________________
५५२ ]
[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
अकालमरण ( कदलीघात )
उत्तम संहनन वालों का भी अकालमरण शंका-बच-वृषभनाराच संहननवालों को आयु को असमय में उदीरणा ( कदलीघात ) होती है या नहीं ?
समाधान-जिन जीवों का अकाल (कदलीघात ) मरण नहीं होता उनका कथन मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ५३ में है । वह सूत्र इस प्रकार है
"औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ।"
अर्थात-उपपाद जन्म वाले देव और नारकी, 'चरमोत्तमदेहा' तद्भव मोक्षगामी, असंख्यात वर्ष आयु वाले ( भोग भूमिया, मनुष्य, तियंच ) इनका अकालमरण ( कदलीपातमरण ) नहीं होता है।
इस सूत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि सूत्र कथित जीवों का अकालमरण नहीं होता ऐसा नियम है, किंत अन्य जीवों के विषय में ऐसा नियम नहीं है ।
"एतेषां नियमेनायुरनपवर्त्यमितरेषामनियमः।" ( रा. वा. २०५३।९)
अर्थात् इन जीवों का मरणकाल व्यवस्थित है। ऐसा नियम है, किन्तु शस्त्र प्रहार व विष आदि के कारणों के द्वारा अन्य जीवों का मरण-काल उत्पन्न भी हो सकता है, उनका मरण काल व्यवस्थित होने का नियम नहीं है।
उत्तमदेह ( उत्तम संहनन वाले ) चक्रधर आदि के अनपवर्त-आयु का नियम नहीं है, क्योंकि अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त तथा कृष्ण वासुदेव आदि की आयु का बाह्य निमित्तों के वश से कदली-घात हुआ है । कहा भी है
"अन्तस्य चक्रधरस्य ब्रह्मवत्तस्य वासुदेवस्य च कृष्णस्यअन्येषां च तादृशानां बाह्यनिमित्तवशावायुरपवतं. वर्शनात्" ( रा. वा. २१५३।६ )
-जे.ग. 23-5-66/IX/हेमचन्द
चरमशरीरी के अकालमरण का निषेष शंका-तद्धव मोक्षगामियों की अकाल मृत्यु होती है या नहीं ? जिसको जिस मनुष्य पर्याय में मोक्ष की प्राप्ति होती है वे सब चरमशरीरी होते हैं या अचरमशरीरियों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है ?
समाधान-तद्भव मोक्षगामियों की अकाल मृत्यु नहीं होती, क्योंकि मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ५३ की टीका में कहा है कि 'चरमोत्तम देह वाले जीव अनपवयं आयु वाले होते हैं।' इसी सूत्र पर सर्वार्थसिद्धि टीका में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org