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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ४०५ असंज्ञी जीवों के मन नहीं होता अतः मनोयोग भी नहीं होता; किन्तु मिध्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय व काययोग बंध के कारण तो सभी असंज्ञी जीवों के होते हैं । अतः उन श्रसंज्ञी जीवों के प्रतिसमय बंध होता रहता है । —जै. ग. 11-9-69 / VII / बसन्तकुमार आहार मार्गरणा षड्विध श्राहारों के स्वामी शंका- केवली नोकर्म आहार करते हैं, देव मानसिकआहार करते हैं और नारकीकार्मण आहार करते हैं । ये आहार किस प्रकार के हैं ? समाधान -- औदारिकादि तीन शरीरों की स्थिति के लिये जो पुद्गल पिण्ड ग्रहण किया जाता है, वह महार है । कहा भी है "शरीरप्रायोग्यपुगल पिण्ड ग्रहणमाहारः ।" ( धवल पु० १ पृ० १५२ ) दारिक, वैयिक, आहारक इन तीनशरीर के योग्य पुद्गलपिण्ड के ग्रहण करने को ग्राहार कहते हैं । शरीर की स्थिति आयु कर्मोदय में कारण है अतः आहार को प्रयुकर्म का नोकर्म कहा गया है । णिरयायुस्स अणिट्ठाहारी सेसाणमिट्ठमण्णादी । गविणोकम्मं वव्यं चउग्गदोणं हवे खेत्तं ॥ ७८ ॥ ( गो. क. ) टीका - नरकायुषोऽनिष्टाहारः तद्विषमृतिका नोकर्म द्रव्यकर्म शेषायुषामिष्टान्नादयः । निष्ट आहार अर्थात् नरक की मिट्टी आदि नरकायु का नोकर्म है और शेष तियंचादि तीन आयुकर्म का नोकर्म इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसा अन्न पानादि है । णोकम्मकम्महारो कबलाहारो य लेप्पहारो य । उज्जमणो विय कमसो आहारो छम्विहो लेओ ॥११०॥ णोकम्म कम्महारो जीवाणं होइ चउगइगयाणं । कवलाहारो णरयसु रुक्खेसु य लेप्पमाहारो ॥११॥ पक्खीणुज्जाहारो अंडयमोसु Jain Education International वट्टमाणा । देवेसु मणाहारो चउग्विहो णत्थि केवलिणो ॥ ११२ ॥ ( भाव संग्रह ) अर्थ - नोकर्म श्राहार, कर्माहार, कवलाहार, लेपाहार, ओजाहार और मानसिकआहार इस प्रकार आहार के छह भेद हैं । इनमें से नोकर्माहार और कर्माहार चारों गतिवाले जीवों के होता है । कवलाहार मनुष्य तथा पशुओं के होता है और वृक्षों के लेपाहार होता है । अंडे के भीतर रहनेवाले पक्षियों के प्रोजग्राहार होता है और देवों के मानसिक आहार होता है। इनमें से चारप्रकार का आहार केवली भगवान के नहीं होता है । - जै. ग. 23-12-76 / VII / न. म. जैन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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