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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ६६ त्रिलोकमण्डन हाथी का क्रियाकलाप एवं मोक्षमार्ग में प्रवेश शंका-पद्मपुराण पर्व ८७ श्लोक २ में त्रिलोकमण्डन हाथी को सम्यक्त्व से युक्त कहा है इससे पूर्व सम्यक्त्व था या नहीं?
समाधान—पमपुराण पर्व ८५ श्लोक १७३ में कहा है
प्रमृद्य बन्धनस्तम्भं बलवानुद्धतः परम् । भरतालोकनात् स्मृत्वा पूर्वजन्म शमं गतः॥८॥१७३॥ पद्मपुराण
अर्थ-अत्यन्त उत्कट बल को धारण करने वाला यह त्रिलोक मण्डन हाथी पहले तो बन्धन का खम्भा उखाड़ कर क्षोभ को प्राप्त हुमा परन्तु बाद में भरत को देखने से पूर्वभव का स्मरण कर शांत हो गया। पूर्वभव का स्मरण भी सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण है। कहा भी है
"साधनं द्विविधं, अभ्यन्तरं बाह्य च । अभ्यन्तरं दर्शनमोहस्योपशमः क्षयः क्षयोपशमो वा। बाह्य तिरश्चां केषाञ्चिज्जातिस्मरणं केषाञ्चिद्धर्मश्रवणं केषाञ्चिज्जिनविम्बदर्शनम् ।" सर्वार्थसिद्धि १७ ।
अर्थ-सम्यग्दर्शन का साधन दो प्रकार का है-अभ्यन्तर और बाह्य । दर्शनमोहनीय का उपशम क्षय या क्षयोपशम अभ्यन्तर साधन है। तिर्यचों में बाह्य साधन किन्हीं के जातिस्मरण से, किन्हीं के धर्मश्रवण और किन्हीं के जिन बिम्ब दर्शन से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है ।
अतः जातिस्मरण के पश्चात् त्रिलोकमण्डन हाथी को सम्यक्त्वोत्पत्ति होना सम्भव है। मुनि महाराज के उपदेश से त्रिलोकमण्डन हाथी ने देशव्रत धारण कर लिये। कहा भी है
अथ साधुः प्रशान्तात्मा लोकत्रयविभूषणः। . अणुव्रतानि मुनिना विधिना परिलम्भितः॥८७१॥ पद्मपुराण
अथानन्तर जिसकी प्रात्मा अत्यन्त शान्त थी ऐसे उस त्रिलोकमण्डन हाथी को मुनिराज ने विधिपूर्वक अणुव्रत धारण कराया। इससे सिद्ध है कि हाथी को इससे पूर्व सम्यग्दर्शन प्राप्त था।
-जं. ग. 17-4-69/VII/र. ला. जैन मेरठ
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