SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Com 00000000000000000002 श्रद्धा का लहराता समन्दर ऐसे महान संतप्रवर का वियोग श्रमणसंघ के लिए एक अपूरणीय क्षति है। मैं अपनी ओर से उपाध्यायश्री को श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ। ब्राह्मण कुल में जन्म लिया, फिर जैन धर्म स्वीकारा। तेरी वाणी से अमृत की बही सदा मृदुधारा॥ हे महामुनि पुष्कर तुमको जग भूल नहीं पाएगा। भटके जग को दिया सर्वदा तुमने नव उजियारा॥ जन-जन के पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी -प्रवर्तक श्री महेन्द्र मुनि 'कमल' अतीत के संस्मरण -प्रवर्तक श्री कुन्दन ऋषि जी परम श्रद्धेय स्व. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का जीवन सन् १९६४ में अजमेर में सम्मेलन था, आचार्य भगवन्त निराला एवं आदर्श जीवन रहा है। जैन-अजैन सभी आज भी उनके शाजापुर वर्षावास पूर्ण कर मध्य प्रदेश के चुने हुए बड़े-बड़े क्षेत्रों आध्यात्मिक व्यक्तित्व की महिमा गाते नहीं थकते। जो भी आपके । को स्पर्शते हुए अनेक मूर्धन्य सन्तों को साथ में लेकर राजस्थान की सान्निध्य में पहुँचा उसे अकथनीय शांति की अनुभूति हुई। यही वीरभूमि की ओर कदम बढ़ा रहे थे। मैं गुरुदेव के साथ ही था। कारण है कि वे जन-जन के पूज्य बन गए मेरे लिए भी वे पूर्णतः मुझे दीक्षा लिए करीब डेढ़ वर्ष हुआ था। दीक्षा पर्याय थोड़ी थी। पूजनीय एवं वंदनीय हैं। अनुभव भी नहीं था। सर्वप्रथम उनके दर्शन का सौभाग्य मुझे अजमेर मुनि सम्मेलन उधर बाड़मेर की ओर से मंत्री श्री पुष्कर मुनिजी, मंत्री श्री के लिए जाते समय गुलाबपुरा में मिला। तदनन्तर एक लम्बा । अम्बालाल जी म. अपने शिष्यमंडल के साथ आचार्यश्री जी के अंतराल उनके दर्शन बिना गुजर गया, चाहकर भी मिलने का स्वागत के लिए उग्र विहार करते हुए गुलाबपुरा पधारे, मैंने कई प्रसंग बन नहीं पाया। नागौर वर्षावास के बाद जब हम मीरा नगरी दिनों से उनका नाम सुना था, किन्तु प्रत्यक्ष दर्शन नहीं किए थे। मेड़ता पहुँचे वहाँ एवं बाद में जैतारण की धरती पर श्रमण सूर्य गौर वर्ण, सुगठित शरीर, विशाल भाल, प्रभावी चेहरा, मझला मरुधरकेसरी जी म. की स्मृति में आयोजित समारोह के अवसर कद, ओजस्वी बुलन्द वाणी उन्होंने आचार्यश्री जी को वन्दन किया। पर उनके चरणों में रहने का अवसर मिला। इसके पश्चात् अन्तिम मैंने भी उन सन्तों के चरणों में अपना मस्तक झुकाया। वे थे मंत्री दर्शन अभी हुए आचार्य पद चादर समर्पण समारोह के ऐतिहासिक श्री पुष्कर मुनिजी म.। उन्होंने बड़े स्नेह एवं वाल्सत्य से मेरी पीठ प्रसंग पर झीलों की नगरी उदयपुर में। पर थापी मारी और हाथ पकड़ कर नाम पूछा। मैं अपने आपको एक-एक स्मृति आज भी मेरे मन-मस्तिष्क के बोध पट पर धन्य मानने लगा, आज इन महान् सन्त का आशीर्वाद मिला, अंकित है। उनके सम्पूर्ण जीवन-व्यवहार में मैंने कहीं पर भी गुलाबपुरा, विजय नगर, ब्यावर होकर अजमेर गए। आगे-पीछे दोहरापन नहीं देखा। बहुत ही सरलता एवं सहजता के जीवन्त । साथ चलते रहे, हर जगह प्रतिदिन दर्शन होते रहे। प्रतीक थे वे। मधुरता, व्यवहारकुशलता, प्रवचन पटुता, संघ संगठन अजमेर से गुरुदेव ने जयपुर की ओर कदम बढ़ाए। आप के प्रति निष्ठा अनेकानेक ऐसी विशिष्टताएँ उनमें थीं कि उन्हें मैं राजस्थान में ही रहे। सन् ७२ में सांडेराव सम्मेलन हुआ। कभी भूल कर भी नहीं भुला सकता। पिछले कुछ वर्षों से वे निरंतर आचार्यश्री जी पंजाब, देहली, यू.पी., हरियाणा आदि प्रान्तों में 800 अस्वस्थ चल रहे थे। बावजूद उनका आत्मबल एवं समभाव जो था । विचरते हुए राजस्थान पधारे। आप भी गुजरात, महाराष्ट्र, बम्बई उसका स्मरण होते ही मन सहसा धन्य-धन्य कह उठता है। होकर साण्डेराव पधारे। राजस्थानी सन्तों का सम्मेलन था, उस दिन अद्भुत विद्वता के धनी उपाध्याय श्री ने अपने जीवन में सतत् समय भी आपके दर्शन हुए। उस समय देखा कि बड़ों के सामने अप्रमत्त रह कर जहाँ महत्वपूर्ण साहित्य का सृजन किया वहीं बात भी रखते हैं कितने विवेक के साथ सीमित शब्दों में और कहीं अपनी अनोखी सूझ-बूझ से ऐसे सन्तों का निर्माण किया जो अपनी हठाग्रह नहीं। विद्वता एवं सर्जना से आज जन-जन को प्रेरित एवं उल्लसित कर । बाल दीक्षा को लेकर बम्बई में आपके साथ हुए व्यवहार को रहे हैं। हमारे श्रमणसंघ को आज योग्य आचार्य के रूप में लेकर काफी चर्चा हुई। फिर कहीं मन में कटुता नहीं, साफ हृदय से परमादरणीय श्री देवेन्द्र मुनि जी म. जैसे प्रज्ञा पुरुष संप्राप्त हैं यही 1 सब कुछ कह दिया, सादड़ी तक साथ रहे। आचार्यश्री जी मध्य उसी महासंत की देन है। अंत में पूरी श्रद्धा के साथ मैं इन पंक्तियों । प्रदेश होकर महाराष्ट्र में पधारे। सन् ७५ में आचार्य भगवन्त D OL के साथ उनके श्रीचरणों में अपनी आस्था के सुमन समर्पित । घोड़नदी वर्षावास के लिए पधार रहे थे। आपश्री पूना वर्षावास के करता हूँ लिए पधारे। खेड़ मंचर (पूना) में पुनः दोनों महापुरुषों का मिलन DoR D9880900000 Rodeos8930 dan Education International 000008090869JOS OF Privatera PersonalUSE Olymp 29390204036280FPiyater-spersonsks: 60RODDOODDOGR5002900 o siODY069DHOSPDolwilejainelibrary.org RICSO90060099909829000000800PAS
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy