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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १०१ अर्थ- पहले मिथ्यात्व गुणस्थान से ऊपर चढ़ने के चार मार्ग हैं। कोई जीव मिथ्यात्व से तीसरे गुणस्थान में जाता है, कोई चौथे गुणस्थान में, कोई पाँचवें में और कोई एकदम सातवें में जाता है । दूसरे सासादन गुणस्थान से एक मिथ्यात्व गुणस्थान में ही जाता है । तीसरे गुणस्थान से यदि ऊपर चढ़ता है तो चौथे गुणस्थान में जाता है और यदि नीचे पड़ता है तो पहले में आकर पड़ता है । चौथे अव्रत सम्यग्दृष्टि से नीचे पड़ता है तो तीसरे, दूसरे, पहले में पड़ता है यदि ऊपर चढ़ता है तो पाँचवें व सातवें गुणस्थान में जाता है । पाँचवें गुणस्थान से ऊपर सातवें गुणस्थान में चढ़ता है, नीचे गिरता है तो चौथे, तीसरे, दूसरे घौर पहले गुणस्थान में जाता है । गो० क० ५५६ से ५५९ भी देखो । इन प्रमाणों से सिद्ध है कि चढ़ते हुए छठा गुणस्थान नहीं होता 1 भिन्नदपूर्वधर मिथ्यात्व में नहीं जाता शंका- क्या अभिनदसपूर्वधारी मिथ्यात्व गुणस्थान में नहीं जा सकता ? - जै. ग. 4-9-69 / VII / शि. च. जैन समाधान- इसके लिए धवल पु० ९ पृ० ६९, ७० व ७१ देखना चाहिए । १४ पूर्वधारी के लिए तो स्पष्टरूप से लिखा है, किन्तु पृष्ठ ६९-७० के पढ़ने से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभिन्नदशपूर्वधर भी मिथ्यात्व में नहीं जाते । - पत्र 9-10-80 / I / ज. ला. जैन, भीण्डर atre सम्यक्त्व यारूढ़ संयमी असंयम के गुणस्थानों को नहीं प्राप्त होते शंका- “जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि मुनिराज उपशम श्र ेणी चढ़कर उतरे वे छठे गुणस्थान से नोचे नहीं आते।" हमने एक मुनिराज श्री के मुख से ऐसा सुना है । क्या यह सिद्धान्ततः ठीक है ? समाधान - क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव उपशम श्रेणी से गिरकर असंयत अवस्था को नहीं प्राप्त होता है; किन्तु मरण होने पर असंयत हो जाता है । - पत्र 5-6-79 / 1 /ज. ला. जैन भीण्डर उपशान्त कषाय से सासादन की प्राप्ति में दो मत, परन्तु सासादन मिथ्यात्वी ही बनेगा शंका-उपशांत मोह से गिरकर क्या सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है ? यदि प्राप्त होता है तो वह सासादन से मिथ्यात्व को प्राप्त होता है या अन्य गुणस्थान को भी जा सकता है ? UT, "चरितमोहमुवसामेदूण हेट्ठा ओयरिय आसणं गदस्स अंतोमुहुत्तरं किष्ण पुरुविदं ? उवसमढीवो ओदिणणं सासणगमणाभावादो । तं पि कुदो णव्वदे ? एदम्हादे चैव भूदबलीवयणादो ।" धवल पु. ५ पृ. ११ समाधान - उपशांत मोह से गिरकर सासादन को प्राप्त होने के विषय में दो भिन्न मत हैं । एक मत के अनुसार उपशांत मोह से गिरकर सासादन को प्राप्त हो सकता है और दूसरे मत के अनुसार उपशांत मोह से गिर कर सासादन को प्राप्त नहीं हो सकता है । कहा भी है श्री भूतबली आचार्य ने सूत्र ७ में एक जीव की अपेक्षा से सासादन का जघन्य अन्तर पल्योपम का असंख्यात भाग कहा है । इस पर शंकाकार ने कहा कि एक बार प्रथमोपशम सम्यक्त्व से गिरकर सासादन को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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