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________________ । इतिहास की अमर बेल ४६५ । विशुद्ध अभिव्यंजना है। वह समाज के यथार्थ स्वरूप को अवगत को भी लुभा लेती, मन को मोह लेती। आपश्री की जादू भरी कराने वाला दर्पण है और संस्कृति का प्रधान संवाहक है। वह वाणी से साधारण व्यक्ति ही नहीं किन्तु देश के चोटी के विद्वान सार्वदेशिक और सार्वकालिक 'सत्य', शिवं और सुन्दरम्' को व्यक्त J और नेतागण भी प्रभावित हुए। आपकी वाणी में मृदुता, मधुरता करता है और गहन समस्याओं का समाधान करता है। प्राकृत । और सहज सुन्दरता थी। भावों की लड़ी, भाषा की झड़ी और तर्कों साहित्य भारत की अनमोल निधि है। उसमें आध्यात्मिक, सामाजिक की कड़ी का ऐसा मधुर समन्वय होता कि श्रोता झूम उठते। और सांस्कृतिक प्रभृति जीवन की समस्त भावनाएँ अभिव्यंजित हुई आपका प्रवचन मधुर ही नहीं, अति मधुर होता था। आपश्री के हैं। भगवान महावीर एवं तथागत बुद्ध ने इसी भाषा में उपदेश प्रवचन की तुलना महात्मा गांधी के प्रवचनों से सहज रूप से कर प्रदान किया है। सम्राट अशोक ने शिला-लेख और स्तम्भ-लेखों को सकते हैं। इसी भाषा में उत्कीर्ण कराया है। खारवेल का हाथी गुफा लेख भी बहुभाषाविद् प्राकृत में ही है। हजारों ग्रन्थ इस भाषा में निर्मित हैं, इसलिए इस ___ भाषा की दृष्टि से आचार्यश्री का परिज्ञान बहुविध और भाषा का अध्ययन आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य होना बहुव्यापी था। संस्कृत, प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओं पर उनका चाहिए। आपश्री ने शताधिक व्यक्तियों को इस भाषा का गम्भीर पूर्ण अधिकार था। हिन्दी, गुजराती, मराठी फारसी और अध्ययन करने के लिए प्रेरणा प्रदान की। राजस्थानी भाषा में धाराप्रवाह प्रवचन कर सकते थे, लिख सकते | संगठन के प्रबल समर्थक थे। मराठी आपश्री की मातृभाषा थी। सन्त तुकाराम के अभंगों को आचार्यश्री जीवन के अरुणोदय से ही संगठन के प्रबल समर्थक और अन्य मराठी सन्तों के भजनों को आप बड़ी तन्मयता के थे। आपश्री के स्पष्ट विचार थे कि 'संगठन जीवन है और विघटन | साथ गाते थे। मृत्यु है। जैन समाज की बिखरी हुई शक्तियों को देखकर आपश्री के महापुरुष मन में अपार वेदना होती, और हृदय की वेदना वाणी के द्वारा अनेक बार मुखरित भी हुई। मैंने स्वयं देखा है-सादड़ी, सोजत, त्याग और मनस्विता, आदर्श चिन्तन और पुरुषार्थमय जीवन, अजमेर व साण्डेराव सन्त सम्मेलनों में आपश्री ने जो मानसिक व उदार वृत्ति और सत्य पर दृढ़ रहने का आग्रह, प्रेम-पेशल हृदय बौद्धिक श्रम किया, वह किसी से भी छिपा नहीं है। जीवनभर आप और निर्भय कर्तव्यनिष्ठा, सबके प्रति आदर भाव और सप्रयोजन सम्पूर्ण जैन समाज की एकता के लिए अथक पश्रिम करते रहे। विरोध करने की क्षमता, विनम्रता और सैद्धान्तिक अकड़ एक साथ नहीं रह पाती। जहाँ रहती है वह मानव नहीं, महामानव है। वाणी के जादूगर आचार्यश्री के जीवन में इनका अद्भुत मिलन हुआ, इसलिए वे बोलना एक कला है और कलाओं में उसका प्रथम स्थान साधारण पुरुष नहीं, महापुरुष थे। युग-युग तक हम उस महापुरुष है। आचार्यश्री की वाणी में जादू था जो श्रोताओं के दिल । के उपकारों को याद करते रहेंगे। 800 - जिन्दगी में हंसना अब जिन्दगी में तुम हँसते चलो। और ज्ञान का दीप जलाते चलो।।टेर॥ जीने की कला को सीखो जरा। न देना अन्य को कष्ट जरा॥ दुश्मन को मित्र बनाते चलो॥१॥ यदि आँधी तूफान भी आयेंगे। मन दृढ़ हो तो मिट जायेंगे। काँटों में जैसे फूल खिलो॥२॥ यदि हार को जीत में बदलाएँ। तब विष भी अमृत हो जाए। "पुष्करमुनि" जीवन फूलो फलो॥३॥ -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) ED9 29 करतात For Private & Personal use only COCEDNESDOD Soducationinternation wijainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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