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________________ १३ तीर्थंकरों के लिए स्वर्ग से भोजन १४ तीर्थंकरों का शरीर जन्म से ही परमोदारिक कहा जा सकता है १५ तीर्थंकरों के जन्म से पूर्व रत्नवृष्टि का कारण एवं रत्नों का स्वामी कौन ? १६ तीर्थंकर प्रतिमानों के चिह्न कैसे नियत होते हैं ? १७ किसी भी तीर्थंकर की बायु पूर्वकोटि नहीं हुई १८ नाभिराय और मरुदेवी जुगलिया नहीं थे नारद परमशरीरी नहीं होते १९ २० नारद के ग्राहार, आचरण, गति आदि का वर्णन २१ नारायण व प्रतिनारायण के भी अनेक शरीर २२ जिनके शरीर नहीं होता, उनके पसीना आदि भी नहीं होते २३ नेमिनाथ के बिहार के साथ-साथ लोकान्तिक देवों का गमन २४ पुराणों में उल्लिखित कामविषयक वर्णन भी अश्लीलता की कोटि में नहीं २५ बाहुबली निःशल्य थे २६ केवलज्ञान होते ही बाहुबली का उपसर्ग दूर २७ केवलज्ञान होने पर छिन्न भिन्न अंगोपांग भी पूर्ववत् पूर्ण हो जाते हैं २८ भद्रबाहु आचार्य श्रुतकेवली थे। गणधर भी सकल तज्ञ होते हैं २९ 'भरत ने चक्र नहीं चलाया' यह कथन मिथ्या है । ३० भरत व कैकेयी को परम व निर्मल सम्यक्त्व कब हुआ ? ३१ भरतचक्रवर्ती के दीक्षागुरु का उल्लेख आगम में नहीं मिलता ३२ बलदेव ने बिना गुरु के स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली मारीचि को उसी भव में सम्यक्त्व हुआ था या नहीं ? मरुदेवी का जन्म क्षेत्र ३३ ३४ ३५ मरुदेवी आदि रजस्वला नहीं होती थी २६ पांखुड़ी लेकर भगवान के दर्शनार्थ जाने वाला मेंढक समकित था या नहीं ? ३७ रुद्र उत्सर्पिणी काल में भी होते हैं। विदेह में धनरथ तीर्थंकर ३५ [ 30 ] ४० ३९ शलाकापुरुष ६३ न होकर ५८ ही कैसे णिक का काल मरण नहीं हुआ ४१ थे कि सम्यवस्व सहित नरक में गये ४२ हुए Jain Education International ? सगर के साठ हजार पुत्र मरे या मूच्छित हुए For Private & Personal Use Only ८३ ८४ ८६ ८७ ८७ ८७ ८८५ ८८ 5ε ८९ ८९ ८९ ९० ९० ६० ६१ ९२ ९३ ९३ ९४ ९४ ९५ ९५ ९५ ९५ ९६ ९६ ९६ www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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