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________________ (२) दिवंगत पं० रतनचन्दजी सा. मुख्तार का यद्यपि दूरवर्तिता के कारण साक्षात् दर्शन मुझे नहीं हुआ तो भी उनकी लेखनी के द्वारा मुझे उनका परिचय प्राप्त हुआ है। उनकी लेखनी से उनके व्यक्तिमत्त्व का अद्वितीयत्व सिद्ध हो जाता है, क्योंकि उससे उनकी विशिष्ट प्रतिभा का, स्मरणशक्ति का, प्रागमाभ्यास के सातत्य का, तर्कणा शक्ति का, जिनागम की श्रद्धा का, परिणामों की शुभता का और उनकी लेखन-शैली का पता चलता है। वे एक संयमी विद्वान् थे, देवशास्त्र गुरु के परम भक्त थे । परिणामों की सरलता उनका स्थायी भाव था। मैं उन्हें अासन्न भव्य मानता हूँ। आज ऐसे नररत्नों की समाज के लिए आवश्यकता है। उनके कृतित्व का यह ग्रन्थ सर्वजनोपयोगी है । इसके लिये सम्पादक युगल बधाई का पात्र है। दिनांक २१-१-८९ -पं० मोतीलाल कोठारी, फलटण 'पं० रतनचन्द मुख्तार : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' ग्रंथ के छपे फर्मे हम लोगों ने देखे एवं पढ़े। ग्रन्थ में संकलित शंका-समाधानों से जहां मुख्तार साहब के प्रागमिक तलस्पर्शी अध्ययन, अपूर्व स्मृति और असाधारण अवधारणा का परिचय मिलता है, वहीं इनके प्रकाशन से स्वाध्यायी व्यक्ति सिद्धान्त के विषय में बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं । शंका-समाधान में जो आगम-प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, कहीं-कहीं वे स्पष्टीकरण अवश्य चाहते हैं । विश्वास है, इसमें जो ज्ञानराशि भरी हुई है, विद्वज्जन उसका निश्चय ही समादर करेंगे। युगल सम्पादकों का श्रम गजब का एवं प्रकल्प्य है। इनकी यह अपूर्व देन विद्वानों और स्वाध्यायी बन्धुत्रों को अपूर्व लाभ पहुँचावेगी। इसके लिये सम्पादकों को हमारा हार्दिक साधुवाद है। बीना (म.प्र.) -पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य दिनांक १९-९-८८ -पं० दरबारीलाल कोठिया, न्यायाचार्य श्रीमान् पं० रतनचन्दजी मुख्तार, सहारनपुर जैन वाङमय के अद्वितीय मेधावी विद्वान् थे। मैं इसे पूर्व भव का संस्कार ही मानता हूँ कि उन्होंने किसी विद्यालय में संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी का अध्ययन नहीं किया, फिर भी वे आगम ग्रन्थों के प्रकाशन में रही अशुद्धियों को पकड़ने और उनका मार्जन करने में सक्षम थे। वे शुद्धि पत्रक बनाकर सम्पादकों का ध्यान आकर्षित करते थे। वर्षों तक उन्होंने स्वाध्यायियों की शंकाओं का समाधान किया। उन्हीं शंका-समाधानों का संकलन विद्वज्जनों की अनुशंसा के साथ 'पं० रतनचन्द मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्व' के रूप में प्रकाशित हो रहा है। यह विविध शंकानों का समाधान करने वाला 'पाकर ग्रन्थ' है। विश्वास है कि यह ग्रन्थ सर्वोपयोगी सिद्ध होगा। मैं सम्पादकों के कठोर श्रम और असीम धैर्य की सराहना करता हूँ। दिनांक ५-१०-८८ -डॉ. (५०) पन्नालाल साहित्याचार्य, जबलपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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