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________________ 1 ४७० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । कन्हैयालालजी बरड़िया सामायिक साधना में रत बैठे थे। पाट के संयम-स्वप्न साकार हुआ समीप ही बालवृन्द क्रीड़ारत था। चंचल स्वभावी बालक धन्नालाल पुत्री सुन्दरी को संयम ग्रहण सम्बन्धी आज्ञापत्र के प्रसंग में सहसा आचार्य प्रवर के रिक्त पाट पर चढ़ बैठे और साथियों को मातुश्री तीजकुमारी जी को भयावह आसुरी उपसर्ग सहना पड़ा नीचे बिठा कर प्रवचन देने का अभिनय करने लगे। इस बाल-क्रीड़ा और हाथ जल जाने की पीड़ा दीर्घकाल तक रही। उनके भ्राता उन्हें को देखकर आचार्य प्रवर तीन वर्षीय बालक धन्नालाल से बड़े हिम्मतनगर ले गये। वहाँ बालक धन्नालाल अपनी मातुश्री की वेदना प्रभावित हुए। बालक के पितामह से वे बोले कि यह बालक दीक्षा । से अत्यन्त दुखित रहते और रोते रहते थे। यहाँ तक कि उनके नेत्र ले तो तुम बाधा मत डालना। उन्होंने पूज्य श्रीलालजी म. के इस भी रोग ग्रस्त हो गये। तब स्थान परिवर्तन के प्रयोजन से बालक पूर्वकथन का उल्लेख भी किया कि बरड़िया-परिवार से दीक्षा होगीको उदयपर, अपनी मौसी राजबाई के पास भेज दिया गया था। और वह बालक आगे चलकर धर्मोद्योत करेगा। यह बाल क्रीड़ा । प्रस्थान से पूर्व बालक ने हिम्मतनगर में एक स्वप्न देखा कि पूज्य सत्य सिद्ध होगी और आज का यह बालक धन्नालाल भविष्य में ताराचन्दजी महाराज साहब जप कर रहे हैं, पुष्कर मुनिजी म. सर्वोच्च पाट का अधिकारी हो जायेगा। उस समय भला कौन ऐसी स्वाध्यालीन हैं। दोनों मुनिवरों को उन्होंने श्रद्धा सहित नमन किया कल्पना भी कर सका होगा। पितामह तो मौन हो गये। इसी प्रकार है और उनके मन में दीक्षा ग्रहण करने की भावना उत्पन हुई है। न भा बालक धन्नालाल को देखकर उनका उज्ज्चल बस तभी निद्रा भंग हो गयी थी। भविष्य पढ़ लिया और मातुश्री से बोला-यह बालक तेरे घर में उदयपुर आगमन के पश्चात् बालक का यह स्वप्न साकार नहीं रहेगा। यह तो जोगी बनने को आया है। वास्तव में बालक के हुआ। स्वास्थ्य में किंचित् सुधार होने पर मातुश्री भी हिम्मत नगर अन्तर में वैराग्य ज्योति जगमग कर रही थी। अनुभवी-जन उसी । से उदयपुर पहुँच गयी थी। वे बालक को लेकर जब कम्बोल पहुँची की रश्मियों की आभा बाहर से देख लेते थे। तो वहाँ बालक धन्नालाल का हिम्मतनगर में देखा गया स्वप्न __बालक धन्नालाल की क्रीड़ाएं होती ही इसी प्रकार की थीं। वे साकार हो उठा। पूज्य ताराचन्द जी म. जप कर रहे थे। गुरुदेव अन्य बालकों से पूछते कि कौन-कौन क्या-क्या बनेगा और तब पुष्कर मुनि जी म. स्वाध्याय में लीन थे। बालक ने मन ही मन अपने विषय में कहते-मैं तो पुज्जी (पूज्य आचार्य) बनूँगा। पट्टे पर निश्चित कर लिया कि मैं इन्हीं गुरुवर्यों से दीक्षा ग्रहण करूँगा। पट्टा लगाकर बैलूंगा। वे खेल-खेल में ऐसा करते भी थे। अपनी मैंने स्वप्न में जिस मन मोहक रूप के दर्शन किये थे, वही मातुश्री से वस्त्र माँग कर उसकी