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________________ DDHA श्रद्धा का लहराता समन्दर आप उपाध्याय पद से विभूषित थे। आप एक प्रतिभाशाली संत थे। आपकी समग्र चेतना तत्व चिन्तन में प्रवाहित रहती थी। आपने अपने जीवन में जपयज्ञ को अधिक महत्व दिया। आपके हृदय में नवकार मंत्र की जप साधना अबाध गति से निरन्तर चलती रहती ODIOSGSSORG थी। है वह अपूरणीय है। उनके संथारे के हृदय विदारक समाचार सुनकर ही हम अवाक् एवं स्तब्ध हो गये थे। स्व. पूज्य उपाध्याय श्री जैन जगत् के तेज पुंज थे किन्तु आज उनके दिवंगत हो जाने से हम सब दिग्भ्रम हो गये हैं। अपने ओजस्वी मंगलमय प्रवचनों एवं संयम-साधना से आपका आज की संत परम्परा में महिमा एवं गरिमामय स्थान था जो सदैव के लिए चिरस्मरणीय एवं स्पृहणीय बन गया है। आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्रमुनि जी तथा समस्त साधनाशील अंतेवासी परिवार के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना है। आप सब इस दारुण आघात को सहन कर तथा उनके निर्देशित मार्ग पर चल कर उनकी कीर्ति को चिरस्थायी बनावें। आज की इस वियोग बेला में मेरे यही हार्दिक उद्गार हैं। र स्वर्गीय महापुरुष के पदचिन्हों पर स्वयं की सुवास से हम अपना जीवन सुवासित कर सकें। यही मेरी विनम्र एवं भावपूर्ण श्रद्धांजलि है। VODO आप प्रसिद्ध प्रवचनकार थे। आपकी भाषण शैली भी बड़ी ही अनूठी एवं निराली थी। ओजभरी वाणी में जब आप विषय का विश्लेषण करते थे तब जनता मंत्रमुग्ध हो जाती थी। _आपने भारत के विभिन्न अंचलों में विचरण करके वीतराग वाणी का प्रचार-प्रसार किया, जन-जन में जिनवाणी की गंगा प्रवाहित करके जन-जागरण का अभिनव संचार किया। __आपका पंच भौतिक शरीर आज हमारे मध्य नहीं है, परन्तु उनका यशःकाय-निःसंदेह दिव्य प्रकाश स्तंभ बनकर मानवमात्र के लिये मार्गदर्शक बना रहेगा। 160 । सरलता ही साधुता का भूषण है। -स्व. उपाध्याय श्री केवल मुनि भगवान महावीर ने कहा है-सरलता साधुता का भूषण है। इस हम सब उनके ऋणी रहेंगे सन्दर्भ में मैं सोचता हूँ तो उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी एक --उपाध्याय डॉ. विशाल मुनि उदाहरणस्वरूप दीखते हैं। | उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी बहुत ही सरल एवं भद्र प्रकृति के आज अचानक यह दुःखद समाचार सुनकर अपार दुःख हुआ सन्त थे। उनकी मुख मद्रा वैसे तेजस्वी और वाणी प्रचंड ओजस्वी कि पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री पुष्करमुनि जी म. सा. का स्वर्गवास थी। प्रचंड वाणी का उद्घोष सुनने वाला जब उनसे बातचीत करता हो गया है। और कुछ समय उनके सहवास में बिताता तो ऐसा लगता था कि ये हमें कल्पना भी नहीं थी कि इतने जल्दी ऐसी दुःखद घटना सन्त सचमुच में श्रीफल-नारियल प्रकति के हैं। ऊपर से जितने होगी। अभी तो चादर महोत्सव की खुशी का वातावरण महक ही कठोर और तेजस्वी दीखते हैं। भीतर हृदय में उतने ही मधुर तथा रहा था कि उन्हीं प्रसन्नता की घटाओं से दुःखों की वर्षा हो गयी। सरल हैं। उनकी जल-सी सहजता, बालक-सी सरलता सभी के मन समय की विडम्बना को नहीं आंका जा सकता है। को मोह लेती थी। कई बार उनसे मिलने का अवसर आया, परन्तु सदा ही मैंने उनको प्रसन्न, मृदुभाषी, विनम्र और सरल स्वभाव में म उपाध्यायप्रवर श्री जी ने लम्बे समय तक इस पद पर रह कर ही पाया। श्रमणसंघ की सेवा की, धर्म की अपार प्रभावना की, उसके लिए हमारा श्रमणसंघ ही नहीं संपूर्ण जैन समाज उनका ऋणी रहेगा। | उपाध्याय श्री के स्वर्गवास से पुरानी पीढ़ी के एक प्रखर वयोवृद्ध उस महापुरुष के महाप्रयाण कर जाने से जो क्षति हुई है तेजस्वी प्रभावशाली सन्त का अभाव हो गया है। उसकी परिपूर्ति संभव नहीं है। इस दुःखद घटना से आपको तथा आपके सन्त-साध्वी परिवार गरिमामय सन्त थे...... को जो कष्ट हुआ है वह अकल्पनीय है। हम आपके लिए हार्दिकता सान्त्वना की कामनायें करते हैं। आप सभी सन्त रत्न उपाध्यायप्रवर -उपाध्याय मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के आदर्श जीवन को जीवन्त करते रहें राजस्थान केसरी स्व. उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी महाराज यही हमारी मंगलकामनायें हैं। आगम परम्परा के वरिष्ठ संत थे, उनके स्वर्गवास से जो क्षति हुई । 8.COIDSED
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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