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________________ 06:0042000000000000000000000021060 VO18-0:00 SV-430021060870063086908 20909:090000.0 20.50.60 76000000000000000%aroSO2009 Do । संथारा-संलेषणा-समाधिमरण की कला ) iosgooJH0.000000000000 000000000000200.0. 50DO d मनुष्य को सुखमय दीर्घ जीवन की कला सिखाने वाले हजारों शास्त्र लिखे गये हैं। सभी दिन-रात, सुखी जीवन के लिए लालायित हैं, परन्तु मानव जब तक जीवन का अर्थ और जीने की शैली नहीं सीखेगा-सुखी जीवन की चाबी उसके हाथ नहीं लगेगी। ___भगवान महावीर ने कहा है-जीवन उसी का आनन्दमय हो सकेगा, जिसने मृत्यु को समझा है। जो जीवन के प्रति अनासक्त एवं मृत्यु के प्रति निर्भय रहकर जल में कमल की भाँति जीयेगा, वही जीवन का आनन्द ले सकेगा और वही वीर की भाँति हँसता-हँसता मृत्यु का सुखद वरण करेगा। मृत्यु मित्र है, उसका स्वागत करने की कला है-संलेषणा। संलेषणा-संथारा जैन परम्परा का वह विधान है, वह प्रक्रिया है जो जीवन और मृत्यु का रहस्य उद्घाटित कर दोनों को ही सुखद-मंगलमय-आनन्दमय-सार्थक बनाती है। संलेषणा-संथारा पर प्रस्तुत में गंभीर चिन्तन प्रस्तुत किया है विद्वान मनीषी आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी ने। इस खण्ड में आपश्री का सर्वांगीण चिन्तनपूर्ण मौलिक लेख वास्तव में ही अपने विषय को पूर्ण रूप में स्पष्ट करता है। यह विस्तृत निबंध ज्ञानवर्द्धक होने के साथ-साथ संथारा के विषय में सभी प्रकार की भ्रान्तियों का निराकरण भी प्रस्तुत करता है। इसी के साथ अन्य विद्वानों के लेख भी इस विषय को सर्वांगता प्रदान करते हैं। गुरुदेव पूज्य उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. ने अपने अंतिम समय में संथारा की भावना व्यक्त की और लगभग ४८ घंटा का संथारा प्राप्त किया। वे जप योगी महा योगी थे और समाधि उनके जीवन का अंग था। जीवन के अंतिम क्षणों में भी असह्य शारीरिक वेदना की स्थिति में भी उन्होंने समाधि योग में लीन रहकर समाधिमरण प्राप्त किया। इसलिए प्रस्तुत खण्ड गुरुदेव की जीवन दृष्टि का एक पूरक अंग बन गया है। आशा है पाठक इस रुचिकर मार्गदर्शक ज्ञानवर्धक सामग्री से लाभान्वित होगें। Swe DOOR WYSORRONSOROU 0:00.6.500ROMANOR पडाएरराष्ट्र AionDediatujrangaroo630093060900Pop.0.0.0.0.00 000 Garooare अणालयापाडण्डयल SogyvaetamaareGo 000000000000480apali 2.00000000000000000 Peo
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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