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________________ 22029.9000 । इतिहास की अमर बेल ४६७ । जनों को परामर्श दिया कि यदि आप हमारे गुरुदेव के आदेशानुवर्ती प्रतिभाशाली तो थे ही, व्यावसायिक क्षेत्र में भी बड़े दक्ष थे। हो जायें तो युवराज पुनर्जीवित हो सकते हैं। डूबतों को मानों तिनके | उच्चस्तरीय मानवीय सद्गुणों ने उन्हें अत्यन्त जनप्रिय भी बना | का सहारा मिल गया। भग्नाश जनता के मन में सहसा आशा की दिया। लगभग १८ वर्ष की आयु में, उदयपुरवासी प्रतिष्ठित किरण जगमगा उठी। युवराज के पार्थिव तन को लेकर जन-समुदाय । अभिभाषक (वकील) श्री अर्जुनलाल जी भंसाली की कन्या प्रेमकुँवर आचार्य रत्नप्रभसूरि जी के समक्ष उपस्थित हुआ। करुणामूर्ति आचार्य जी के साथ आपका मंगल-परिणय सम्पन्न हुआ। सन् १९२४ ई. के जी ने शोकाकुल जनों को अपनी उपदेश-सुधा से सींचकर शान्त 1 ११ नवम्बर को इस बरडिया दम्पति को कन्या-रत्न-सुन्दरी की मनस्क बनाया और उन्हें आश्वस्त किया कि युवराज को प्राण-दान प्राप्ति हुई जो आगे चलकर परम यशस्विनी, जैन धर्माकाश की मिल सकता है, किन्तु यह तभी सम्भव है जब आप सभी मांस-मदिरा | उज्ज्वल तारिका महासती श्री पुष्पवती जी बनीं। कालान्तर में को त्यागकर, शुद्ध और सात्विक जीवन जीने का संकल्प ग्रहण करें। स्वनामधन्या सुशीला ने सुन्दरीजी की अनुजा के रूप में जन्म लिया तत्काल सभी ने आचार्य जी के आदेश को स्वीकार करते हुए संकल्प जो प्रारब्धवशात् अत्यन्त अल्प आयुष्यभोगी रही। सुशीला के लिया, देव माया का प्रभाव निरस्तकर आचार्य जी ने सभी को दिवंगत हो जाने का आघात माता प्रेमकुँवर जी को अतिशय गहन आशीर्वाद दिया। राजपुत्र को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ और हर्षातिरेक } रूप में लगा और वे अत्यन्त दारुण मनोरोग से ग्रस्त हो गयीं। के साथ राजपरिवार सहित समस्त ओसियावासियों ने जैन धर्म पतिदेव श्री जीवनसिंह जी ने दत्तचित्तता के साथ अपरिमित सेवा अंगीकार किया। की, हर सम्भव उपचार कराया गया, किन्तु होनी ही कुछ ऐसी थी यों ओसवाल वंश की स्थापना विक्रमी सम्वत् ५०० से कि यह दाम्पत्य साहचर्य दीर्घजीवी नहीं रहा। धर्मपत्नी के निधन से १००० के मध्य किसी समय हुई। इस वंश के १८ गोत्र माने गये संतप्त श्री जीवनसिंहजी को सर्वत्र शून्य ही दृष्टिगत होने लगा। वे हैं जिनकी लगभग ५०० उपशाखाएँ हैं और बरडिया भी उन्हीं में सघन नैराश्य में निमग्न से हो गये। से एत गोत्र है। कहा जाता है कि वट-वृक्ष का राजस्थानी में काल-यापन के संग उनके मानस को भी स्थैर्य-धैर्य मिला और प्रचलित नाम 'बरडा' इस गोत्र के नामकरण का आधार है, किन्तु परिजनों का भी प्रबल आग्रह रहा, परिणामतः श्री जीवनसिंह जी यह तर्क-संगत प्रतीत नहीं होता। बरडा के साथ गोत्र का कोई का परिणय गोगुन्दा निवासी श्रीमान् हीरालाल जी सेठ की सद्गुणी तारतम्य स्थिर नहीं हो पाता है। एक अन्य मतानुसार 'बरडिया' कन्या तीजकुमारी जी के संग सम्पन्न हुआ। “योग्य से ही योग्य का नाम