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________________ 3 00036360000000000002toorate%e0. HO9000 600 GEsat VOO.2. १६१२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ आदमी को अण्डे की भीषण विनाशलीला को समझ लेना होगा- दिशाओं से सहकार अपेक्षित है। अहिंसावादियों का तो यह विशिष्ट तभी वह “निरोगी काया" का मूलभूत सुखं प्राप्त कर सकेगा, दायित्त्व हो गया है कि भ्रूणहत्या जैसे क्रूर कर्म-अण्डा-आहार की स्वस्थ रह सकेगा। क्या ही अच्छा होता कि जैसे सिगरेट पर उसके प्रवृत्ति को रोकने का प्रयत्न करें। अहिंसा परम धर्म है तो अण्डा हानिकारक होने की वैधानिक चेतावनी छपी होती है-वैसे ही प्रत्येक विरोधी अभियान का संचालक परमधर्मी होने का गौरव प्राप्त करेंअण्डे पर यह छाप भी लगी होती कि अण्डा पौष्टिक नहीं होता, इसमें भी कोई अस्वाभाविकता नहीं। यदि वे इस कुमार्ग पर आरूढ़ इसको खाने से हृदयरोग, कैंसर, रक्तचाप जैसे रोग होते हैं। होने वाले नये पथिकों को भी बोध देकर रोक सकेंगे तो यह उनकी आवश्यकता इस बात की है कि अण्डा विरोधी जनमानस उपलब्धि होगी। ऐसे व्यक्ति सच्चे जन नेता होंगे और उनके स्वर में निर्मित किया जाए। तभी इस अनैसर्गिक आहार के प्रति विकर्षण जनहित की शक्ति होगी। आत्मविश्वास के साथ जब वे नारा उत्पन्न किया जा सकेगा। यही विकर्षण व्यापक होकर जन स्वास्थ्य लगाएंगे-“अण्डा छोड़ो" तो अन्तः प्रेरणा के वशीभूत असंख्यजन का जागरूक रखवाला बन सकेगा। इस पवित्र कार्य में सभी की वाणी गूंज उठेगी-"सुख से नाता जोड़ो"। * साधारण लोगों की सेवा ही जब मनुष्यों को महान् बना देती है तो संघ सेवा यदि तीर्थंकर पद प्राप्त करा दे तो उसमें क्या आश्चर्य? * एक ही क्रिया-व्यापार अनेक मनुष्य करते हैं किन्तु वे न्यूनाधिक के भेद से कर्म बन्धन करते हैं। इसका कारण लेश्या भेद है। मनोबल कुछ मनुष्यों का तो स्वभाव से ही क्षीण होता है और कुछ का उसके संगी-साथी क्षीण कर देते हैं। * धरती का आधार धर्म है। धर्म धार्मिक व्यक्ति ही धारण कर पाते हैं। * धर्मनिष्ठ व्यक्ति सदा ही अपने दोष देखा करते हैं और दूसरे का मंगल चाहते हैं। * संकट के समय दिमाग में धर्म का सहारा और दिल में धर्म प्रेम होना चाहिये। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि 000001005064 F0.0000001 सन्दर्भ स्थल १. मेकडोनल्ड एनसायक्लोपीडिया ऑफ बईस ऑफ वर्ल्ड | २. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद् का २६ मई १९९० का निर्णय। ३. साल्मोनिला एण्टराइडीस फेज टाईप-४ (पीटी-४) 12.0 O J2008 02666D. ए मपयन 9046:0%AGO90000000 20:00:00 DOOR 00: 00 DISNOOROE0%
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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