SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन-मंगल धर्म के चार चरण शाकाहारी अण्डा : एक वंचनापूर्ण भ्रांति जब रसना मन से आगे बढ़ जाती है तो अनेक अनर्थ होने लग जाते हैं। जीभ पर नियंत्रण होना अत्यावश्यक है। कहीं तो यह अनर्गलवाणी द्वारा विग्रह खड़े कर देती है और कहीं स्वाद लोलुप बनाकर मनुष्यों से वे कृत्य भी करवा देती है कि जो उनके लिए अकरणीय है। अभक्ष्य पदार्थ भी इसी कारण खाद्य सूची में स्थान पाने लग गये हैं। अण्डा आहार इसका एक जीवन्त उदाहरण है! अण्डा वास्तव में प्रजनन चक्र की एक अवस्था विशेष है। सन्तानोत्पत्ति लक्ष्य का यह एक साधन है, यह आहार की सामग्री कदापि नहीं है। प्रकृति ने इसे प्राणीजन्म के प्रयोजन से रचा है, प्राणियों के भोजन के लिए नहीं। यह तो मनुष्य का अनाचरण ही है। कि उसने इसका यह रूप मान लिया और घोर हिंसक कृत्य में लिप्त हो गया है। आहार तो पोषण करता है, स्वयं शुद्ध और उपयोगी तत्वों से सम्पन्न होता है-अण्डे में यह लक्षण नहीं पाये जाते । यदि आहार रूप में मनुष्य अण्डे पर आश्रित हो जाए तो उसका सारा शारीरिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा। इसमें कार्बोहाइड्रेड लगभग शून्य होता है कैल्शियम और लोहा तथा आयोडीन जैसे तत्व अण्डे में नहीं होते, विटेमिन ए की भी कमी होती है। ऐसी सामग्री चाहे खाद्य मान भी ली जाए उसकी उपयोगिता क्या है ? केवल अण्डे का आहार किया जाए तो दांतों, अस्थियों आदि का विकास और सुदृढ़ता के लिए संकट उत्पन्न हो जाए। कोलेस्टेरोल की मात्रा अण्डे में इतनी होती है कि हृदयाघात और रक्तचाप जैसे भयावह रोग उत्पन्न हो जाते हैं। लकवा और कैंसर की आशंका को भी अण्डा जन्म देता है। शरीर में नमक की मात्रा को बढ़ावा देकर यह अप्राकृतिक आहार मानव तन में नाना प्रकार की समस्याएँ जागृत कर देता है। अण्डे में न तो पोषण क्षमता है और न ही यह पर्याप्त ऊर्जा का स्रोत है। प्रोटीन शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है, वह अण्डे की अपेक्षा सोयाबीन, दालों और अन्य शाकाहारी पदार्थों में कहीं अधिक प्राप्त होता है। मूंगफली में तो अण्डे की अपेक्षा ढाई गुणा (लगभग) प्रोटीन है। अण्डा जितनी ऊर्जा देता है उससे लगभग तीन गुनी ऊर्जा मूंगफली से उपलब्ध हो जाती है। फिर विचारणीय प्रश्न यह है कि अण्डा जब ऐसा थोथा और रोगजनक पदार्थ है तो भला इसे इतना महत्व क्यों दिया गया है ? उत्तर स्पष्ट है, सामान्यजन अण्डे की इस वास्तविकता से अनभिज्ञ है। ये अज्ञजन अण्डा व्यवसाय के प्रचार तंत्र के शिकार हैं। इसी कारण जो ना कुछ है, उस अण्डे को "सब कुछ" मान लिया गया है। REDA मिथ्या प्रचार तंत्र के कारण अण्डा महात्म्य तो इतना विकसित हो चला है कि सभी का जी इसकी ओर ललकने लगा। व्यवसाइयों ६२१ -आचार्य देवेन्द्रमुनि का तो यह प्रयास रहेगा ही कि अण्डों की खपत अधिकाधिक बढ़े। उसके उपभोक्ताओं का वर्ग और अधिक व्यापक हो । विगत कुछ युगों से तो यह भ्रान्त धारणा विकसित की जा रही है कि अण्डे सामिष खाद्यों की श्रेणी में आते हैं, किन्तु सभी अण्डे ऐसे नहीं होते। कुछ अण्डे निरामिष भी होते हैं, अर्थात् उनकी गणना शाकाहारी पदार्थों में की जाती है। यह एक विचित्र, किन्तु असत्य है, मिथ्या प्रलाप है उनका यह मानना है कि ऐसे शाकाहारी अण्डों का उपभोग वे लोग भी कर सकते हैं जो अहिंसा व्रतधारी हैं। ये शाकाहारी अण्डे सर्वथा सात्विक समझे जा रहे हैं। वस्तुतः अण्डे न तो सात्विक होते हैं, न शाकाहारी और न ही अजैव। यह तो एक छद्मजाल है जो अण्डा व्यवसाय के विकासार्थ फेंका गया है और जिसमें अहिंसावादी वर्ग के अनेक जन उलझते जा रहे हैं। यह इन व्यवसाईयों की दुरभिसंधि है। अबोध अण्डा विरोधीजन स्वयं भी इस भ्रम से मुक्त नहीं हो पा रहे थे अबोध तो यह पहचान भी नहीं रखते कि कौन-सा अण्डा सामिष है और कौन-सी निरामिष कोटि का अण्डे -अण्डे तो सभी एक से होते हैं-फिर भला विक्रेता के कह देने मात्र से शाकाहारी अण्डा कैसे मान लिया जाए अपने धर्म और मर्यादा के निर्वाह के लिए भी उसने इस समस्या पर कभी चिन्तन नहीं किया, आश्चर्य है कुछ अण्डे शाकाहारी होते हैं, यह कहकर जनमानस को भ्रमित करने का ही षड्यन्त्र है। शाकाहारी पदार्थों की पहचान शाकाहारी पदार्थ क्या होते हैं यह पहचानना दुष्कर नहीं है। वनस्पतियाँ और उनके उत्पाद ही शाकाहरी श्रेणी के पदार्थ कहे जा सकते हैं। वनस्पति की उत्पत्ति मिट्टी, पानी, धूप, हवा आदि के सम्मिलित योगदान से होती है। कृषिजन्य पदार्थ शाकाहारी हैं। प्राकृतिक उपादानों का आश्रय पाकर ही ये पदार्थ उत्पन्न होते हैं। अतः ये निर्दोष है, सात्विक है। दूध जैसा पदार्थ भी शाकाहार के अन्तर्गत इसलिए मान्य है कि दुधारू पशु वनस्पति (घास-पात) चरकर ही दूध देते हैं। अब तनिक विचार कर देखें कि क्या अण्डे भी इसी प्रकार के पदार्थ हैं, ये मिट्टी-पानी आदि से नहीं जीवित प्राणी-मुर्गी से उत्पन्न होते हैं इनकी संरचना में मुर्गी के शरीर के रक्त, रस, मज्जादि का योग रहता है और उसकी उत्पत्ति भी प्रजनन स्थान से ही होती है। अण्डों को शाकाहार फिर भला कैसे माना जा सकता है। सभी विज्ञानी और प्रबुद्धजन अब यह मानने लगे हैं कि शाकाहारी अण्डा जैसा कोई पदार्थ नहीं हो सकता। फलों और सब्जियों के साथ, एक ही दुकान पर अण्डे भी बिकते हैं। यह छद्म रचा गया कि सामान्यजन अण्डों को शाक या सब्जी के समान Private & Bel
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy