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________________ 000660-003-00-60000000000063030-000m opmes 93 1922022 Paleoatopatha0000000000000 जन-मंगल धर्म के चार चरण ६०७ 100.00 DO भगवान महावीर और महात्मा गाँधी की भूमि पर बढ़ते कत्लखाने -पद्मश्री श्री यशपाल जी जैन, विद्यावाचस्पति (सम्पादक : जीवन-साहित्य) दरियागंज, दिल्ली एक घटना याद आती है। को भूनकर खा जाता था। वैदिक काल में नर-बलि दी जाती थी, महात्मा गांधी उड़ीसा में प्रवास कर रहे थे। एक दिन उन्होंने लेकिन धीरे-धीरे मनुष्य सुसभ्य और सुसंस्कृत होता गया। उसने देखा कि कुछ लोग गाजे-बाजे के साथ कहीं जा रहे हैं। आगे एक अनुभव किया कि जिस प्रकार हमें कष्ट होता है, उसी प्रकार सजा हुआ बकरा है। जिज्ञासावश गांधी जी ने आगे बढ़कर पूछा दूसरों को भी कष्ट होता है। उन्होंने नर-बलि का विरोध किया। नर कि वह जूलूस क्या है और वे कहाँ जा रहे हैं ? उत्तर मिला के स्थान पर पशुओं की बलि दी जाने लगी। विवेकशील लोगों ने "हमने कामाख्या देवी के मंदिर में मांनता मांगी थी कि यदि हमारा कहा-पशु भी तो जीवधारी हैं। उन्हें भी मारने पर कष्ट होता है। अमुक काम हो गया तो हम उन पर बकरा चढ़ा देंगे। देवी ने उन्होंने पशु-बलि पर भी अंकुश लगाने का आह्वान किया। हमारी प्रार्थना सुन ली, काम हो गया, अब हम इस बकरे की बलि ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर के समय में भी यज्ञों में चढ़ाने जा रहे हैं।" पशु-बलि दी जाती थी। महावीर ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। यह सुनकर गांधीजी ने उस मूक निरीह पशु को देखा, उनकी हिंसा पर अहिंसा की श्रेष्ठता का वातावरण बनाया। उन्होंने मानव आत्मा चीत्कार कर उठीं। उन्होंने कहा-"तुम लोग ऐसा क्यों कर जाति की सोती आत्मा को जगाया। रहे हो?" ____ लेकिन मनुष्य घोर स्वार्थी है। उसके अन्दर पशु विद्यमान है, उन्होंने जबाब दिया-"इसलिए कि देवी प्रसन्न होगी।" जो उसे अमानवीय कार्य करने के लिए सतत् प्रेरित करता रहता है। पशु-बलि एकदम रुकी नहीं। आज तो वह अपनी पराकाष्ठा पर गांधी जी ने आहत स्वर में कहा, “यदि देवी को बकरे से भी पहुँच गयी है। मांस का चलन अपने देश में तो बढ़ा ही है, विदेशों अधिक मूल्यवान भेंट की जाय तो वह और भी प्रसन्न होगी?" को भी मांस का भारी निर्यात होता है। किसी भी पशु का मांस "जी हाँ।" वर्जित नहीं है। हिन्दू के लिए गाय का मांस निषिद्ध है, मुसलमानों "तो सुनो ! गांधी ने कहा- "बकरे से भी अधिक कीमती मांस के लिए सूअर का, किन्तु उन दोनों का मांस भी धड़ल्ले से बाहर Padmaa मनुष्य का होता है। होता है न?" जाता है। “जी हाँ।" भूदान के सिलसिले में जब आचार्य विनोबा भावे कलकत्ता गये थे तो एक कत्लखाने के आगे कटने वाले पशुओं की आंखों में "क्या आपमें से कोई अपनी बलि देने को तैयार है?" गांधी वेबसी देखकर उन्होंने कहा था, "जी करता है कि इन निरीह जी ने गंभीर स्वर में पूछा प्राणियों के साथ कटने के लिए मैं भी अंदर चला जाऊँ।" सब चुप बाद में उन्होंने बम्बई के सबसे बड़े कत्लखाने देवनार पर तब गांधी जी ने कहा-"मैं तैयार हूँ। बकरे को छोड़ दो। मुझे सत्याग्रह करने की प्रेरणा दी। आज वहाँ अनेक वर्षों से सत्याग्रह ले चलो।" उन लोगों की आत्मा एकदम जाग्रत हो उठी। उन्होंने चल रहा है, लेकिन कहा जाता है कि आज उस कत्लखाने में कटने तत्काल बकरे को छोड़ दिया। वाले पशुओं को संख्या कई गुनी अधिक हो गई है। हमारे शरीर में पर आज वह संवेदनशीलता एकदम नष्ट हो गई है और जरा-सी चोट लगती है तो हम बिलबिला उठते हैं, लेकिन हमें उन संकीर्ण स्वार्थ के लिए धड़ाधड़ पशुओं का हनन किया जा रहा है। प्राणियों के वध में होने वाली पीड़ा का अनुभव नहीं होता, जिनमें वह कमाई का ऐसा धंधा बन गया है कि दिनोंदिन नये-नये हमारी तरह आत्मा है। कत्लखाने खुलते जा रहे हैं। इन कत्लखानों में यह दुष्कृत्य कितने । भारत की राजधानी दिल्ली में नये कत्लखाने खोलने की क्रूर ढंग से किया जाता है, उसे कोई सहृदय व्यक्ति देख नहीं योजना के समय प्रशासकों से बात हुई थी। उनके तर्कों में दो तर्क सकता। देश में जगह-जगह पर ये कत्लखाने खुल गए हैं और नये । प्रमुख थे। पहला यह कि हमारे देश में मांसाहार का चलन बढ़ रहा नये खुलते जा रहे हैं। है। मांस की मांग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। हमें उसकी पूर्ति किसी जमाने में आदमी जंगली था, असमझ था। वह आदमियों करनी है। 88560020009080500 प ण पडणरालयणपत्र पर एणयपत्याएननरावर Po30900500000.00hpohtoo0-008066006.0000000000000000000000000 09005001608609009
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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