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________________ ४८० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ पूज्य उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी का शिष्या परिवार (श्रमणियाँ) SODE महासती श्री शीलकुंवर जी म.. श्रीमान् गणेशीलाल जी कोठारी है और माताजी वह श्रमणी रत्न है जो आगे चलकर महासती कैलाशकुमारी जी म. बनी। आपने परम विदुषी साध्वीरल महासती श्री शीलकुंवर जी म. प्रतिभा उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. को गुरु बनाकर चन्दनबाला की साक्षात् मूर्ति हैं, वे शरीराकृति से जितनी मन मोहक लगती हैं श्रमणीसंघ की प्रवर्तिनी श्री सोहनकुमारी जी म. के पास देलवाड़ा उससे भी अधिक आकर्षक है उनका आन्तरिक व्यक्तित्व। उनकी गाँव में केवल ११ वर्ष की वय में दीक्षा धारण की। वाणी में जादू है, चिन्तन में गहराई है, जैन धर्म और दर्शन की वे गम्भीर ज्ञाता हैं। एक बार जो भी व्यक्ति आपके संपर्क में आता है महास्थविर वयोवृद्ध श्री ताराचंद जी म. और उपाध्यायश्री वह सदा-सदा के लिए आपका ही नहीं किन्तु वीतराग वाणी का } पुष्कर मुनिजी म. के निर्देशन में आपके शिक्षण की विशेष व्यवस्था रसिक बन जाता है, उसके मन में जिनेश्वर देव की वाणी के प्रति की गई। महासती श्री पुष्पवती जी और आपका शिक्षण साथ-साथ अपूर्व आस्था जागृत होती है और वह अपनी शक्ति के अनुसार । ही हुआ। आपने तत्कालीन क्वीन्स कालेज बनारस की व्याकरण साधना के पथ पर बढ़ने के लिए उत्प्रेरित हो जाता है। मध्यमा परीक्षा पास की। न्याय विषय में आपने कलकत्ता संस्कृत राजस्थान की वीर भूमि में आपका जन्म हुआ, उदयपुर जिले विश्वविद्यालय से न्यायतीर्थ परीक्षा उत्तीर्ण की। पाथर्डी धार्मिक में बाघपुरा, अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है, गगन चुम्बी परीक्षा बोर्ड से आपने जैन सिद्धान्ताचार्य की सर्वोच्च परीक्षा प्राप्त पर्वत मालाओं में बसा हुआ, खाकड़ गाँव में आपका जन्म हुआ। की। इस प्रकार आपने संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण और विक्रम संवत् १९६९ में जन्माष्टमी के दिन जन्म हुआ। आपके सिद्धान्त आदि विषयों में बहुमुखी विद्वत्ता अर्जित की। पिताश्री का नाम धनराज जी बनोरिया और मातेश्वरी का नाम आपकी प्रवचन शैली से प्रभावित होकर ब्यावर श्रीसंघ ने रोड़ीबाई था। आपको “प्रवचन भूषण" के अलंकरण से विभूषित किया। इसी ___महास्थविर श्री ताराचंद जी म. के और परम विदुषी प्रकार उदयपुर श्रीसंघ ने आपको अध्यात्मयोगिनी की उपाधि साध्वीरत्न श्री धूलकुंवर जी म. के पावन उपदेशों को सुनकर } प्रदान की। आपके अन्तर्मानस में वैराग्य भावना जागृत हुई और १३ वर्ष की आपकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं-स्वर्ण कुसुमलता और लघुवय में संवत् १९८२ फाल्गुन शुक्ला २ के दिन खाखड़ में ही कुसुम चुनिन्दे भजन। आपने दीक्षा ग्रहण की। ____ आपने हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत और उर्दू भाषा का बहुत अच्छा आपने राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और जम्मू काश्मीर आदि प्रान्तों में विचरण कर धर्मभावना की है। ज्ञान प्राप्त किया, जैन आगम और स्तोक साहित्य का गहराई से अध्ययन किया। आपकी प्रवचन शैली बहुत ही लुभावनी है, त्याग ___आपकी शिष्याएँ हैं, श्री चारित्रप्रभा जी, श्री दिव्यप्रभा जी, श्री और वैराग्य से छलछलाते हुए प्रवचनों को सुनकर श्रोता मंत्र मुग्ध गरिमा जी आदि। हो जाते हैं। स्वाध्याय सुधा, शील के स्वर, जैन तत्व बोध आदि अनेक कृतियाँ हैं। आपकी प्रेरणा से वर्द्धमान जैन स्वाध्याय संघ की विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवती जी म. स्थापना सायरा में हुई और महावीर गौशाला की भी स्थापना हुई ___महासती श्री पुष्पवती जी अपने जीवन पुष्प को ज्ञानादि तथा अन्य अनेक स्थानों पर पाठशालाएँ, स्थानक भवन आदि भी । सद्गुणों की सौरभ तथा संयमशील के विरल सौन्दर्य से मंडित कर निर्मित हुए। आप शासन प्रभाविका हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश जिनशासन के श्रमणसंघीय उपवन में सुरभि और सुषमा का में आपका विचरण रहा। विस्तार कर रही हैं। श्रमणसंघ की श्रमणी शृंखला की वे एक P सेवामूर्ति श्री सायरकुंवर जी म., सिद्धांताचार्य श्री चंदनबाला । सुदृढ़ कड़ी हैं। वे रमणीय श्रमणी माला की दीप्तिमय मुक्तामणि जी, श्री चेलनाकुंवर जी, साधनाकुंवर जी आदि अनेक शिष्याएँ हैं। आपमें कतिपय दुर्लभ और अद्भुत विशेषताएँ हैं। आपका ल और प्रशिष्याएँ आपकी हैं, आप जैसी परम विदुषी साध्वीरत्न पर बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक है उतना ही अन्दर से भी अभिराम समाज को गौरव है। है। आपमें अपने नाम के अनुरूप ही कमनीयता, कोमलता, स्निग्धता है तो संयम और चारित्र के प्रति सुदृढ़ता भी है। आपका विदुषी महासती श्री कुसुमवती जी म. व्यक्तित्व ज्ञान की गरिमा और साधना की महिमा से मंडित है। एक आपका जन्म मेवाड़ की राजधानी उदयपुर नगर में विक्रम ओर आप परम विदुषी हैं तो दूसरी ओर पहुँची हुई साधिका हैं। संवत् १९८२ आसोज सुदी ६ को हुआ। आपके पिताश्री का नाम जहाँ आपमें आचारनिष्ठा है, वहाँ अनुशासन की कठोरता भी है। Jain Education International Corprivate a personal use onlyDE 190 0 Dwew.jalbelibrery.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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