल लेना चाहिये । प्रश्न यह है कि अधिक हो तो कितना अधिक ? क्या इस काल में असंख्यात आवलियाँ हो सकती हैं ? - जै. ग. 26-2-70 / IX / रोशनलाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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