SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 673
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर . D.. वैदिक एवं बौद्ध संस्कृति के अनुसार शिक्षा के लिए आया ५. शील की दृढ़ता-शिथिलाचारी या खण्डिताचारी अथवा हुआ विद्यार्थी सदाचारी और प्रतिभाशाली होना चाहिए। दुष्ट । संकल्प के अस्थिर व्यक्ति पर कभी भी श्रुतदेवता (सरस्वती) प्रसन्न स्वभाव का शिष्य कड़े जूते के समान होता है जो पहनने वाले का नहीं होते। अतः शैक्ष अपने चरित्र में दृढ़ निष्ठाशील रहे। पैर काटता है दुष्ट शिष्य आचार्य से विद्या या ज्ञान ग्रहण करके ६. रस लोलुप न हो-भोजन में चटोरा भजन नहीं कर सकता। उन्हीं की जड़ काटने लग जाता है।११ अतः सर्वप्रथम शैक्ष-विद्यार्थी इसी प्रकार रस या स्वाद में आसक्त व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर की योग्यता और पात्रता की परीक्षा करना आवश्यक है। सकता। शिक्षार्थी को अपनी सभी इन्द्रियों पर पूर्ण संयम रखना शिक्षा योग्य आय की परिपक्वता के बाद शैक्ष का भावात्मक जरूरी है। विकास देखना जरूरी है। विनय, संयम, शांति और सरलता-ये ७. क्रोध नहीं करनाचार गुण मुख्य रूप से देखे जाते हैं। स्थानांग सूत्र के अनुसार १२१. विनीत, २. विकृति-अप्रतिबद्ध (जिह्वा-संयमी), ३. व्यवशमित ८. सत्यभाषी होनाप्राभृत (उपशान्त प्रकृति) और ४. अमायावी (सरल हृदय)- ये आठ गुण, या योग्यता जिस व्यक्ति में होती हैं। वही जीवन चार प्रकार के व्यक्ति, शिक्षा एवं शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के । में शिक्षा-ज्ञान प्राप्त कर सकता है, अपनी प्रतिभा का विकास कर योग्य अधिकारी माने गये हैं। इसके विपरीत, अविनीत आदि को सकता है।१५ शिक्षा देने का निषेध है। दुष्ट प्रकृति, मूढमति, और कलह करने वाले व्यक्ति को शिक्षा देने का सर्वथा निषेध भी मिलता है।१३ इन्हीं गुणों का विकास व विस्तार करते हुए आचार्य 1000 जिनसेन१६ ने विद्यार्थी की योग्यता की १५ कसोटियां बताई हैंऐसे व्यक्ति को ज्ञान देता हुआ गुरु स्वयं दुखी और संतप्त हो जाता है। १. जिज्ञासा वृत्ति उत्तराध्ययन में बताया है-कृतज्ञ और मेधावी शिष्य को शिक्षा २. श्रद्धाशीलता देते हुए आचार्य वैसे ही प्रसन्न होते हैं जैसे अच्छे घोड़े को ३. विनयशीलता हाँकता हुआ घुड़सवार, किन्तु अबोध और अविनीत शिष्य को ४. शुश्रूषा (सुनने की इच्छा व सेवा भावना) शिक्षा देता हुआ गुरु वैसे ही खिन्न होता है, जैसे दुष्ट घोड़े को ५. श्रवण-पाठ श्रवण के प्रति सतर्कता हाँकता हुआ उसका वाहक।१४ विनीत शिष्य अपने शिक्षक, गुरु की कठोर शिक्षाएँ भी यह समझकर ग्रहण करता है कि ये मुझे अपना ६. ग्रहण करने की क्षमता पुत्र व भाई समझकर कहते हैं, जबकि दुष्ट बुद्धि शिष्य मानता है ७. धारण-स्मरण रखने की योग्यता गुरु तो मुझे अपना दास व सेवक मानते हैं। शिष्य की दृष्टि का ८. स्मृति यह अन्तर उसके मानसिक विकास व भावात्मक विकास को सूचित ९. ऊह-तर्क शक्ति, प्रश्नोत्तर करने की योग्यता करते हैं। १०. अपोह-स्वयं विचार करने की क्षमता उत्तराध्ययन में ही शिष्य या विद्यार्थी की पात्रता का विचार ११. निर्णीति-स्वयं निर्णय लेने की क्षमता करते हुए बताया है-शैक्ष में कम से कम ये आठ गुण तो होने ही १२. संयम चाहिए १३. प्रमाद का अभाव १. हास्य न करना-गुरुजनों व सहपाठी विद्यार्थियों का उपहास १४. सहज प्रतिभा क्षयोपशम शक्ति न करना, व्यंग्य वचन न बोलना, मधुर व शिष्ट भाषा बोलना।। १५. अध्यवसाय। २. इन्द्रिय दमन करना-विकारशील या स्वेच्छाचारी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अतः इन्द्रिय विजेता बनना चाहिए। उक्त योग्यताओं के प्रसंग में कुछ अयोग्यताओं पर भी विचार किया गया है, जिनके कारण व्यक्ति शिक्षा से वंचित रह जाता है। ३. मर्म वचन न बोलना-मधुर व शिष्ट भाषा जहां गुरुजनों अथवा ज्ञान प्राप्त करके भी उसका सदुपयोग नहीं कर सकता। का मन जीत लेती है, वहीं कटु व मर्म वचन उनका हृदय दग्ध कर डालते हैं। इसलिए शिष्य व विद्यार्थी कभी अप्रिय व मर्म घातक उत्तराध्ययन सूत्र के१७ अनुसार शिक्षा प्राप्ति के लिए पाँच वचन न बोले। बाधक कारण ये हैं४. शीलवान-यह गुण व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करता है १. अहंकार, २. क्रोध, ३. प्रमाद (निद्रा, व्यसन आदि), ४. [3 और लोगों में उसकी विश्वसनीयता बढ़ाता है। रोग, ५. आलस्य। ] A000.00DN000ला PollosurtermatonsDOES 20000000000000000R S तलतात SS 30000000000000 AMRAPARo .90.0000000000000000000 9368500 9.00
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy