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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व । मरुदेवी आदि रजस्वला नहीं होती थीं शंका-तीर्थकर भगवान की माता क्या रजस्वला होती है ? समाधान-श्री तीर्थंकर भगवान की माता रजस्वला नहीं होती है किन्तु पुष्पवती होती है। श्री महापुराण पर्व १२ श्लोक १०१ में 'पुष्पवत्यरजस्वला' शब्दों द्वारा कहा गया है कि श्रीमती मरुदेवी रजस्वला न होकर पुष्पवती थी। -जै. ग. 29-3-65/IX/ब्र. प. ला. पाँखुड़ी लेकर भगवान के दर्शनार्थ जाने वाला मेंढ़क समकिती था या नहीं ? शंका-मेंढ़क संज्ञी होते हैं या असंज्ञी ? वह भगवान के दर्शन को कैसे चला ? वह मेंढ़क सम्यग्दृष्टि था या मिथ्यादृष्टि ? समाधान मेंढक संज्ञी भी होते हैं और असंज्ञी भी। भगवान के दर्शन को जाने वाला मेंढ़क संज्ञी था। यदि उसके दर्शनमोहनीय कर्म का उपशम या क्षयोपशम था तो वह सम्यग्दृष्टि था अन्यथा मिथ्यादृष्टि । .. -गै.सं. 8-8-57/..... रुद्र उत्सर्पिणी काल में भी होते हैं शंका-बृहत् जैन शब्दार्णव भाग १ पृष्ठ ११७ पर लिखा है-'आगामी उत्सपिणी काल के तृतीय भाग "दुःखम सुखम" नामक में होने वाले ११ रुद्रों में से अन्तिम रुद्र का नाम अङ्गज है।' इससे ज्ञात होता है कि उत्सपिणी काल में भी हुण्डक काल दोष होता है, क्योंकि ११ रुद्र हुण्डककाल में ही उत्पन्न होते हैं । क्या बृहत् जैन शब्दार्णव का उक्त लेख आगमानुकूल है ? समाधान-बृहत् जैन शब्दार्णव के लिखने में स्वर्गीय पं० बिहारीलाल जैन ने बहुत परिश्रम किया और यथासंभव प्रमाण भी दिये हैं। बृहत् जैन शब्दार्णव में जो उपर्युक्त कथन लिखा गया है वह भी 'बृहविश्वचरिताणव' के आधार से लिखा गया है। यह 'बृहत् विश्व चरितार्णव' आचार्य रचित ग्रन्थ नहीं है। 'तिलोयपण्णत्ती' दिगम्बर जैन प्राचार्य रचित प्रामाणिक ग्रन्थ है। तिलोयपण्णत्ती में केवल हुंडा अवसर्पिणी लिखी है, हुण्डक उत्सपिणी नहीं लिखी है। हुण्डावसर्पिणी काल के चिह्नों में ११ रुद्रों की उत्पत्ति भी लिखी है । पर उत्सर्पिणी काल में भी ग्यारह रुद्र होंगे और उनमें अंतिम अंगज होगा; ऐसा हरिवंशपुराण ६०/५७२-७३ में भी लिखा है। इस तरह दो मत हैं। -जं. सं. 25-12-58/V/घ. म. के. च. मुजफ्फरनगर विदेह में धनरथ तीर्थंकर शंका-शान्तिनाथ पुराण में लिखा है कि धनरथ विदेह क्षेत्र में तीर्थकर हुए हैं, किन्तु सीमन्धर आदि बीस तीर्थंकरों के नाम में धनरथ नाम का कोई तीर्थंकर नहीं है। समाधान-श्री सीमन्धर प्रादि जो बीस नाम हैं वे शाश्वत तीर्थंकरों के नाम हैं । इनके अतिरिक्त १४० अन्य तीर्थंकर विदेह क्षेत्र में होते हैं किन्तु वे शाश्वत नहीं होते हैं। उन १४० में से धनरथ नाम के तीर्थंकर होना संभव है। -जै.ग. 8-8-68/VI/रो. ला. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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