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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] असंयम, इन्द्रिय-असंयम और प्राण्यसंयम के भेद से दो प्रकार है। उनमें इन्द्रियासंयम स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, शब्द और नोइन्द्रिय (मन) जनित असंयम के भेद से छह प्रकार है। प्राण्यसंयम भी पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पति और स जीवों की अपेक्षा से उत्पन्न असंयम छहप्रकार का है। सब असंयम मिलकर बारह होते हैं। अनन्तानुबन्धी और अप्रत्याख्यानावरणकषायोदय अभाव हो जाने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषायोदय होने से छहप्रकार के इन्द्रियसंयम तथा पाँचस्थावरसम्बन्धी असंयम का त्याग नहीं होता, किन्तु त्रसघात का त्याग हो जाने से पंचमगुणस्थान में ११ अविरति होती है। इसप्रकार अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरणकषायोदयजनित असंयम तीनप्रकार का है। इन्द्रियासंयम व प्राण्यसंयम के भेद से असंयम दो प्रकार का है। इन्द्रियासंयम छहप्रकार का और प्राण्यासंयम छहप्रकार का इस प्रकार असंयम बारहप्रकार का है। अनन्तानुबन्धी व अप्रत्याख्यानावरणकषायोदय से १२ प्रकार का असंयम होता है। प्रत्याख्यानावरणकषायोदय से त्रसघात के अतिरिक्त ११ प्रकार का असंयम होता है। -णे.ग. 1-6-72/IX/र. ला. जैन, मेरठ सामायिक व छेदोपस्थापना में भेद शंका-प्रमत्तग्रणस्थान में सामायिकसंयम किसप्रकार है? अप्रमत्तादिगुणस्थानों में छेवोपस्थापनासंयम किसप्रकार है ? समाधान-'मैं सर्वप्रकार के सावधयोग से विरत हूँ' इसप्रकार द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा सकलसावधयोगके त्यागको सामायिकशूद्धिसंयम कहते हैं । 'सर्वसावध योग' पद के ग्रहण करने से ही, यहाँ पर अपने सम्पूर्ण भेदों का संग्रह कर लिया गया है, यह बात जानी जाती है। यदि यहाँ पर संयम के किसी एकभेद की ही मुख्यता होती तो 'सर्व' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ऐसे स्थल पर 'सर्व' शब्द के प्रयोग करने में है। इस कथन से यह सिद्ध हुमा कि जिसने सम्पूर्णसंयम के भेदों को अपने अन्तर्गत कर लिया है ऐसे अभेदरूप से एक यम को धारण करनेवाला जीव सामायिकशुद्धिसंयत कहलाता है । (धवल पु० १ पृ० ३६९-३७०) उस एकवत के छेद अर्थात् दो, तीन आदि के भेद से उपस्थापन करने को अर्थात् व्रतके आरोपण करने को छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम कहते हैं । सम्पूर्ण व्रतों को सामान्य की अपेक्षा एक मानकर एकयम को ग्रहण करने वाला होने से सामायिकशुद्धिसंयम द्रव्याथिकनयरूप है । उसी एक व्रत को पाँच अथवा अनेक प्रकारके भेद करके धारण करने वाला होने से छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम पर्यायार्थिकनयरूप है। यहाँ पर तीक्ष्ण बुद्धि मनुष्यों के अनुग्रह के लिए द्रव्याथिकनय का उपदेश दिया गया है। मन्दबुद्धि प्राणियों का अनुग्रह करने के लिये पर्यायाथिकनय का उपदेश दिया गया है। इसलिये इन दोनों संयमों में अनुष्ठानकृत कोई विशेषता नहीं है। उपदेश की अपेक्षा संयम को दो प्रकार का कहा गया है, वास्तव में तो वह एक ही है। इसी अभिप्राय से सूत्र में स्वतंत्ररूप से सामायिकपद के साथ 'शुद्धिसंयत' पद का ग्रहण नहीं किया गया। (धवल पु० १० ३७०) इस उपयुक्त आगम से स्पष्ट हो जाता है कि विवक्षा भेद से दो प्रकार का संयम कहा गया है, किन्तु अनुष्ठानकृत कोई विशेषता न होने से दोनों संयम वास्तव में एक हैं। जो संयम अभेद-दृष्टि से सामायिकसंयम है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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