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________________ ___६८१ RO परिशिष्ट संचार था। आपके पिताश्री घेवरचंद जी, माताश्री गेन्दाबाई के श्री रतनलाल जी सा. मारू: किशनगढ़ धार्मिक संस्कार संतानों में पल्लवित हुए। श्री लीलाचन्द जी, रामलाल जी, संपतलाल जी आदि आपके भाई हैं। आपकी धर्मपत्नी किशनगढ़ अपनी आन, बान और शान के लिए सदा विश्रुत रहा है। यहाँ के नरवीरों ने समय-समय पर जो कार्य किये हैं वे का नाम सौ. चंचलादेवी एवं पुत्र सचिन, पुत्री सोनल आदि हैं। सभी में धर्म-भावना अच्छी है। आप महाराष्ट्र में अकलूज (जिला इतिहास के पृष्ठों पर सदा चमकते रहे हैं। श्री रतनलाल जी सा. सोलापुर) निवासी हैं। पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी मारू मदनगंज (किशनगढ़) के निवासी हैं। श्री पुष्कर गुरू सेवा म. के प्रति आपकी असीम आस्था थी। प्रस्तुत स्मृति-ग्रंथ प्रकाशन समिति, मदनगंज के आप वर्षों से अध्यक्ष हैं और आपके संद्प्रयास में आपका सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ आभारी। से श्री पुष्कर गुरू सेवा समिति की बिल्डिंग तैयार हुई और आज वहाँ पर चिकित्सालय तैयार हो गया है। आपकी धर्मपत्नी का नाम स्व. लाला कल्याणचंद जी बोथरा : दिल्ली सुमनदेवी है। अभयकुमार जी आपके दत्तक पुत्र हैं, उनके पारस श्री कल्याणचंद जी बोथरा एक विलक्षण जौहरी थे। उनके पूज्य । जी और कमल जी दो पुत्र हैं। आपका पूरा परिवार परम श्रद्धेय पिता श्री कपूरचंद जी बोथरा दिल्ली के जाने-माने जौहरियों में से उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के प्रति पूर्ण निष्ठावान रहा थे। पिताश्री के पद-चिह्नों पर चलकर आपने जवाहरात के कार्य में है। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के प्रति भी आपकी अनन्त विशेष योग्यता प्राप्त की थी। लघुवय में ही आपका स्वर्गवास हो आस्था है। गया। आपकी धर्मपत्नी का नाम निर्मलकुमारी जी है। आपके तीन श्री धनराज जी कोठारी : अहमदाबाद पुत्र हैं-अम्ब्रेस, संजीव और पंकज तथा एक सुपुत्री है निरजा जैन। पुरुषार्थ से भाग्य में परिवर्तन होता है इस उक्ति का उपयोग अम्बेस जैन की पत्नी का नाम रेणु है और दो सुपुत्री हैं-कु. । किया धनराज जी कोठारी ने। जीवन के ऊषाकाल में उनकी निशा और ईशा। आर्थिक स्थिति उतनी बढ़िया नहीं थी। वे मेवाड़ कोशीथल से संजीव जैन की धर्मपली का नाम सीमा जैन है। आपका पूरा अहमदाबाद पहुँचे और वहाँ पर उन्होंने अपने पुरुषार्थ से करोड़ों परिवार श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के रुपये कमाए और गुजरात के साहित्यिक प्रकाशन के क्षेत्र में प्रति अनन्य आस्था रही है एवं आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के अग्रगण्य स्थान प्राप्त किया। "श्री लक्ष्मी पुस्तक भण्डार" उनका प्रति अपूर्व श्रद्धा है। आपके तीनों सुपुत्र जवाहरात के क्षेत्र में पिता प्रकाशन केन्द्र रहा जिस प्रकाशन केन्द्र ने बड़े-बड़े ग्रन्थ प्रकाशित के पद-चिह्नों पर चल रहे हैं। प्रस्तुत ग्रंथ हेतु आपका अनुदान प्राप्त किये। धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रकाशन करने की उनके हुआ, तदर्थ हार्दिक आभारी। मन में एक लगन थी। धनराज जी के पूज्य पिताश्री का नाम घासीलाल जी सा. कोठारी था और उनकी मातेश्वरी का नाम श्री खुमानसिंह जी कागरेजा : सिंघाड़ा कोयलबाई था। उनकी धर्मपत्नी का नाम प्यारीबाई है। आप चार श्री खुमानसिंह जी कागरेचा मेवाड़ संघ के एक जाने-माने हुए भाई थे मोहनलाल जी, बादरमल जी और राजमल जी। आपके दो लब्धप्रतिष्ठित सुश्रावक हैं। आपके पूज्य पिताश्री का नाम हुकमीचंद पुत्र और तीन सुपुत्रियाँ हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र का नाम पूनमचंद जी जी था। आपकी धर्मपत्नी का नाम धर्मानुरागी सुश्राविका भूरीबाई और उनकी धर्मपत्नी का नाम सुशीलादेवी है। उनके चार पुत्रियाँ था। आपके दो सुपुत्र हैं-मीठालाल जी और हिम्मतमल जी। हैं-रसिला, रमिला, हीना और जयश्री। मीठालाल जी की धर्मपत्नी का नाम पुष्पादेवी है। उनके दो। दूसरे पुत्र का नाम धर्मचंद जी है। उनकी धर्मपली का नाम सुपुत्र हैं-पारसकुमार और भूपेन्द्रकुमार तथा तीन पुत्रियाँ हैं आशादेवी है। पुत्र का नाम प्रकाश और पुत्रियाँ प्रीति और मोनिका शारदा, रवीना और वीणा। हैं। धनराज जी की पुत्रियों के नाम हैं-सुन्दरबाई, सज्जनदेवी और शिमलाबाई। हिम्मतमल जी की धर्मपत्नी का नाम मीनादेवी है। इनके तीन पुत्र हैं-भावेश, निलेश और दीपक तथा दो पुत्रियाँ हैं-ममता और श्री धनराज जी कोठारी ने श्रद्धेय उपाध्यायश्री के साहित्य को और आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के साहित्य को गुजराती प्रबुद्ध नयना। पाठकों तक पहुँचाने हेतु उन ग्रंथों के अनुवाद कर प्रकाशित किये आपका व्यवसाय केन्द्र अहमदाबाद और सूरत में है और हैं। अपने भगवान महावीर एक अनुशीलन, जिन्दगी नो आनंद, राजस्थान में आप सिंघाड़ा (उदयपुर) के निवासी हैं। आप अनेक जीवन नो झनकार, सफल जीवन, चिन्तन की चाँदनी और पुष्कर संस्थाओं के पदाधिकारी भी हैं। परम श्रद्धेय गुरुदेव उपाध्याय श्री प्रसादी कथामाला की २०० पुस्तकें और पुष्कर कथामाला की ५० पुष्कर मुनि जी म. के अनन्य भक्तों में से हैं। आपकी और आपके । पुस्तकें अंग्रेजी में प्रकाशित की। यह सम्पूर्ण साहित्य आपने अपने परिवार की गुरुदेवश्री के प्रति अपार आस्था रही है। ग्रंथ के व्यय से प्रकाशित किया, यह आपकी अनन्य गुरुभक्ति का स्पष्ट प्रकाशन में आपका अनुदान प्राप्त हआ. तदर्थ हार्दिक साधूवाद।। परिचायक है। प्रस्तुत ग्रन्थ में भी आपका सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ आचार्यश्री के प्रति भी आपकी हार्दिक भक्ति है। हार्दिक आभारी। PREQUESTOTALSOण्ठ SON समन्वयक
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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