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________________ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार [ जीवन-क्रम ] जो रत्नों का पिटारा था; जो धवल, जयधवल, महाधवल आदि शास्त्रों को सम्यकतया समझकर उनमें पारायणत्व सम्प्राप्त हआ था; जो भारतीय दिगम्बर जैन साधूगरण द्वारा विशिष्ट श्लाघनीय था; जो अांशिक रत्नत्रयधर्ममय था; जो धवलादिप्रज्ञा-प्रदाता मेरा गुरु था तथा जिसके सम्बन्ध में मेरी लेखनी द्वारा लिखा जाना दुःसम्भव है, उस सिद्धान्तशिरोमणि, सिद्धान्तपारग, पूज्य, करणानुयोगप्रभाकर के बारे में भक्तिवश कुछ लिखने का दुस्साहस करता हूँ। यद्यपि यह सत्य है कि उसके बारे में जितना भी लिखा जाय वह सब 'रविसम्मुख दीपप्रदर्शन' मात्र ही है, इसमें कोई शंका नहीं; तथापि बुद्धयनुकूल लिखे बिना मुझे तुष्टि भी नहीं होगी। भारतवर्ष की उत्तरदिशा में स्थित उत्तरप्रदेश प्रान्त में सहारनपुर' नामक शहर है। उसके बड़तला यादगार मोहल्ले में आज से करीब ८३ वर्ष पूर्व दिगम्बर जैन अग्रवाल जातीय श्री धवलकीर्ति गर्ग के घर सौभाग्यवती, धर्मधारिणी माता श्रीमती बरफीदेवी के गर्भ से एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ; नाम रखा गया "रतनचन्द"। कौन जानता था कि यह बालक आगे जाकर विलक्षण प्रतिभा का धनी अद्वितीय शास्त्रमर्मज्ञ होगा और अनेक प्रात्मानों को ज्ञान-दान कर उनके मिथ्यावरण को दूर करने में निमित्त होगा। श्री रतनचन्दजी कुल चार भाई थे। सबसे बड़े भाई श्री मेहरचन्द थे, उनसे छोटे श्री रूपचन्द एवं उनसे छोटे आप थे एवं आपसे छोटे श्री नेमिचन्द हैं। आपकी एक बहन श्रीमती जसवन्तीदेवी भी थी। अभी केवल श्री नेमिचन्दजी मौजूद हैं। प्रारम्भिक अध्ययन ५ वर्ष की अवस्था में आपको जैन पाठशाला में अध्ययनार्थ भेजा गया। वहाँ करीब दो वर्ष तक आपने जैनधर्म की एक-दो प्राथमिक पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके पश्चात् लौकिक अध्ययन हेतु आप सरकारी पाठशाला में चौथी कक्षा में प्रविष्ट हुए। इसी समय आपने अपनी पूज्य माताजी के साथ तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी की यात्रा भी की। यात्रा-काल में ही टाइफॉइड हो जाने के कारण आपको कई मुसीबतें उठानी पड़ी। १. 'सहारनपुर' एक दृष्टि में :-"स्वयं जिला । १४ जिनमन्दिर । आबादी लगभग ५ लाख । दिगम्बर जैन लगभग वस हजार । पहनावे की विशेषता है कि पगड़ी किसी के भी सिर पर नहीं मिलती। प्रायः जनों में भी चूड़ीदार पायजामा देखने को मिलता है। लाला जम्बुप्रसादजी रईस सदृश धनी, दानी व प्रख्यात व्यक्ति की नगरी। ब्र० सिद्धान्तशिरोमणि रतनचन्द मुख्तार, पं० अरहदास, पं० नेमिचन्द वकील आदि मान्य विद्वानों की जन्मप्रदात्री भी यही नगरी । औद्योगिक नगर । व्यवसाय का स्थान । नगर के [ लगभग ७५ किलोमीटर दूर ] पूर्वी दक्षिणी भाग में ऐतिहासिक नगर हस्तिनापुर, उत्तरी भाग में वैष्णवतीर्थ हरिद्वार [ पास में ही ] । दिगम्बर जैन-करणानुयोग-सूर्य रतनचन्द की नगरी यही सहारनपुर है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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