मूल ‘वर दिया' (वरदान-प्राप्त) शब्द का अपभ्रंश रूप है। यह सम्बन्ध होना संयोग था। तीजकुमारी जी बाल्यकाल से ही सिद्धान्त अधिक समीचीन प्रतीत होता है। धर्म-संस्कार युक्त, शुद्धाचार-विचार की तथा स्वाध्याय परायणा थीं। पवित्र पारिवारिक परिवेश सन्त-सतियों का सान्निध्य एवं मंगल प्रभाव सुलभ रहा। उनकी मानसिकता भी जन्मजात धर्मप्रधान थी। प्राप्त वातावरण और गहन उदयपुर नगर के एक सम्पन्न और प्रतिष्ठित बरडिया परिवार अध्ययनशीलता ने उसे दृढ़तर बना दिया। धर्मतव की वे परम के मुखिया थे-श्री कन्हैयालाल जी। धर्मप्रिय समाज में अत्यन्त विदुषी, प्रतिभाशालिनी महिला थीं। आध्यात्मिक उत्थान की आनन्द लोकप्रिय श्री कन्हैयालाल जी सौहार्द और औदार्य के मानो साकार की अमंद ललक ने ही उन्हें उत्कर्ष प्रदान किया और कालान्तर में रूप ही थे। धर्माचार की दृढ़ता उनकी अनन्य विशेषता थी। उन्होंने श्रमण संघ में अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। संयम आयंबिल, सामायिक आदि के नियमित साधक होने के साथ-साथ ग्रहण कर वे ही महासती श्री प्रभावती जी के नाम से सुविख्यात आपको गुप्तदान की प्रवृत्ति अत्यन्त प्रिय थी। सन्तों की सेवा हुईं। श्रीमती तीजकुमारी ने विवाहोपरान्त एक कुशल गृहस्वामिनी उपासना में रत रहने वाले श्री कन्हैयालाल जी बरडिया भक्तामर और ममतामयी जननी का एक आदर्श स्थापित किया। बालिका स्तोत्र, उवसग्गहरं स्तोत्र आदि के नियमित पाठकर्ता और शास्त्र सुन्दरी को तो मानो अपनी जननी ही पुनः मिल गयी। श्रीमती श्रोता थे। व्यावसायिक क्षेत्र में भी उनको प्रतिष्ठा और यश प्राप्त तीजकुमारी जी का निर्मल स्नेह-भाव और वात्सल्यपूर्ण निश्छल था। उदयपुर, बड़ीसादड़ी, भीडर, कानोड़ में आपके वस्त्र-व्यवसाय व्यवहार ही ऐसा था। सम्बन्धी प्रतिष्ठान थे। आप चार सुपुत्रियों तथा सर्वश्री जीवनसिंह जी, रतनलाल जी, परमेश्वरलाल जी, मनोहरलाल जी एवं कुछ कालोपरान्त श्रीमती तीजकुमारी जी को मातृत्व का गौरव मदनलाल जी-पाँच सुपुत्रों के पिताश्री थे। भी प्राप्त हुआ। कुल-दीपक बसन्त कुमार का आगमन इस परिवार में हुआ, किन्तु महान् आत्माओं के जीवन में परीक्षा की पुण्यशील पिताश्री-माताश्री अनेक घड़ियाँ उपस्थित होती हैं। नियति की क्रूर आँधी ने श्री कन्हैयालाल जी बरडिया के ज्येष्ठतम पुत्र श्री जीवनसिंह असमय ही इस नन्हीं ज्योति को बुझा दिया। बसन्त कुमार के जी बड़े ही योग्य और मनोज्ञ थे। वर्तमान शताब्दी के आरम्भिक निधन ने तीव्र पारिवारिक विचलन उपस्थित कर दिया, किन्तु दशकों में भी (जो शिक्षा की दृष्टि से मेवाड़ के इतिहास का अत्यन्त समत्वभाव से विवेकशील माताश्री सारी निर्मम परिस्थितियों को पिछड़ा हुआ युग था) आपने मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की। आप सहन करती रहीं। wan Education Artemátional S o n g For Erwate a Personal Use Only
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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