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________________ ४९० महासती श्री विचक्षणश्री जी म. आपका जन्म राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित किशनगढ़ नगर में दि. २८.११.७८ को हुआ। आपके पिताश्री का नाम जिनेन्द्र कुमार जी चौरड़िया तथा मातेश्वरी का नाम अ. सी. रतनबाई चौरड़िया है। आपने आचार्यसम्राट पूज्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. को अपना गुरु बनाया तथा परम विदुषी साध्वीरत्न महासती श्री पुष्पवती जी म. को गुरुणी बनाया। आचार्यसम्राट पूज्यश्री देवेन्द्र मुनिजी म. के आचार्य चादर समारोह के शुभ अवसर पर आपने उदयपुर (राज.) में सं. | २०५० चैत्र शुक्ला पंचमी दिनांक २८.३.९३ को दीक्षा ग्रहण की। आपकी अनेक थोकडे शास्त्र कण्ठस्थ है तथा धार्मिक परीक्षा बोर्ड अहमदनगर की जैन सिद्धान्त परीक्षा उत्तीर्ण की। आपका गायन मधुर है। आपका विचरण क्षेत्र राजस्थान रहा है। महासती श्री नवीन ज्योति जी म. राजस्थान के सुप्रसिद्ध औद्योगिक क्षेत्र पाली में दिनांक ९.१०.७० को आपका जन्म हुआ। आपके पिताश्री का नाम प्रकाशचन्द जी और मातेश्वरी का नाम सी. सागर बाई मेहता है। 100 Jain Education International उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ परम श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. के उपदेश से वैराग्य के बीज अंकुरित हुए और परम विदुषी साध्वीरल महासती श्री शीलकुंवर जी म. से पल्लवित और पुष्पित हुए। २४ फरवरी १९९४ को पाली में आर्हती दीक्षा ग्रहण की और विदुषी महासती श्री चन्दन बाला जी का शिष्यत्व स्वीकार किया। दीक्षा के पूर्व राजस्थान विश्व विद्यालय से संस्कृत में एम. ए. किया है तथा पाथर्डी बोर्ड की प्रभाकर परीक्षा उत्तीर्ण की। आप होनहार साध्वी है। महासती श्री पुनीत ज्योति जी आपका जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले के ढींढस ग्राम में पौष वदी १ संवत् २०१० को हुआ। आपके पिताश्री का नाम दलीचन्द जी खांटेड तथा मातेश्वरी का नाम पानीबाई है। आपने आचार्यसम्राट पूज्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. को अपना गुरु बनाया तथा महासती श्री सत्यप्रभा जी म. की सुशिष्या धर्मशीला जी को अपनी गुरुणी । आपने वैशाख सुदी ६ को मजल ग्राम में १६ मई १९४४ को दीक्षा ग्रहण की। आपको अनेकों थोकड़े शास्त्र कंठस्थ हैं। आप सेवाभावी साध्वी हैं। टाइम हो गया उठ जाग मुसाफिर, तेरे जाने का टाइम हो गया । टेर ॥ सोया हुआ रहेगा कब तक निश्चित जगना जाना । ले सामान संभाल स्वयं का, जो भी नया पुराना रे ।। उठ-१ ।। The इधर उधर से जो आये थे, चले गए वे सारे। उन्हें भूल जा चाहे तेरे, थे वे प्यारे खारे रे ।उठ-२ ।। रुका यहाँ इतने दिन तक तू उतरी तेरी थाक। लूट नहीं ले जाये कोई, कट जाये ना नाक रे।।उठ-३ ॥ मुझे नहीं लेना-देना कुछ, तू है एक मुसाफिर । मैं भी एक मुसाफिर, हैं हम, भाई-भाई आखिर रे ।। उठ-४ ॥ जग है एक मुसाफिरखाना, "पुष्करमुनि" का गाना । ।। आना जहाँ वहाँ है जाना, है यह नियम पुराना रे ।। उठ-५ ॥ - उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर- पीयूष से) > For Private & Personal Use Only 3 www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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