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________________ जन-मंगल धर्म के चार चरण मांसाहारी पदार्थ में यह इतना नहीं है। गेहूं को विटामिन 'ई' का सर्वश्रेष्ठ / सर्वोपरि स्रोत माना जाता है। जहाँ तक कैलोरियों (ऊर्जाकि) का प्रश्न है, मांसाहार को कैलोरियों का अच्छा स्रोत नहीं माना गया है। गेहूँ, चावल और सोयाबीन से क्रमशः प्रति १०० ग्राम ३५०, ३४६ और ४३२ कैलोरियाँ मिल सकती है, जबिक किसी भी मांसाहारी पदार्थ में १२५ कैलोरी प्रति १०० ग्राम से अधिक प्राप्य नहीं हैं। अब यह लगभग पूरी दुनिया ने मान लिया है कि मांसाहार से भू-क्षरण (इरोजिन), मरुस्थलीकरण (डेजर्टफिकेशन), वर्षा वनों की बर्बादी (डीफॉरेस्टेशन ऑफ रेनफोरेस्ट्स), पृथ्वी की उष्णता में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), जल प्रदूषण (वाटर पॉल्यूशन) तथा कीटनाशी विषों के फैलाव जैसे दुष्परिणाम प्रकट हुए हैं, इसीलिए सेव्ह अर्थ फाउंडेशन (७०६ फ्रेडरिस स्ट्रीट सान क्रूझ सीए ९५०६२) ३ द्वारा प्रकाशित 'अवर फूड अवर अर्थ' (मार्च ६०१ १९९२) के पृष्ठ पर स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि यदि हमने अपनी व्यक्तिगत आहार आदतों में परिवर्तन नहीं किया और मांस, पौल्ट्री तथा डेअरी उत्पादों की हमारी माँग इतनी ही या इससे अधिक बनी रही तो संसार क्रमशः विनाश की ओर बढ़ जाएगा और यदि हमने अपनी खानपान की आदतों में परिवर्तन किया तो हम धरती के घाव भर सकेंगे और आने वाली पीढ़ी के लिए एक संपुष्ट जगत् की रचना कर पायेंगे। इन तमाम कारणों से स्पष्ट है कि शाकाहार आज सबमें अधिक प्रासंगिक है और वही इस धरती को विनाश से बचा सकता है। पता : ६५, पत्रकार कालोनी, कानाडिया रोड, इन्दौर (म. प्र. ) विशेषज्ञों ने माँसाहार के दुष्प्रभावों का जो विवरण दिया है, उसमें दो टूक कहा गया है कि माँसाहार के कारण वन मरुस्थल बन रहे हैं, पानी ज़मीन में गहरे उतरता जा रहा है, पृथ्वी की उपजाऊ परत (टॉप्सॉइल) निरन्तर नष्ट हो रही है, समुद्र-धरती आकाश तीनों रासायनिक विष से पटते जा रहे हैं। इस तरह मनुष्य जीवन की गुणवत्ता को हर पल कम कर रहा है और खुद को तथा आगामी पीढ़ी को आँख मूँद कर अत्यन्त बेरहमी के साथ मृत्यु के मुँह में धकेल रहा है। 030 Jal-Education Dewonalo 1000000 आम आदमी संभवतः यह नहीं जानता कि जल की कमी का सबमें बड़ा कारण माँसाहार है। जो आँकड़े इस संदर्भ में हमारे सामने हैं, उनसे हम चकित न हों, बल्कि उनकी समुचित व्याख्या करें। विशेषज्ञों का अभिमत है कि एक पौंड माँस के उत्पादन में २,५०० गैलन पानी की खपत होती है। पानी का यह परिमाण एक पूरे परिवार के लिए महीने भर के लिए पर्याप्त होता है कहाँ एक पीड माँस और कहाँ पूरे परिवार के लिए महीने भर पानी ! अमेरिका से जो आँकड़े हमें मिले हैं उनके अनुसार एक माँसाहारी के पूरे दिन के आहार के उत्पादन में ४,000 गैलन पानी लगता है, जबकि एक शुद्ध शाकाहारी के भोजन पर दिन-भर में मात्र ३०० गैलन पानी पर्याप्त होता है। है कोई तुलना ? एक अन्य सर्वे के अनुसार १०० पौंड गेहूँ पैदा करने में जितना जल लगता है, उतना सिर्फ एक पौंड माँस के उत्पादन में लग जाता है। -डॉ. नेमीचन्द जैन ( शाकाहार मानव-सभ्यता की सुबह पेज ८१-८२ से) 8 • 2075 mu ि www.jainelbrary.or
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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