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________________ जन-मंगल धर्म के चार चरण बढ़ता प्रदूषण एवं पर्यावरणीय शिक्षा सम्पूर्ण जड़ और चेतन पदार्थ जो हमारे चारों ओर दिखाई देते हैं या नहीं दिखाई देते हैं, उन सभी पदार्थों के सम्मिलित स्वरूप को पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण का समस्त जीवों से गहरा सम्बन्ध होता है। यदि पर्यावरण शुद्ध होगा तो धरातल पर रहने वाले जीव स्वस्थ होंगे और पर्यावरण प्रदूषित होगा तो प्राणी अनेक रोगों से ग्रसित होते रहेंगे। प्राणियों की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता घटती जाएगी तथा विश्व विनाश के कगार पर पहुँच जाएगा। आज हमारा देश ही नहीं सारा विश्व पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से चिन्तित है। विश्व की प्रत्येक वस्तु किसी-न-किसी प्रकार से प्रदूषित होती जा रही है। हवा, पानी और खाने के पदार्थ भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण मानवतावादी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती का विषय बनता जा रहा है। निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगीकरण, शहरीकरण और प्राकृतिक साधनों के तेजी से दोहन के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी के मध्य तक इस प्रदूषण से मानव जाति घुटने लगेगी। जल, थल और वायु पूर्ण रूप से दूषित हो जाएँगे । पर्यावरण प्रदूषण एक अनावश्यक परिवर्तन है। एक सर्वेक्षण के अनुसार वायु का प्रदूषण असीमित मात्रा में बढ़ने लगा है। प्रतिवर्ष प्रदूषित वायु से अमेरिका में लगभग तैंतीस करोड़ डालर का अनाज नष्ट हो जाता है। भारतीय राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान का कहना है कि वर्षा के मौसम को छोड़कर शेष महीनों में दिल्ली में सबसे अधिक वायु प्रदूषण रहता है और यही स्थिति बम्बई, कलकत्ता और कानपुर की है। प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव जलीय स्रोतों पर हो रहा है। छोटे-छोटे एवं बड़े उद्योगों से गन्दा पानी नालों से नदियों में मिलकर पानी को दूषित कर रहा है। उस पानी में हैजा, डिप्थीरिया आदि अन्यान्य रोगों के रोगाणु होते हैं। ये रोगाणु नदियों के पानी को दूषित कर देते हैं। अनेक सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है। कि गंगा का पानी पूर्ण रूप से गन्दा हो । हो चुका है। औद्योगिक संस्थानों में प्रयुक्त ईंधन (कोयला, तेल आदि) के जलने से जहरीली गैस बनती है, जो हवा में बिखरकर सभी तक पहुँचती है। अधिक ताप के कारण नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी बनते हैं। ये ऑक्साइड हाइड्रोकार्बन के साथ मिलकर एक जटिल किन्तु हानिकारक फोटोकेमिकल ऑक्साइड बनाते है ये रसायन वायुमण्डल में स्थित कणों के साथ मिलकर धुन्ध का निर्माण करते है, जो सूर्य की किरणों में गतिरुद्धता उत्पन्न करती है। ५८७ -डॉ. हेमलता तलेसरा, रीडर शिक्षा (सेन्टर ऑफ एडवान्स स्टडीज इन एज्युकेशन, फेकल्टी आफ एज्युकेशन एण्ड साइकॉलाजी एम. एस. विश्व विद्यालय, बड़ोदरा (गुजरात)) आणविक शक्ति के निरन्तर विकास एवं परीक्षण के कारण भी प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इससे रेडियोधर्मिता बढ़ी है। इसका अनुवाशिक प्रभाव पड़ता है, जो कि आगे चलकर मानव सभ्यता के विनाश का कारण हो सकता है। प्राकृतिक सभ्यता का विदोहन करने से भी पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। वनों की कटाई से अनेक समस्याएँ पैदा होने लगी है, क्योंकि वातावरण की शुद्धता बनाए रखने में वनस्पति महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालयों के द्वारा प्रदूषण से बचने के लिए अनेक उपाय कर रहा है। यह संगठन पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली हानियों से सचेत कर रहा है। संगठन द्वारा किया जाने वाला कार्य इस विशाल समस्या के लिए नगण्य है। इसके लिए तो पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ जन आन्दोलन चलाया जाना चाहिए। जन-जन को इसकी विभीषिका का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए हमारी आज की शिक्षा व्यवस्था को पर्यावरण से सम्बन्धित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। पर्यावरण शिक्षा को विद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में लागू करके छात्रों को प्रदूषण से बचने का ज्ञान देना चाहिए। हमारे ऋषि-मुनि यदि अपने व्याख्यान में पर्यावरण शिक्षा को जोड़े तो अधिक जनसमुदाय को सहज ही में पर्यावरण के बारे में जागरूक किया जा सकता है। पर्यावरण शिक्षा बालक चारों ओर से पर्यावरण से जुड़ा हुआ है, जिसमें वह जीता है, एक दूसरे को प्रभावित करता है और पर्यावरण साधनों पर आश्रित रहता है। जिसके बिना वह जी नहीं सकता है। पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध उस वातावरण से है, जिसमें बालक जीवित रहते हैं, सीखते हैं तथा काम करते हैं। काफी संख्या में आज ऐसे लोग मिल जायेंगे जो गंदी, संकरी बस्तियों में ठूसे हुए है। ऐसी दशा में सबसे पहली आवश्यकता यह है, कि वे स्वस्थ, सुखी व उत्तरदायित्वपूर्ण पारिवारिक जीवन जीने के उपाय सीखे। रसूल (१९७९) ने पर्यावरण शिक्षा में इसके चार महत्त्वपूर्ण पक्षों को जोड़ने की बात कही है, जो इस प्रकार है १. भौतिक पर्यावरण - जल, वायु और भूमि । २. जैविक पर्यावरण-पौधे और जन्तु। ३. जनोपयोगी पर्यावरण कृषि, उद्योग, वन, बस्ती, यातायात, जल आपूर्ति, जल ऊर्जा और मनोरंजन ।
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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