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________________ ४० वर्षावास गुरुदेवश्री का जसवंतगढ़ था, गुरुदेवश्री की जयंती के मंगलमय आयोजन में सम्मिलित होने के लिए मैं मदनगंज से वहाँ पर पहुँचा था, उस वर्ष सद्गुरुणी जी महासती श्री चारित्रप्रभा जी म. के पास जहाँ मेरी बड़ी बहिन महासती श्री प्रतिभाजी म. ने दीक्षा ग्रहण की, मैं भी उनके चरणों में रहकर धार्मिक अध्ययन कर रहा था, मैंने महासतीजी म. से कहा, इस अवसर पर मैं गुरुदेव श्री के दर्शन करने के लिए जाऊँगा और मदनगंज संघ के साथ मैं जसवंतगढ़ पहुँचा। गुरुदेवश्री के प्रथम दर्शन ने ही मेरे को अत्यधिक प्रभावित किया, उनकी भव्य मुखाकृति और सहज स्नेह के कारण मेरा हृदय आनंद-विभोर हो उठा, गुरुदेवश्री का सादड़ीमारवाड़ चातुर्मास हुआ, उस चातुर्मास में मैं सेवा में रहा, उसके पश्चात् निरन्तर सेवा में रहा। सन् १९९३ में उदयपुर में चद्दर समारोह था। गुरुदेवश्री के आदेश को शिरोधार्य कर मेरे आदरणीय माता-पिता ने दीक्षा की अनुमति प्रदान की और २८ मार्च को चद्दर समारोह के अवसर पर मेरी दीक्षा सानंद संपन्न हुई, दीक्षा लेकर ज्यों ही मैं गुरु चरणों में पहुँचा, गुरुदेवश्री ने मेरे सिर पर हाथ रखा और मुझे मंगलमय आशीर्वाद दिया, खूब ज्ञान-ध्यान में आगे बढ़ो सात दिन के पश्चात् मेरी बड़ी दीक्षा संपन्न हुई और दूसरे दिन गुरुदेवश्री का स्वर्गवास हो गया। गुरुदेवश्री की असीम कृपा का जब भी मैं स्मरण करता हूँ तो मेरा हृदय श्रद्धा से नत हो जाता है कितने महान थे गुरुदेव, कितनी थी हम बालकों पर उनकी असीम कृपा, हे गुरुदेव मैं आपके सद्गुणों को अपना कर अपने जीवन को धन्य बनाऊँ यही हार्दिक श्रद्धार्चना । Jain Education International की उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ श्रद्धा की पुष्प पंखुड़ियाँ -सुरेन्द्र मुनि (उपप्रवर्त्तक डॉ. राजेन्द्र मुनिजी के सुशिष्य ) परम श्रद्धेय महामहिम उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का ओजस्वी व्यक्तित्व असीम और अपरिमित था, उसमें कटुता का अभाव था, और अनंत माधुर्य-श्रोत से परिप्लावित था, वे अपनी दुग्ध धवल साधना के प्रति जितने कठोर थे, उतने ही अन्य व्यक्तियों के प्रति उनका व्यक्तित्व मधुरिमापूर्ण था। सद्गुरुदेव सफल कलाकार थे, जीवन के मंजे हुए कलाकार थे, उन्होंने जीवन को जीया, प्रकाशमान दीपक की तरह और जो भी उनके निकट संपर्क में आया, उन्हें उन्होंने उसी तरह ज्योतिर्मान बना दिया, इसी को कहते हैं स्पर्शदीक्षा। अपने समान बना देना महान पुरुषों का एक विशेष गुण होता है। उपाध्यायश्री का दृष्टिकोण बहुत ही व्यापक था । संकीर्ण दृष्टिकोण उन्हें पसन्द नहीं था, जीवन में अनेकों बार मैंने देखा, जहाँ पर साम्प्रदायिकवाद दृष्टिकोण मानस को संकीर्ण बनाता है, यहाँ पर आप साम्प्रदायिकवादी दृष्टिकोण से ऊपर उठकर हर प्रश्न पर चिन्तन करते और उस विषाक्त वातावरण से अपने आपको सदा बचाए रखते। उन्होंने जो ज्ञानराशि प्राप्त की थी, उसे उन्होंने सभी सुपात्रों को मुक्त हृदय से बाँटी, यह मेरा है, यह तेरा है, यह अपना है, यह पराया है, यह दृष्टिकोण उनके जीवन में कभी नहीं आया । यदि यह कह दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वे चलती-फिरती ज्ञान की प्याऊ थे। For Private & Personal Use Only 20180 आपने स्वयं ने विविध भाषाओं का विविध विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया और दूसरों को भी तलस्पर्शी अध्ययन कराने में उन्हें संकोच नहीं था। आपश्री ने अनेक संत-सतियों को धर्म, दर्शन व आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन कराया। ऐसे परम पुनीत पवित्र आत्मा का स्मरण आते ही और उनके विराट् व्यक्तित्व को याद करते ही श्रद्धा से सिर झुक जाता है। १. विवाद करने वाला, बहुत दिनों तक किसी भी निश्चय पर न पहुँचने वाला व्यक्ति कभी भी धर्मनिष्ठ नहीं हो सकता। २. किसी को छोटा सिद्ध करने में सफल होने वाला व्यक्ति धर्म रूपी कल्पतरु से कुछ भी नहीं पा सकता। ३. आस्था ही वह आधार है, जिस पर धर्म का भवन खड़ा होता है। 20 ४. धर्म एक वृक्ष है, कर्त्तव्य उसकी एक शाखा है। वृक्ष को त्यागने से शाखा को पकड़ कर कैसे रहा जा सकता है ? -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि www.jalnelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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