झोली बनाते, पातरों के स्थान पर आज आँखों के सामने उपस्थित है। साक्षात् वही है।'' एक माह तक कटोरे रख लेते और गोचरी का खेल खेलते। कभी-कभी इन्हें बालक गुरुदेव श्री के आश्रय में रहे और धर्मग्रन्थों का पारायण बाल्योचित स्वर्णाभूषण भी पहनाये जाते थे। वे उन्हें उतार देते और करते रहे। इस समय धन्नालाल की आयु लगभग सात वर्ष की रही कहते-ये सब बेकार हैं, मैं तो साधु बनूँगा। उस समय बालक होगी। ऐसी लघुवय में और इतनी सी अवधि में ही उन्हें पच्चीस धन्नालाल अपने भवितव्य की ओर पूर्व-संकेत कर रहे होते थे। बोल और प्रतिक्रमण कंठस्थ हो गये थे। स्पष्ट है कि बालक अल्पायु में भी आपश्री चौविहार का पालन किया करते थे। रात्रि में धन्नालाल होनहार, अत्यन्त मेधावी और प्रतिभाशाली थे। यह घटना जल भी ग्रहण नहीं करते थे। आपश्री की संसार पक्षीय अग्रजा वि. संवत् १९९५ की है। महासती श्री पुष्पवती जी म. ने अपने संस्मरणों में एक स्थल पर उल्लेख किया है कि एक रात्रि में आपश्री पर तृषा का तीव्र संकट । वहाँ से लौटे तो उन्होंने परिजनों के सम्मुख अपनी दीक्षा ग्रहण उपस्थित हुआ। माता ने प्रबोधन दिया कि पुत्र, ऐसे कठोर व्रत तो करने की अभिलाषा व्यक्त कर दी। मोहवशात् सभी परिवार जनों वयस्कों के लिए होते हैं। तुम तो अभी बालक ही हो-जल पीलो। ने इसका विरोध किया। मात्र मातुश्री ही अपवाद रहीं। वे तो स्वयं किन्तु बालक धन्नालाल अडिग रहे। शरीर पर गीली पट्टियाँ भी पुत्र की दीक्षा के उपरान्त संयम मार्ग ग्रहण कर लेने को रख-रख कर सारी रात व्यतीत करनी पड़ी। सूर्योदय पर ही । समुत्सुक थीं। मातुश्री के साथ बालक धन्नालाल साधु साध्वियों की आपश्री ने जल ग्रहण किया। सेवा करते रहे। धर्म ग्रन्थों का स्वाध्याय भी निरन्तरित रहा। अहिंसा व करुणा का भाव भी आपश्री के बाल्यकाल में ही । वैराग्य-परीक्षा सुस्थापित एवं सशक्त होने लगा था। शीघ्र दीक्षा ग्रहण करने की । बाड़मेर (राजस्थान) जिले के खण्डप ग्राम में वि. संवत् अभिलाषावश आपश्री ने भैरव बाबा के समक्ष वचन (बोलमा) लिये १९९७ में, पूज्य ताराचन्दजी म. और पुष्कर मुनि जी म. का कि विकलांगों को भोजन कराऊँगा, एक सौ बकरों को अमरिया वर्षावास था। श्रीमती तीजकुमारी जी अपने पुत्र सहित वहाँ करूँगा, एक सौ दया पलवाऊँगा। दीक्षा-पूर्व ही इन वचनों की पूर्ति उपस्थित हुई और बालक धन्नालाल को दीक्षा प्रदान करने का भी आपश्री ने की। सत्य ही है कि महापुरुषों में सद्गुण और अनुरोध किया। खण्डप के ही धनाढ्य सेठ रघुनाथ जी धनराज जी महानता जन्मजात ही होती है और उनके विकास के लिए अनुकूल । लूंकड़ ने कई प्रकार के प्रश्न कर बालक धन्नालाल की परीक्षा ली परिवेश भी स्वतः ही सुलभ होता जाता है। और उन्हें दीक्षा-योग्य घोषित किया। 05. 06 For Private & Personal use only GORwww.jainelibrary.org. Jain Education international
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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