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________________ sashaRNO-50 P १६१६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । न तुलसी है, न पराग है और न ही और कुछ है। यह है तो केवल धूम्रपान और तम्बाकू व्यसन के भयंकर परिणामों के प्रति जन 1300DDE 'घातक पदार्थ' है। जागृति और चेतना का प्रसार आज के युग की माँग है। जन शिक्षा अनेक जन पान के साथ जर्दा लेने के अभ्यस्त होते हैं। पान में । द्वारा समाज को सज्ञान कर व्यक्ति-व्यक्ति में इसके प्रति विकर्षण लिपटे रहने के कारण जर्दा मुँह के अवयवों के सीधे सम्पर्क में नहीं उत्पन्न कर जनमानस तैयार किया जाना अत्यावश्यक हो गया। आता-यह इस विधि में भले ही कुछ ठीक बात है, किन्तु चबा लेने प्रचार माध्यमों और स्वास्थ्य संगठनों, सामाजिक संगठनों और के बाद तो यह स्थिति भी नहीं रह सकती। पान के साथ सुपारी स्वैच्छिक संस्थाओं को यह पवित्र दायित्व वहन करना होगा। वही संकट उपस्थित कर देती है जो पान पराग के कारण बनती धूम्रपान और जर्दे का नारा हैहै। तम्बाकू अपने कुछ छद्म रूपों में भी प्रयुक्त हो रही है। कभी जो हमको अपनायेगा। किमाम के रूप में तो कभी मुश्कीदाने के रूप में यह पान के साथ वह मिट्टी में मिल जायेगा। काम में आती है। पान में जर्दा तो मिला ही है-इस रूप में वही तो इन संगठनों को इसके उत्तर में नारा बुलन्द करना चाहिएजर्दा अतिरिक्त मात्रा में बढ़ जाता है। इसका मारक और घातक प्रभाव केवल स्वरूप के बदल जाने से कम नहीं हो जाता। चाहे बन्द करो जर्दे का फाटक। नसवार, नासक, तपकीर का मंजन किया जाय और चाहे उसे सूंघ रुक जायेगा मौत का नाटक ॥ कर नशा किया जाय-यह भी हानिकारक ही होता है। व्यर्थ घमण्ड ost माटी का तू पुतला, करता क्यों गरूर है। घमण्ड करने से होते, मानव चकनाचूर है।टेर। घमण्ड की सुन लेना, फव्वारे की कहानी है। आकाश को छूने चला, फव्वारे का पानी है। सिर के बल नीचे गिरा, हो गया मजबूर है॥१॥ देखो राजा रावण का, बजा जग में डंका था। किया जब घमण्ड गया, मालिकपन लंका का। मारा गया युद्ध में वह, धड़ से सिर दूर है।।२।। यादवों के दिल में देखो, कितना घमण्ड था। उनका गया घमण्ड और, व्यवहार उद्दण्ड था। कट-कट मरे सारे व्यर्थ का फितूर है॥३॥ आज कहाँ गया देखो, कारूँ का खजाना है। कहता “पुष्कर" बनता क्यों, माया में दिवाना है।। "घमण्डी का सिर नीचा" कहावत यह मशहूर है।।४।। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) CSSAY000.00 BUOSTO RDantangapanarsionalD. 26. 0 6 . JPEGerson 60000.00000 andesh 0.000Raran
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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