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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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आदेशमत्तगुत्तो धादुचबुक्कस्स कारणं जो दु ।
सो ऐओ परमाणू परिणाम गुणो सयमसद्दी ॥७॥ टीका-एकोपि परमाणुः पृथिव्यादि धातुचतुष्क रूपेण कालान्तरेण परिणमति स परमाणुरिति ज्ञेयः ।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने इस गाथा द्वारा यह बतलाया है कि एक ही परमाणु कालान्तर में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन चार धातुरूप परिणमन कर सकता है अर्थात् प्रत्येक परमाणु में पृथ्वी आदि चारों धातुपोंरूप परिणमन करने की योग्यता है। जैसा निमित्त मिलेगा उस धातुरूप परिणमन हो जायेगा। जैसे एक ही बीज जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भूमि के निमित्त से जघन्य मध्यम व उत्कृष्ट फल को उत्पन्न करता है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा भी है-"णाणाभूमिगदाणिह बीजाणिव ।"
-पताचार/ज. ला. जैन, भीण्डर
चार धातुमयी वर्गणाएँ शंका–२३ वर्गणाओं में से कौन-कौनसी वर्गणाएं चार धातुओं से बनी हैं ? अथवा कौन-कौनसी वर्गणाएँ चार धातुरूप हैं ? समाधान-आहारवर्गणा ही चारधातुमयी है। अन्य वर्गणाएं चारधातुमयी नहीं हैं।
-पवाचार 30-1-79/ज. ला. जैन, भीण्डर
चक्षु इन्द्रिय मात्र प्राहार वर्गणा को विषय करती है शंका-मतिश्रुतज्ञानी छप्रस्थ को तेबीस वर्गणाओं में से चक्षु इन्द्रिय से कितनी वर्गणाएँ दिखती हैं ? क्या मात्र आहार वर्गणा ही दिखती है, अन्य वर्गणा नहीं दिख सकती?
समाधान-चक्षु इन्द्रिय मात्र पाहार वर्गणानों को ही जानती है, अन्य वर्गणाओं को नहीं; ऐसा उल्लेख शास्त्रों में नहीं पाया जाता। शास्त्राधार बिना कुछ नहीं कहा जा सकता, किन्तु बुद्धि यह कहती है कि चक्षु इंद्रिय मात्र आहार वर्गणानों से बने हुए स्थूल सूक्ष्म पुद्गल को जानती है।
–पत्राचार 7-4-79/ज. ला. जैन, भीण्डर वर्गणाओं का इन्द्रियग्राह्यत्व विषयक विचार शंका-कौन कौनसी वर्गणाएँ इन्द्रियग्राह्य हैं तथा कौन-कौनसी वर्गणाएँ इन्द्रियग्राह्य नहीं हैं, इसका स्पष्टीकरण करने की कृपा करें।
समाधान-आहारवर्गणा, भाषावर्गणा तथा निस्सरणात्मक तेजसवर्गणा इन्द्रियग्राह्य हैं। महास्कन्ध सूक्ष्म है, अतः वह इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है । आगम में वर्गणाओं के इन्द्रिय-प्रत्यक्षत्व के विषय में कुछ नहीं लिखा है।
पत्राचार /30-1-79 ज. ला, जैन, भीण्डर
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