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________________ ४७८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । आपने न्याय, व्याकरण, काव्य, जैनागम व जैन साहित्य का है। आगम संबंधी साहित्य में आपकी विशेष रुचि है। उत्तराध्ययन गहन अध्ययन किया है, संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषा का आदि का आपने सुन्दर भाषान्तर और विवेचन किया है। अच्छा अभ्यास किया है, आपने जैन सिद्धान्त विषय में श्री धार्मिक आपके द्वारा लगभग २० ग्रन्थ प्रकाशित कराये गये हैं। २४ परीक्षा बोर्ड पाथर्डी की “सिद्धान्ताचार्य' उपाधि प्राप्त की। साथ ही तीर्थंकर, सत्य शील की साधिकाएँ, जम्बू कुमार, मेघकुमार, जैन काव्यतीर्थ और साहित्यशास्त्री की परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की। धर्म, भगवान् महावीर, मंगल पाठ, उत्तराध्ययन आदि उनमें आप संस्कृत और प्राकृत भाषा में भी रचनाएँ लिखते हैं। हिन्दी । प्रमुख हैं। में तो लिखते ही हैं। आप एक मंजे हुए लेखक एवं साहित्यकार हैं। आपका स्वभाव बहुत मधुर और वाणी मिठास से पूर्ण है, जैन दर्शन, जैन धर्म और जैन संस्कृति से संबंधित विषयों पर आपके प्रवचन बहुत ही प्रभावपूर्ण होते हैं, आगमों का पुट आपके आपके विपुल मात्रा में लेख प्रकाशित हुए हैं। आपके लेख शोध प्रवचन की विशेषता है। मिलनसार और मृदुल प्रकृति के कारण प्रधान और चिन्तन की प्रभा से प्रकाशमान होते हैं। संस्कृत-प्राकृत आपके संपर्क में आने वाले व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। में श्लोकों की रचना करना आपकी अपनी विशेषता है। आपने अनेक व्यक्तियों और युवकों को प्रेरणा देकर कई संस्थाएँ 20.00A आपने अनेक साधु-साध्वी, विरक्त-विरक्ताओं को संस्कृत, . स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपने कई स्थानों प्राकृत की उच्चस्तरीय बी. ए., एम. ए., शास्त्री, आचार्य परीक्षा के पर युवक संघों की स्थापना करवायी है। अखिल भारतीय अहिंसा ग्रन्थों का अध्यापन कराया है। प्रचार संघ, वर्द्धमान पुष्कर जैन सेवा समिति आदि संस्थाओं के आप प्रेरणा स्रोत हैं। आपको जैनागमों और जैन स्तोकों का अच्छा अभ्यास है और । उसके आधार से आप कई उपयोगी जानकारी को आधुनिक शैली आपने मेवाड़, मारवाड़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र, में लिखते रहते हैं जो अभ्यासार्थियों के लिए बहुत सुविधापूर्ण सिद्ध तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश.. होती है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में व्यापक विचरण किया है। स्वभाव से आप बहुत सहृदय, सरल और सौम्य हैं। विद्वज्जनों आपकी साहित्यिक और सामाजिक सेवाएँ उल्लेखनीय हैं, के प्रति आपका व्यवहार बहुत ही सौजन्यपूर्ण और आदरणीय होता विविध प्रकार के आयोजनों द्वारा आप अपने पूज्य गुरुदेव है, आपके संयमी जीवन में त्याग-वैराग्य की गहरी झलक उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. और आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी म. Pompapa., जापक स दृष्टिगोचर होती है। आपका जीवन साधना प्रधान और ज्ञान के सान्निध्य में धार्मिक और सामाजिक जागरण का कार्य करते दर्शन-चारित्र से दीप्तिमान है। रहते हैं। आगरा विश्वविद्यालय से आपने आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी OPP म. के साहित्य पर पी.एच.डी. की है। डॉ. श्री राजेन्द्र मुनि जी म. "शास्त्री" एम. ए., पी. एच. डी. श्री प्रवीण मनिजी म. आपका जन्म राजस्थान के नागौर जिले के गाँव बडू में संवत् २०१० पौषवदी दशम् दिनांक १ जनवरी १९५४ को हुआ। उदयपुर जिले के गाँव कमोल में आपका जन्म हुआ। आपके आपके पिताश्री का नाम श्रीमान् पूनमचंद जी सा. डोसी और पिताश्री का नाम श्रीमान् सूरजमल दोशी और माताजी का नाम माताजी का नाम श्रीमती धापकुंवरबाई है जो वर्तमान में महासती श्रीमती सलूबाई दोशी है। प्रकाशवती जी हैं। आपके बड़े भ्राता भी दीक्षित हैं जो श्री रमेश आपने संवत् २०२९ चैत्र वदि १ दिनांक १ मार्च, १९७२ को मुनिजी “शास्त्री" के नाम से विश्रुत हैं। इस प्रकार इस परिवार ने मारवाड़ के पाली जिले के गाँव सांडेराव में उपाध्यायश्री पुष्कर जैन शासन को तीन बहुमूल्य रल समर्पित किये हैं। मुनिजी म. के पास दीक्षा धारण की। आपने जैन सिद्धान्त प्रभाकर आपने राजस्थान के बाड़मेर जिले के गाँव गढ़सिवाना में परीक्षा पास की तथा आगम साहित्य का स्वाध्यायात्मक सामान्य दिनांक १५ मार्च, १९६५ को आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के ज्ञान प्राप्त किया। स्वाध्याय में आपकी विशेष रुचि है। गुरु भक्ति और सेवा भावना आपकी विशेषता है। सान्निध्य में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पूर्व आपने महासती श्री पुष्पवती जी म. को अपनी गुरुणी के रूप में स्वीकार किया। श्री दिनेश मुनि जी म. आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं का गहरा राजस्थान प्रान्त के उदयपुर जिले के अन्तर्गत देवास ग्राम में अध्ययन किया। आपने संस्कृत में शास्त्री, काव्यतीर्थ, हिन्दी में आपका जन्म संवत् २०१७ ज्येष्ठ कृष्णा १२ दिनांक २२ मई साहित्य रत्न, जैन सिद्धान्ताचार्य और एम. ए. परीक्षाएँ समुत्तीर्ण १९६० को हुआ। आपके पूज्य पिताश्री का नाम श्रीमान् रतनलाल की है। आप साहित्य महोपाध्याय है। आपने जैन आगमों का गहन जी सा. मोदी और वंदनीया माताजी का नाम श्रीमती धर्मानुरागिनी अध्ययन किया है और कई आगमों का हिन्दी अनुवाद भी किया। प्यारीबाई था। आपने उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. को अपना गुरु 1485 SGGEORGERO FSainEducation fotemationaks0932006 For Private & Personal Use Only A0003wwwjainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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