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________________ 19600000000180.0. 08.03.03ae ०.००9603002 700000000000 600000 20.000000000000 Do:0ACANAGER-09078.00000 100%a DomePapadaoo oDODDDDOORDANDADDA उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । DB मछलियों का मर जाना, धरती का खराब हो जाना आदि प्रकोप हो । की ऐसी हिंसा और असंयम को बंद कर दिया जाए तो पूर्वोक्त 5 - जाते हैं। प्रकार से धन-जन-विनाश भी बंद होगा, साथ ही वायु-प्रदूषण एवं इन सब दुष्कृत्यों से दूर रहने के लिए भगवान महावीर ने पर्यावरण-असंतुलन पर भी काबू पाया जा सकेगा। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले सद्गृहस्थों के लिए एक व्यक्ति पूरे साल में जितनी ऑक्सीजन का उपयोग करता D “स्फोटकर्म" (फोड़ीकम्मे) यानी जमीन में विस्फोट करने के खरकर्म है, उतनी ऑक्सीजन एक टन कोयला जलने से नष्ट हो जाती है. का सर्वथा (तीन करण-करना कराना और अनुमोदन रूप से तथा । इतनी ही ऑक्सीजन १०० किलोमीटर दौड़कर एक मोटरगाड़ी तीन योग-मन-वचन-काया से) निषेध किया था। इसी तरह । खर्च कर देती है। इनसे अग्निकाय की हिंसा तो होती ही है, साथ 85 पृथ्वीकायिक (पृथ्वी ही जिसका शरीर है, उन) जीवों को नष्ट ही अनेक प्राणियों के जीवन को भी खतरा पहुँचता है। करने, सताने, गहरे खोदने, फोड़ने आदि के रूप में हिंसा का धूम्रपान भी अग्निकायिक हिंसा और वायुप्रदूषण का जबर्दस्त निषेध करते हुए कहा था-"मेधावी पुरुष हिंसा के दुष्परिणाम को अंग है। धूम्रपान से दूसरों के जीवन को हानि तो पहँचती ही है, जानकर स्वयं पृथ्वी-शस्त्र का समारम्भ न करे, न ही दूसरों से पीने वाले व्यक्ति की धीरे-धीरे आत्महत्या भी हो जाती है। ब्रिटिश उसका समारम्भ (घात) कराए और न समारम्भ करने वाले का । मेडिकल सर्जन्स की २५ अगस्त, १९७४ की रिपोर्ट से ज्ञात होता HERE अनुमोदन करे। मनुष्य पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा के साथ है कि सिगरेटों के निर्माण में करीब ढाई हजार पौण्ड वार्षिक व्यय केवल पृथ्वीकायिक जीवों की ही नहीं, अन्य अनेक तदाश्रित या होता है, वहाँ १९७४ में एक वर्ष में ३७000 व्यक्ति इसके कारण तत्सम्बन्धित प्राणियों की हिंसा करता है, अतः पृथ्वीकायिक हिंसा होने वाले रोगों से मृत्यु शय्या पर सो गए। अमेरिका में सन् 836 से महाहानि की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा था-"नाना १९६२ में ४१000 लोग धूम्रपान के कारण मर गए। भारत में P-20 प्रकार के शस्त्रों (द्रव्यशस्त्रों तथा भावशस्त्रों) से पृथ्वी-सम्बन्धी सिगरेट, बीड़ी, हुक्का या तम्बाकू पीने-खाने वालों की मृत्यु संख्या - हिंसाजन्य कर्म में व्याप्त होकर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करने प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। प्रो. हिचकान आदि की सम्मति है कि वाला व्यक्ति (न केवल उन पृथ्वीकायिक जीवों की ही हिंसा करता । शराब आदि मादक द्रव्यों की अपेक्षा तम्बाकू से बुद्धि का ह्रास, DAD है, अपितु) अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करता है। इन्द्रिय-दौर्बल्य, स्मरण शक्ति की हानि, चित्त की चंचलता तथा यह ध्यान रहे कि जैनधर्म जहाँ प्राणिमात्र की दृष्टि से विनाश