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________________ २४ संघ के भीष्म पितामह -कमल मुनि "कमलेश " उपाध्यायप्रवर श्रमणसंघ के भीष्म पितामह थे। उनका वियोग संघ के लिये वज्रपात के समान है। उनके द्वारा की गई शासन प्रभावना संघ के लिए कल्पतरु के समान है। कितनी ही बार दर्शनों का सौभाग्य मिला। वे प्रसन्न मुद्रा, सरलता, विशालता के भंडार थे। उनका अभाव संघ को चिरकाल तक अखरता रहेगा। इस बेला में आपश्री संघ के नायक हैं, धैर्य, साहस, संबल से हम दुःखद क्षणों में सहभागी बनते हुए वीर प्रभु से मंगल कामना करते हैं कि स्वर्गीय आत्मा को शांति मिले। ध्यान - जप साधक -सुरेश मुनि शास्त्री (प्रवर्तक श्री रमेशमुनि जी के शिष्य) परम श्रद्धेय उपाध्याय प्रवर पूज्य श्री पुष्कर मुनिजी म. का संयम साधनामय जीवन आगन्तुक भव्य आत्माओं का प्रेरक ही नहीं, मार्गदर्शक रहा है। जप तथा ध्यान-साधना आराधना का सफल माध्यम लेकर जो कुछ आपश्री ने प्राप्त किया समय-समय पर श्रद्धा-शील मुमुक्षुओं को भी मुक्त हस्त से लुटाया भी। आप स्वाध्यायशील, ध्यान-मीन-जप-तप तथा केवल प्रवचनकार ही नहीं सफल कवि के साथ ही कथा लेखक और साहित्यकार के रूप में श्रमणसंघ में शोभित हुए थे। Jain Education International) आपके दर्शन तथा सेवा का सुअवसर मुझे भी कई बार मिला । अंतिम समय की सहनशीलता सभी संतों के लिए एक सबल प्रेरणा की प्रतीक रही है। मैं अपने मन में यही भावना करता हूँ सविनय श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कि मुझे भी ध्यान - मौन-जप-संयम साधना-उपासना में आशानुरूप सफलता प्राप्त हो । गौरवमय संत जीवन शास्त्री गौतम मुनि 'प्रथम' (मे. भू. गुरुदेव श्री प्रतापमलजी म. के प्रशिष्य) 'संत' शब्द की गहन व्याख्या को चंद शब्दों में आंकना असंभव है । जिनका जीवन इस शब्द से सुशोभित है वह महान् है। स्व के लिए तथा पर के लिए प्रकाश स्तम्भ है। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ भगवान् महावीर की वाणी में- "सुसाहुणो गुरुणो।" अर्थात् वह सुसाधु गुरु पद को प्राप्त करता है जो सुवृति है। जो अहिंसासत्य-अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप महाव्रतों का आराधक है। उसे संत-मुनि- भिक्षु श्रमण आदि नामों से पहचान सकते हैं। इस प्रकार के आराधक संत का जीवन भव्य भक्तों के लिए सदैव श्रद्धास्पद रहता है। किसी ने ठीक ही कहा है सत्य क्षमा के सागर तेरी क्या यश गाथा गाऊँ? तेरे पावन पद पंकज में श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ॥ संत जीवन सागर विशाल ही नहीं, गंभीर भी है। वह चाँद-सा निर्मल, सूर्य-सा तेजस्वी है। यदि यों कहूँ कि संत जीवन आर्य संस्कृति का प्राण है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं । इस आर्यभूमि पर अनेकानेक संत रत्न हुए हैं जिन्होंने अपने त्याग तप-संयम से जन-जन को धर्मनिष्ठ बनाया है। उसी संत श्रृंखला में उपाध्याय बहुश्रुत प्रज्ञापुरुष श्री पुष्कर मुनिजी म. का जीवन भी जगत् जीवों के लिए उपकारी रहा है। मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य उदयपुर (राज.) की धरती पर मिला। संयोग की बात है मेरे आराध्य गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म. का चातुर्मास बड़ी सादड़ी होना था किन्तु अस्वस्थता के कारण उदयपुर रहना हुआ। उस समय आपने तथा वर्तमान आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्र मुनिजी म. ने जो गुरुदेव की सेवा की वह सदैव याद रहेगी। जब गुरुदेव ने पाँच दिन के संधारे सहित स्वर्गगमन किया। उस समय आपने बहुत धैर्य का सम्बल दिया जो सराहनीय है। ऐसे महान् संतप्रवर उदारमना उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. को ४८ घंटे का संथारा आया उन्होंने पंडित-मरण का वरण किया। आपश्री के स्वर्गवास से जैन समाज में एक प्रौढ़ अनुभवी संत रत्न की कमी हुई है। संघ में उपाध्याय पद का स्थान रिक्त हुआ है। श्रद्धेय उपाध्याय श्री जी की आत्मा को शाश्वत सुखों की प्राप्ति हो यही मेरी श्रद्धांजलि। महकता गुण गुलदस्ता For Private & Personal Use Only -रतन मुनि 'रत्नाकर' (मे. भू. गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म. के शिष्य) परम श्रद्धेय पूज्य प्रवर उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. का जीवन अनेकों गुणों से महकता गुलदस्ता था। उन्होंने अपने गुरुदेव से तथा ज्येष्ठ गुरुभ्राताओं से विनय विवेक पूर्वक ज्ञान धन प्राप्त किया। आगम-ज्योतिष - न्याय-छंद शास्त्र सभी पढ़े। ज्ञानी-ध्यानी-तपी-जपी - शास्त्रज्ञ स्थविर परम श्रद्धास्पद उपाध्याय श्री जी म. के पावन दर्शन का सौभाग्य इस अकिंचन ने भी प्राप्त किया। www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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