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________________ 50018066 20050300. 000030033oH0 ५७८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । सकता है। वर्तमान में ओजोन कवच के छिद्रयुक्त होने से कैंसर करता है।१९ जल की इस अमृतमयता को सुरक्षित रखने के लिए रोगियों की संख्या में छः प्रतिशत वृद्धि हुई भी है। जहाँ कौटिल्य अर्थशास्त्र में जल का प्रदूषण करने वाले को कठोर उद्योगों से अपसृष्ट कुछ गैसों से वातावरण का अम्लीकरण भी दण्ड देने की व्यवस्था दी गयी थी वहीं समाज के मार्गदर्शकों ने भयंकर परिणाम देता है, इसके फलस्वरूप जर्मनी के वन उजड़ रहे । नदियों में सोने-चाँदी और ताँबे के सिक्के डालने की प्रथा धर्म के हैं, उत्तरी अमेरिका की झीलें सूख रही हैं, ब्राजील की कृषिभूमि रूप में प्रारम्भ करवा दी थी, जिससे अनजाने जल में होने वाला अनुपयोगी होती जा रही है और ताजमहल जैसे भव्य ऐतिहासिक प्रदूषण दूर हो सके और उसकी गुणवत्ता न केवल सुरक्षित रहे भवन बदरंग होते जा रहे हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अपितु बढ़ती भी रहे। स्मरणीय है कि सुवर्ण के सम्पर्क में आया वातावरण में विद्यमान इन अम्लों के अधिक बढ़ जाने पर वे वर्षा हुआ जल कीटाणुरहित होकर हृदय के रोगों से सुरक्षा प्रदान करता के साथ भूमि पर आते हैं, उस समय कभी तो सल्फ्यूरिक एसिड, है और ताम्बे के संसर्ग से वह उदर रोगों को दूर करने वाला हो कभी हाइड्रोक्लोरिक एसिड और कभी नाइट्रिक एसिड की मात्रा | जाता है। इसी प्रकार रजत से भावित जल श्वांस संस्थान सम्बन्धी इतनी अधिक होती है कि उपर्युक्त हानि के अतिरिक्त प्राणियों के रोगों का निवारण करता है। सामान्य स्वास्थ्य पर भी भयंकर प्रभाव प्रकट होते हैं। इन अम्लीय । इसके अतिरिक्त उद्योगों में प्रयोग के लिए विविध प्रकार की वर्षा से नदियों का जल भी प्रदूषित हो जाता है। गैसों का भण्डारण होता है। अनेक बार उन भण्डारित गैसों का औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला अपसृष्ट जल इतना रिसाव अथवा विस्फोट आकस्मिक रूप स पर्यावरण को इतना कचरा लेकर नदियों में पहुँचता है कि उनका जल पीने को कौन प्रदूषित कर देता है कि लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना कहे, सिंचाई के योग्य भी नहीं रह जाता। इस समय देश में । पड़ता है। १९८४ में भोपाल कांड, १९८६ में उक्रेन स्थित सर्वाधिक दूषित जल यमुना नदी का है, जिसके वैज्ञानिक अध्ययन चेरनोबिल विस्फोट और १९८६ में ही राइन नदी की भयंकर आग से पता चला है कि यमुना के प्रति १०० मिलिलीटर जल में आदि की उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। ७,५00 कौलिफार्म बैक्टीरिया हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त (२) उद्योगों से प्रसूत उपभोग-सामग्री से प्रदूषण-उद्योगों द्वारा Dosto हानिकारक हैं एवं अनेक रोगों को जन्म देने वाले हैं। इसी प्रकार | मानव के उपभोग के लिए जो विविध उपादान तैयार किये जाते हैं, बम्बई के निकट कल्याण अम्बरनाथ और उल्हासनगर के उद्योगों से । वे स्वयं में भी अनेक प्रकार का प्रदूषण