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________________ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । 1000 श्रमणसंघ के गौरव श्रमण संघ के गौरव उपाध्याय पुष्कर मुनि जी -स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म. पुष्कर पराग -स्व. प्रवर्तक श्रमणसूर्य श्री मरुधरकेसरी मिश्रीमल जी महाराज (१) श्रमणसंघ उवज्झाय शुभ, पुष्कर परम पराग, थाग ज्ञान का ना मिले, विमल नयन वैराग, विमल नयन वैराग, जागती ज्योति अविचल, सुघड शिष्य समुदाय, भक्तिकारक है विज्ञवर, पुण्योदय शशि पूर्णिमा, चढ़ता है सोभाग, श्रमण संघ उवज्झाय शुभ, पुष्कर परम पराग ॥१॥ उपाध्याय का अर्थ है स्वयं अध्ययन करे और दूसरों को अध्ययन करवाये, स्वयं आगमों को पढ़े दूसरों को पढ़वाएँ, HOD अध्ययन-अध्यापन से संघ में ज्ञान की ज्योति उपाध्याय जागृत करते हैं। जन-जन के अज्ञान अन्धकार को नष्ट करने के लिए यह २४ प्रबल प्रयास करते हैं। 'स्वाध्यायान् मा प्रमदः' यही उनके जीवन का SED आघोष होता है। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी सच्चे अर्थों में उपाध्याय हैं। वे संस्कृत, प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित हैं। उन्होंने आगम साहित्य का गहराई से अनुशीलन किया है। न्याय, दर्शन और योग का गम्भीर परिशीलन किया है। साहित्य और संस्कृति का पर्यवेक्षण कर अध्ययन में प्रौढ़ता प्राप्त की है। आपका अध्ययन क बहुत ही विशाल और तलस्पर्शी है। व आपश्री की प्रवचन शैली बहुत ही प्रभावपूर्ण है। जब आप राण गम्भीर गर्जना करते हैं तो श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। आपके प्रवचनों में भाषा की सरलता, भावों की गम्भीरता और अध्ययन की विशालता के स्पष्ट दिग्दर्शन होते हैं। प्रवचनों के बीच ऐसी चुटकी लेते हैं जिससे श्रोताओं में हँसी के फव्वारे फूट पड़ते हैं। - वस्तुतः आप वाणी के देवता हैं। उपाध्याय पुष्कर मुनि जी केवल प्रवचनकार ही नहीं अपितु कुशल लेखक भी हैं। आज तक शताधिक रचनाएँ कर उन्होंने भारती के भण्डार को समर्पित की हैं। भाषा की दृष्टि से उनका साहित्य हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, संस्कृत और अंग्रेजी में प्रकाशित है। विविध विधाओं में उन्होंने जमकर लिखा है, कथा साहित्य के क्षेत्र में तो एक कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया है। उनकी लेखनी के चमत्कार पर समाज को गौरव है। श्री पुष्कर मुनिजी मेरे निकटतम स्नेही, सहयोगी, साथी रहे हैं। अनेकों बार साथ में रहने का अवसर मिला है, साथ में वर्षावास भी किये हैं। उनके स्नेह और सौजन्यता पूर्ण सद्व्यवहार से मैं सदा प्रभावित हुआ हूँ। श्रमण संघ को ऐसी वरिष्ठ विभूतियों पर सात्विक गौरव है। -(७४वीं जन्म जयन्ती के अवसर पर) माहण कुल केतु सरिस, निवड्यो गच्छ अमरेश, तारक शिष्य तारक बनी, अद्भुत दे उपदेश, अद्भुत दे उपदेश, ध्यान दिग्दर्शन करता, शंकाऽकुल कोइ आत, उसीका संशय हरता, मधुर वचन अतिथि सुनत, निरखत दृग अनिमेष, माहण कुलकीर्ति सरस, निवड्यो गच्छ अमरेश ॥२॥ (३) परियटक परवीण हैं, घूमे देश अनेक, तन रुज की परवा नहीं, लो ये दृढ़ता देख, लो ये दृढ़ता देख, दृढ़ासन दृढ़ मर्यादा, रंच नहीं अभिमान, सदा रहते हैं सादा, सरस सादगी रहत, नित कदली वन गज देख, परियटक परवीण हैं, घूमे देश अनेक ॥३॥ -(७४वीं जन्म जयन्ती के अवसर पर) मनुष्य चाहे न बदले पर उसके विचार बदलते हैं। तभी तो एक ही झटके में महाभोगी महायोगी बन जाता है। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि DAष्तष्कताका Sargestion international RORS506.006or Private a personal use D S P D 1060099RO900 000000002050... a 0. Pawinairepbarason
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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