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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] प्रायु का घटाना प्रबन्ध अवस्था में सम्भव है शंका- महाबन्ध पु० १ में आयुबंध के आठ - अपकर्षकाल बतलाये हैं । इन अपकर्षकालों में जीव आगामीभव की आयु का बंध करता है। परभव की बंधी हुई आयु की स्थिति का घटना यानी अपकर्षण इन आठ अपकर्षकालों में ही होता है या अन्य समय में भी होता है ? समाधान - परभव की बँधी हुई आयु का हर समय अपकर्षरण हो सकता है, क्योंकि उसके अपकर्षण के लिये बन्धकाल का नियम नहीं है । जिस जीव ने मिथ्यात्व अवस्था में सातवें नरक की आयु का बन्ध कर लिया, उसके पश्चात् उसको सम्यग्दर्शन हो गया, तो वह जीव सम्यग्दर्शन के द्वारा सातवें नरक आयु की स्थिति को घटाकर ( अपकर्षणकर) प्रथम नरक आयु के समान कर लेता है। कहा भी है- 'न नरकायुषः सत्त्वं तस्यतत्रोत्पत्तेः कारणं सम्यग्दर्शनासिना छिन्नषट् पृथिव्यायुष्कत्वात् । न च तच्छेदोऽसिद्धः आर्षात्तत्सिदृध्युपलम्भात् ' ( धवल पु० १ पृ० ३२४ ) सम्यग्दष्टि के नरकायु का बन्ध नहीं होता है, क्योंकि नरकायु की बन्धव्युच्छित्ति प्रथमगुणस्थान में हो जाती है । इसप्रकार सम्यग्दृष्टि के नरकायु का बंधकाल संभव नहीं है अतः सम्यग्दष्टि के नीचे की छह पृथिवियों की आयु का अपकर्षण हर समय हो सकता है । इसीप्रकार अन्य आयु के विषय में भी जानना चाहिये । -- जै. ग. 1-4-76 / VIII / र. ला. जैन, मेरठ [ ४१८ एक त्रिभाग शेष रहने पर श्रायुबन्ध का अन्तर्मुहूर्त कौनसा होता है ? शंका- भुज्यमान आयु के तीन भागों में से दो भाग बीत जानेपर एक अन्तर्मुहूर्त तक आयुबन्ध होता है, तो यह अन्तर्मुहूर्त कहाँ पर होता है ? समाधान-कर्मभूमिया मनुष्य, तिर्यंचों की दो-त्रिभाग प्रायु बीत जाने पर जो प्रथम अन्तर्मुहूर्त होता है वह अन्तर्मुहूर्त प्रबंध के योग्य होता है। कहा भी है सुरणिरया जरतिरियं धम्मासवसिट्ठगे सगाउस्स । णरतिरिया सव्वाउं तिभाग सेसम्मि उक्कस्सं ॥६३९॥ Jain Education International भोगभुमा देवाउं छम्मासवसिगे य बंधति । इगिविगला णरतिरियं ते उबुगा सत्तगा तिरियं ॥ ६४० ॥ ( गो. क. ) - देव, नारकी भुज्यमान श्रायु के उत्कृष्टरूपसे छहमास अवशेष रहनेपर अथवा छहमास के उत्तरोत्तर त्रिभाग का त्रिभाग शेष रहनेपर परभविक मनुष्यायु या तियंचायु को बांधते हैं प्रर्थात् उस काल में परभविकआयु के बंधयोग्य होते हैं । भोगभूमिया भी इसीप्रकार मुज्यमान- श्रायु के छहमास अवशेष रहनेपर अथवा छहमास के उत्तरोत्तर त्रिभाग का त्रिभाग शेष रहने पर परभविक - देवायु बंधयोग्य होते हैं । कर्मभूमि के मनुष्य व तिथंच - भुज्यमानश्रायु का त्रिभाग अथवा त्रिभाग का उत्तरोत्तर विभाग शेष रहनेपर परभविक चारों आयु के बन्धयोग्य होय है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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