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________________ | अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर 2- DVDIDO:00 व्यक्तित्व के समग्र विकास की दिशा मेंजैन शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता LADDODODOR-07 -श्रीचन्द सुराना 'सरस' ससांर का घटक है व्यक्ति, और व्यक्ति की पहचान होती है | नहीं है। विकास के सभी द्वार-शिक्षा से खुलते हैं। उन्नति के सभी 2009 उसके व्यक्तित्व से। जैस अग्नि की पहचान, उष्मा और प्रकाश से, मार्ग ज्ञान के राजमार्ग से ही निकलते हैं, अतः संसार के समस्त जल की पहचान उसकी शीतलता और तरलता से होती है, उसी विचारकों ने शिक्षा और ज्ञान को सर्वोपरि माना है। एक शायर का प्रकार व्यक्ति की पहचान उसके व्यक्तित्व–अर्थात् शारीरिक एवं कहना हैमानसिक गुणों से होती है। सआदत है, सयादत है, इबादत है इल्म। स्वेट मार्टेन ने व्यक्तित्व के कुछ आवश्यक घटक बताये हैं- हकूमत है, दौलत है, ताकत है इल्म। स्वस्थ शरीर, बौद्धिक शक्ति, मानसिक दृढ़ता, हृदय की उदारता, एक आत्मज्ञ ऋषि का कथन हैभावात्मक उच्चता (करुणा-मैत्री-सेवा आदि) तथा व्यावहारिक आयाभावं जाणंति सा विज्जा दुक्खमोयणी दक्षता, समयोचित व्यवहार आदि। -इसिभासियाई-१७/२ लार्ड चेस्टरन ने वेशभूषा (ड्रेस-Dress) और बोलचाल की जिससे अपने स्वरूप का ज्ञान हो, वहीं विद्या दुःखों का नाश शिष्टता-सभ्यता (एड्रेस-Adress) को व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग करने वाली है। माना है। भर्तृहरि ने नीतिशतक में महान व्यक्तित्व के घटक गुणों की शिक्षा का अर्थ-सर्वांग विकास चर्चा करते हुए लिखा है शिक्षा का अर्थ-केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है। अक्षर ज्ञान विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, शिक्षा का मात्र एक अंग है। जैन मनीषियों ने शिक्षा को बहुत व्यापक और विशाल अर्थ में लिया है। उन्होंने ज्ञान और आचार, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः बुद्धि और चरित्र दोनों के समग्र विकास को शिक्षा का फलित यशसि चाभिरुचि र्व्यसनं श्रुती, माना है। प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्॥ -नीतिशतक-६३ आधुनिक शिक्षा-शास्त्रियों-फ्रोबेल, डीवी, मोन्टेसरी आदि ने विपत्ति में धैर्य, ऐश्वर्य में सहिष्णुता, विकास के समय में स्वयं शिक्षण की अनेक विधियों-प्रणालियों (Teaching Method) का पर नियंत्रण, सभा में वचन की चतुराई, कभी हताश नहीं होना, प्रतिपादन किया है, किन्तु मुख्य शिक्षा प्रणालियां दो ही हैं-१. सुयश के कार्य में रुचि, पढ़ने में निष्ठा आदि गुणों से व्यक्तित्व अगमन (Inductive) और २. निगमन (Deductive)| निखरता है, चमकता है। अगमन शिक्षा प्रणाली में शिक्षक अपने शिष्यों को कोई जैन आचार्यों ने व्यक्तित्व को प्रभावशाली, लोकप्रिय और सिद्धान्त या विषय समझाता है और शिष्य उसे समझ लेते हैं, सदाचार सम्पन्न बनाने के लिए २१ सद्गुणों पर विशेष बल दिया कंठस्थ कर लेते हैं। शिक्षक के पूछने पर (अथवा प्रश्नपत्र के प्रश्नों है। जैसे के उत्तर में) जो कुछ समझा है, याद किया है, वही बोल या लिख हृदय की उदारता, प्रकृति की सौम्यता, करुणाशीलता, देते हैं। आजकल निबंधात्मक प्रश्नोत्तर इसी शिक्षण प्रणाली के विनयशीलता, न्यायप्रियता, कृतज्ञता, धर्मबुद्धि, चतुरता। आदि।' अन्तर्गत हैं। निगमन प्रणाली में पहले परिणाम (फल) बताकर फिर शिक्षा का महत्त्व सिद्धान्त निश्चित किया जाता है। इस प्रणाली में छात्रों से उत्तर विभिन्न विचारकों ने देश-काल की परिस्थितियों तथा निकलवाया जाता है। इससे छात्रों की बुद्धि एवं योग्यता आवश्यकता के अनुसार व्यक्तित्व के घटक तत्त्वों पर अनेक (Intelligence) ज्ञात हो जाती है तथा कीन छात्र किना मंदबुद्धि दृष्टियों से चिन्तन किया है, उसमें एक सार्वभौम तत्त्व है-शिक्षा. या तीव्रबुद्धि वाला है, यह भी पता चल जाता है। लघु-उत्तरीय प्रश्न ज्ञान, प्रतिभा। इसी प्रणाली के अन्तर्गत हैं। उष्णता या तेजस्विता के बिना अग्नि का कोई मूल्य नहीं है, इन दोनों ही प्रणालियों से मानव का ज्ञान और बुद्धि तथा उसी प्रकार ज्ञान, शिक्षा या प्रतिभा के बिना व्यक्ति का कोई महत्त्व व्यक्तित्व विकसित होता है। करतात तुपकर 2000000000000000000000000000000000000000000000000 6 distronication SensatSo20000000000000000004RicheskseesapaceOlQ6:00:00:09623806:210
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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