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________________ doodhodo A ३३२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । प्रवचन-पंखुड़ियाँ SE0d (पूज्य गुरुदेव की प्रवचन शैली बड़ी अनूठी थी। विद्वत्ता के साथ-साथ मधुरता का संगम बेजोड़ था। चिन्तन की गहराई के साथ ही लोक जीवन को स्पष्ट दिशा दर्शन देने वाली सहज सुबोध सामग्री भी विपुल मात्रा में रहती थी। सबसे बड़ी बात उनकी कथन शैली में भावों के साथ शब्दों का उतार-चढ़ाव बड़ा ही मनोरंजक, मनमोहक था। लेखन में यद्यपि कथन शैली की सहज रोचकता तो नहीं आ पाती किन्तु उनके विचारों को विशद रूप में प्रस्तुत करने में कोई कमी नहीं रह पाती। गुरुदेव श्री के प्रवचन एवं निबन्ध साहित्य की अनेकानेक पुस्तकें छप चुकी हैं और वे सर्वत्र समाट्टत हुई हैं, तथापि उनके सैकड़ों प्रवचन असम्पादित/अप्रकाशित भी हैं। यहाँ पर गुरुदेव श्री के अप्रकाशित प्रवचनों में से कुछ प्रवचन तथा निबन्ध संकलित किये गये हैं। -सम्पादक T 0000020200 HI THPT QG (मनोनिग्रह : कितना सरल, कितना कठिन? ) प्रबलशक्ति से दूर ठेल दूंगा, परन्तु यह तो नपुंसक लिंगी होते हुए भी बड़े-बड़े शक्तिशाली मर्दो को क्षणभर में पछाड़ देता है। इसकी -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. शक्ति की कोई सीमा नहीं है। मन सबको भिन्न-भिन्न रूप में नचाता है प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ, स्नेहशीलवती माताओ-बहनो! यही कारण है कि बड़े-बड़े धनपति, शासनपति, विद्यार्थीआज आपका ध्यान एक ऐसे विषय की ओर खींचना चाहता शिक्षक मालिक-मजदर श्रमजीवी और बद्धिजीवी. योगी और हूँ जो आपके ही नहीं, जगत् के सभी मानवों के लिए समस्या बना भोगी, सबके सब मन की चंचलता पर काबू न पाने के कारण, ० हुआ है, वह है "मन"। कोई तनावग्रस्त है, कोई हीनता और दीनता से त्रस्त है, कोई hta मन ने सबको हैरान कर रखा है । मानसिक विकृति से युक्त है, कोई विक्षिप्त और मूढ़ बना हुआ है। 78 मन दो अक्षरों का छोटा-सा शब्द है, परन्तु इस छोटे से शब्द कोई मन का गुलाम बनकर उसके नचाये नाचता है, तो कोई मन ने साधारण मनुष्यों, कलाकारों, शिल्पियों, धनपतियों, शासन की प्रेरणा से अहंकार और ममकार के वश होकर कूदता- नाचता कर्ताओं, अधिकारियों ही नहीं, बड़े-बड़े महात्माओं और साधु है। कोई मन की ऊलजलूल कल्पनाओं में उलझकर तदनुरूप कार्य सतियों की नाक में दम कर रखा है। यह अलक-मलक की न होने से परेशान है। कोई काम, क्रोध, लोभ, मोह, ममत्व और कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाया करता है। एक क्षण भी जम कर स्थिर अहंत्व के चिन्ताचक्र में फंसकर अपने आत्मधन का ह्रास कर रहा नहीं रहता। योगीराज आनन्दधनजी जैसे योगीश्वरों को भी भगवान् है। कोई मन को वश में करने के लिए भांग, गांजा, मद्य आदि से प्रार्थना करते हुए कहना पड़ा नशैली चीजों का सेवन करके अपने आपको भुलाने की कोशिश में लगा है, फिर भी यह मन पुनः पुनः उछल कर उस पर हावी हो मनडुं किम ही न बाझे हो, कुन्थु जिन! जाता है। कोई मन का गुलाम बनकर अपने जीवनसत्व को भोगजिम जिम जतन करी ने राखू, विलास में निचोड़ रहा है। कोई मन से राग-द्वेष या विषय, कषाय तिम तिम आलगो भाजे हो, कुन्थु जिन! आदि करके अशुभ कर्म बाँध रहा है, अपने आत्मगुणों पर तात्पर्य यह है कि वे कहते हैं कि मन को सब तरह से अधिकाधिक आवरण डाल रहा है। मना-कर, दबाकर, समझाकर, प्रलोभन और भय दिखाकर भी देख मन को जीतने का भगवान का निर्देश लिया, परन्तु यह किसी भी तरह से काबू में नहीं आता। मैं इन सब मन की खुराफातों को जान-देखकर वीतराग परमात्मा ज्यों-ज्यों ध्यान, मौन, त्याग-वैराग्य आदि के द्वारा इसे चुप करके ने सभी आत्मार्थी साधकों से यही कहा कि मन को वश में करो, सुरक्षित रखने का प्रयत्न करता हूँ, त्यों-त्यों यह उछलकर भाग-दौड़ मन को जीतो, मन को स्थिर करो, मन का निग्रह करो, अथवा करने लगता है। मेरे ध्यान, मौन आदि को भी दूर ठेल देता है। मन को साधो। एक आचार्य ने यहाँ तक कह दिया-"मनोविजेता, आगे चलकर उन्होंने कहा जगतो विजेता" "मन पर विजय प्राप्त करने वाला, सारे जगत पर म्हें जाण्यु ए लिंग नपुंसक, विजय पा लेता है।" 2800 सकल मरद ने ठेले हो, कुन्धु जिने! योगवाशिष्ठ में कहा गया है___ मैंने तो समझा था कि मन (संस्कृत भाषा में) नपुंसक लिंगी है, “एक एव मनो देवो ज्ञेयः सर्वार्थसिद्धिदः। इसमें क्या ताकत होगी? इसमें क्या दमखम होगा? मैं मर्द हूं, उसे अन्यत्र विफल-क्लेशः सर्वेणं तज्जयं विना॥" 5800 परपयलण्यालणालणजमण्डपडण्लएर 200000000000000000000000000000000000 OF 6 3D000500000.000DROIDRDOS 6DSDED Main Education international. 00 0 0S FEETivate S.Personal use pily RDGE0 660 %AR . 6 6 3 6 6 w ww.rainelibrary.org ODEGORata 420200NDA
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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