पैदा करते हैं। इनमें निकलने वाले दूषित जल का वैज्ञानिक परीक्षण करने पर पाया शृंगार-प्रसाधन आदि कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जो अत्यन्त सीमित क्षेत्र में गया कि उल्हास नदी में प्रतिवर्ष १,१०० किलोग्राम ताँबा, । प्रदूषण पैदा करते हैं और उनका प्रभाव मुख्यरूप से उनका उपभोग Ja %88७,000 किलोग्राम सीसा, ४ लाख किलोग्राम जिन्क, ७,000 करने वालों पर पड़ता है। इसी श्रेणी में केश को काला करने वाले कि. ग्रा. पारा और ५०० कि. ग्रा. क्रोमियम के कण प्रवाहित होते खिजाब को लिया जा सकता है, जो चर्मरोगों को तो उत्पन्न करता हैं, जो प्रत्यक्षतः विष हैं। शराब की फैक्टरियों से निकलने वाले ही है, कभी-कभी कैंसर का भी जन्मदाता हो जाता है। सिगरेट, जल में क्लोराइड, नाइट्रेट, फास्फेट, पोटेशियम और सोडियम के सिगार आदि पदार्थ उपभोग करने वाले के साथ पड़ोसी को भी कण होते हैं, जो नदियों के जल को ही नहीं, अपितु तालाबों और हानि पहुँचाते हैं। यद्यपि उनसे वायुमण्डल का प्रदूषण सीमित मात्रा कुओं के जल को भी प्रदूषित कर देते हैं। उद्योगों से निकला हुआ में ही होता है। कार, स्कूटर, हवाई जहाज आदि ऐसे भोग साधन D.SED यह अपस्रष्ट (कचरा) जल के साथ-साथ भूमि को भी प्रदूषित हैं, जिनमें पेट्रोल का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है और उस SEARD करता है और उसकी उत्पादक शक्ति को क्षीण या समाप्त कर ईंधन के प्रज्वलन के अनन्तर कार्बनमोनोऑक्साइड आदि गैसें देता है। निकलती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। दिल्ली, पानी का प्रदूषण चाहे तालाब में हो, चाहे नदी में, अन्ततः वह बम्बई, वाशिंगटन, न्यूयार्क और लन्दन आदि महानगरों में इन 4 समुद्र में ही मिलता है, इससे प्राणवायु के उत्पादन का सन्तुलन भोगसाधनों के द्वारा जो प्रदूषण उत्पन्न हुआ है, वह इस बात का बिगड़ता है। भगवान् महावीर ने कहा है-तंसे अहियाई तंसे प्रमाण है। इसी प्रकार सीमेंट, सीमेंट निर्मित चादरें आदि से अबोहिये अर्थात् जल की हिंसा मनुष्य के अहित तथा अबोधि का निकलने वाली गैसें भी स्वास्थ्य के लिए हानिकर हैं, इस पर 0 कारण है। जल के सम्बन्ध में प्राचीनकाल से स्वीकार किया जाता है वैज्ञानिकों ने अनेक बार अपने मत प्रकट किये हैं। कि जल अमृत का ओढ़ना और बिछौना (आस्तरण अपिधान) दह नगर प्रदूषण-उद्योगों के विस्तार के फलस्वरूप विगत वर्षों में 32 है।१५ यह अभीष्ट फलों को देने वाला है और सबका पालन करने ग्रामीण जनता का नगरों की ओर आकृष्ट होना प्रारम्भ हो गया है, वाला है।१६ यह सुख और ऊर्जस्विता प्रदान करता है।१७ यह । परिणामतः छोटे कस्बे नगरों में और नगर महानगरों में परिवर्तित R 0 विश्व का शिवतम् रस है,१८ जो दीर्घायुष्य और वर्चस्व प्रदान होते जा रहे हैं। ग्रामों में जहाँ सामान्यतः दो-ढाई सौ से लेकर RJI 1 ए OSOUPO infAR( 66002922:RATORace 2463050000.03.26.300ROSCOCOSDEPA00-00000000 सायलयकायम 0000.00.5:00 80000.00 Rasiww.antay. 1650DL022
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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