और नाश और मस्तिष्कीय रोग अधिक होते हैं। जीवसृष्टि की महाहानि की दृष्टि से अहिंसा और संयम पर विचार Flag प्रस्तुत करता है, वहाँ विज्ञान उस पर प्रदूषण एवं प्राणिजगत् के बड़े-बड़े कल-कारखानों में तो अग्निकायिक हिंसा से या 859 लिए दुःखवृद्धि तथा केवल मनुष्यमात्र की दृष्टि से विचार करता अग्निकाय के असंयम से प्रदूषण बढ़ता ही है; धूम्रपान से भी है। किन्तु परिणाम की दृष्टि से दोनों एक ही निष्कर्म पर पहुँचते हैं। प्रदूषण कम नहीं बढ़ता। इसी सिलसिले में भगवान् महावीर ने कहा-"अग्नि के जीवों को पीड़ित करना अपने आपको पीड़ित अग्निकाय से होने वाला प्रदूषण करना है। जो अग्नि-शस्त्र के स्वरूप तथा उससे होने वाली हानि को व अग्निकाय की हिंसा से होने वाला प्रदूषण भी वायु-प्रदूषण से जानता है, वह स्वयं को जानता है। जो स्वयं को जानता है, वह सम्बन्धित है। ऑक्सीजन जीने के लिए आवश्यक है। किन्तु इन्धन अग्निकायिक शस्त्र के स्वरूप को जानता है।"९ जिस व्यक्ति में 388 और वायु के प्रदूषण से वायुमण्डल की ओजोन परत को चोट अग्नि पर संयम प्रतिफलित नहीं होता है, वह इन विनाशलीलाओं पहुँचती है, और ओजोन परत के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से पृथ्वी पर (बम-विस्फोट, हवा में फायर, इंधन आदि से छूटने वाले गैस से - जीवधारियों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। दम घुटना आदि हानियों) को जानता हुआ भी अपने पैरों पर स्वयं अतः अग्निकाय की हिंसा अग्निकाय की ही हिंसा नहीं है; कुल्हाड़ी मारता है। आधुनिकीकरण की होड़ में बढ़ते हुए धूल कणों अपितु उसके आश्रित या सम्बन्धित अनेक जीवों का विनाश, तथा रेडियोधर्मी विकिरण के कारण विश्व स्तर पर तापक्रम में भी धन-जन हानि तथा वातावरण (पर्यावरण) का असन्तुलन भी अन्तर आया है। इससे ध्रुवप्रदेशों की बर्फ पिघलने लगी है। समुद्रीय Dअवश्यम्भावी है। इस तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है, झरिया (धनवाद) जल का स्तर ६० फुट ऊँचा हो सकता है। इससे केवल एक देश की कोयले की खान, जहाँ खान में काम करने वाले अनेक खनिक और एक जातीय प्राणी (मानव) के लिए ही नहीं, विश्व की समूची मौत के मुँह में चले गए, उस खान में कई वर्षों से आग लगी हुई जीव सृष्टि को खतरा है। जंगल में आग लगाने आदि से वनस्पति है। अभी तक बुझी नहीं है। सरकार को वह खान बंद कर देनी आश्रित अनेक प्रकार के जीवों की प्राण हानि हो जाती है, यह 63 पड़ी, और झरिया शहर खाली करने का नोटिस सभी नागरिकों को भगवान् महावीर ने कहा। देना पड़ा। यहाँ का जन-जीवन भी इससे प्रभावित है। यही कारण है अग्निकाय के इस समारम्भ में गृद्ध (आसक्त) व्यक्ति उन-उन Pop कि चौदहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड जैसे शहरों में कोयला जलाने पर विविध प्रकार से अग्निकायिक शस्त्रों से अग्निकाय का आरम्भ P.D. वहाँ की सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था। अतः यदि पृथ्वीकाय (हिंसा) करते हुए उसके आश्रित अनेक जीवों की हिंसा कर बैठते Video SOODS Kास्तव 16.00A D PAGES Regargedeo 100.00000360PERBereplgariamonly POPPED POS 0ODS
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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