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________________ ४४० ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : स्थितिबंधस्थान, स्थिति एवं अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान तथा तद्विषयक प्रविभाग प्रतिच्छेव शंका- धवल पु० ६ पृ० २०० - " सव्व टिट्ठदिबंधट्ठाणाणं एक्केक्क ट्ठिदिबन्ध सवसाणट्ठाणस्स हेट्ठ छवि डिकमेण असंखेज्जलोगमेत्ताणि अनुभाग गंध झवसाणट्ठाणाणि होंति । ताणि च जहष्णकसा उवय अणुभागबन्धनवसाणट्ठाणप्पहुडि उवरि जाव जहण्णट्ठिदि उक्कस्सकसाउदयट्ठाण अणुभागबन्धज्झवसाणट्ठाणाणि त्तिविसेसा - हियाणि । विसेसो पुण असंखेज्जालोगा । तस्स पडिभागो वि असंखेज्जालोगा ।" इसका क्या भाव है समझ में नहीं आया ? समाधान — प्रत्येक स्थिति बंध स्थान को असंख्यात लोक प्रमाण स्थिति बन्धाध्यवसायस्थान कारण होते हैं । प्रत्येक स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान में असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान होते हैं । इन असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थानों में से जघन्य, अनुभाग, बन्धाध्यवसाय स्थान के अविभाग प्रतिच्छेदों को श्रसंख्यातलोक से भाग देने पर जो लब्ध आवे उसको जघन्य अनुभागबन्घध्यवसाय स्थान के प्रविभाग प्रतिच्छेदों में जोड़ देने से दूसरा अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान प्राप्त हो जाता है । इस दूसरे अनुभाग बन्धाध्यवसाय स्थान के विभाग प्रतिच्छेदों का असंख्यात लोक से भाग देकर जो लब्ध प्राप्त हो, उसको दूसरे अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान में जोड़ने पर तीसरा अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान प्राप्त हो जाता । इस प्रकार एक एक स्थिति बन्धाध्यवसाय स्थान सम्बन्धी प्रसंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान प्राप्त करने चाहिये । - जै. ग. 28-3-74 // ज. ला. जैन, भीण्डर स्थिति बन्ध शंका- धवल पुस्तक ११ पृष्ठ १४९-१५०, २२९ में विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवों के पर्याप्त के जघन्यस्थितिबन्ध से अपर्याप्त का जघन्यस्थितिबन्ध विशेष बताया सो शक्ति तो अपर्याप्त को अपेक्षा पर्याप्त की विशेष होनी चाहिए इसी हिसाब से बन्ध भी होना चाहिए । समाधान — स्थितिबन्ध की हीनता व अधिकता में विशुद्धि व संक्लेश कारण हैं । अपर्याप्त जीवों की अपेक्षा पर्याप्त जीवों में विशुद्धि व संक्लेशता दोनों अधिक होती हैं अतः अपने-अपने अपर्याप्तजीवों की अपेक्षा अपनेअपने पर्याप्तजीवों में जघन्यस्थितिबन्ध स्तोक होता है और उत्कृष्टस्थितिबन्ध का क्रम इससे विपरीत है अर्थात् अपने-अपने पर्याप्तजीवों की अपेक्षा अपने-अपने अपर्याप्त जीवों का उत्कृष्टस्थितिबन्ध स्तोक होता है । - पत्राचार / ब. प्र. स., पटना स्थितिबन्धस्थान शंका- 'स्थितिबन्धस्थान विशेष' से 'स्थितिबन्धस्थान' एक अधिक बताया है । सो 'स्थितिबन्धस्थान विशेष' किसको कहते हैं ? समाधान - उत्कृष्ट स्थितिबन्धस्थान में से जघन्य स्थितिबन्धस्थान को घटा देने से जो 'स्थितिबन्धस्थान * शेष रहें वे 'स्थितिबन्धस्थानविशेष' कहलाते हैं और उनमें एक जोड़ देने से स्थितिबन्धस्थानों की संख्या प्रा जाती है । अथवा जघन्यस्थितिबन्धस्थान के अतिरिक्त अन्य स्थितिबन्धस्थानविशेष हैं, क्योंकि वे जघन्य स्थितिबन्धस्थान से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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