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________________ 74 २८० वैयक्तिक साधना तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु विभिन्न राष्ट्रीय एवं मानवीय समस्याओं के प्रति भी आप सदैव सजग रहे। आपश्री के गीतों में निरर्थक फिल्मी गीतों की तरह बिजली की तड़क, सर्चलाइट की चकाचौंध या सर्कस की कलाबाजी नहीं है, किन्तु जो कुछ भी है वह सहज है, सुन्दर है, सरल है और सौम्य है। इनका लक्ष्य ? लक्ष्य स्पष्ट है - जन-जन के मन को स्वस्थ बनाना और भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर मोड़ना है। अन्य शब्दों में, मानव को जीवनोत्थान की मंगलमय प्रेरणा प्रदान करना है। आपके गीत स्तुतिपरक, उपदेशपरक और प्रकीर्णक हैं। स्तुतिपरक रचनाओं में कवि ने प्रसिद्ध आराध्यदेव तीर्थंकर, विहरमान तीर्थंकर गणधर और सतियों की स्तुति की है। इन रचनाओं में शैली एक ही रही है। कवि को ऐश्वर्य, धन, यश आदि की रंचमात्र भी कामना नहीं है, वह तो केवल भवसागर से पार होना चाहता है। सन्त होने के कारण कविता साध्य नहीं, साधन है। उपदेशपरक रचनाओं में कवि ने हेय बातों को त्यागने और उपादेय बातों को ग्रहण करने के लिए उत्प्रेरित किया है। प्रकीर्णक रचनाएँ वे हैं, जो दोनों उक्त वर्गों में नहीं आती हैं। ये रचनाएँ समय-समय पर श्रोताओं को उद्बोधन देने हेतु रची गई हैं। चरित काव्य ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन चरित्र को आधार बनाकर काव्य-रचना करने की प्रवृत्ति अतीत काल से रही है। जैन साहित्य, में भी चरित्र काव्यों की लम्बी परम्परा है। चरित्र के माध्यम से जीवन-निर्माण की पवित्र प्रेरणा दी जाती रही है। गुरुदेवश्री ने भी क्षमावीर उदायी, द्रोपदी की आदर्श क्षमा, सत्यान्वेषी आचार्य शय्यम्भव, बालर्षि मणक, महामात्य शकडाल, श्रुतकेवली आचार्यश्री भद्रबाहु महायोगी स्थूलभद्र कोशा गणिका का कला-कौशल, यक्षा साध्वी, चाणक्य और चन्द्रगुप्त, बुढ़िया की सीख, अवन्ति सुकुमाल का त्याग, आर्य मंगू, महान् प्रभावक आर्य वज्रस्वामी, वज्रसेन की भविष्यवाणी, आचार्य आर्यरक्षित, आचार्य सिद्धसेन दिवाकर, युगप्रधानार्च नागार्जुन, देवर्धिगणी क्षमाश्रमण, आचार्य हरिभद्र आचार्य मानतुंग, सम्राट् सम्प्रति श्री रत्नाकर सूरि सूरि सम्राट् श्री हीरविजय जी, कवि धनपाल की सेवा, कुमारपाल की घोषणा, जैन श्राविका का साहस, भोज का भाग्य, देशप्रेमी भामाशाह, दयाधर्म की विजय, अशीच भावना सबसे बड़ा कौन ?, वृद्धा की सामायिक, सत्यवादी मुहणसिंह, धृतराष्ट्र की दुष्टता, भौतिक सुख में सार नहीं, काल का असर, आचार्य अमरसिंह जी महाराज, आचार्य श्री तुलसीदास जी महाराज, आचार्य श्री सुजानमल जी महाराज, आचार्य श्री जीतमल जी महाराज, आचार्य श्री ज्ञानमलजी महाराज, आचार्य पूनमचन्द जी Education International 11825 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ महाराज, अध्यात्मयोगी जेठमल जी महाराज, महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज, आदि अनेक ऐतिहासिक महापुरुषों पर आपश्री ने अनेक खण्ड काव्य लिखे हैं। सुरसुन्दरी चरित्र, रत्नदत्त चरित्र, मानतुंग मानवती चरित्र, गुणाकर गुणावली चरित्र, पुण्यसार चरित्र, सुखराज चरित्र, अमरसेन- वीरसेन चरित्र, वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार चरित्र, पाप-विपाक (बाल हत्यारा), पापों का फल (भला और बुरा) कर्म विपाक, स्वार्थ का खेल, महामंत्री उदयन, धनतेरस, दुःख का कारण, हिन्दुओं की गौरव गरिमा, सुशीला की सुशिक्षा, बादशाह की न्यायप्रियता कृत कारित का फल, एक वचन का प्रभाव, महामंत्र नवकार, परोपकार वृत्ति, मृत्यु का भय, सर्वज्ञप्रभा, पाप का बाप, कर्मों का कर्जा, कसाई केवली, त्याग की महिमा, गिरिधर की मोहलीला, निस्पृह सन्त गोरखनाथ, केशरिया मोदक, गोपीचन्द राजा, मम्मण सेठ, नरभव की महिमा, चमड़ी की परख, कुमारपाल, अमरजड़ी, शीतलापूजन, मातृसेवा, सफलता का मूल भाग्य, महात्मा गाँधी, दाड़िम सेठ, अनुकम्पा की महिमा, लक्ष्मीधर सेठ, जीवरक्षा का महत्त्व, सम्राट् सम्प्रति भोज का भाग्य अशीच भावना, पूनिया श्रावक, वचन का महत्त्व, दया की भावना, नियम की दृढ़ता, दान में अभिमान, गांगेय से भीष्म, स्त्री का सेवाभाव, गुरुभक्त एकलव्य, छल का फल, दान का दोष, कीचक का नाश, सबसे बड़ा दुःख, क्रोध की आग, न्याय की बात, कर्ण का दान, एक सेर सतुआ, परोपकारी भीम, भाई का भाई, योग्यता बढ़ाइये, जीवरक्षा की शिक्षा, हाय गरीबी, द्रौपदी की क्षमा, अद्भुत दान, अर्जुन का आदर्श, धर्म की अडिगता, सच्ची सलाह, वशीकरण का रहस्य, समय बड़ा बलवान, अतिथि देवो भव, ऊँचा मनोबल, विजय का मार्ग, एक चुनाव, छोटी-सी भूल, नियम का प्रभाव, गुण की दृष्टि, एक अनुपम सहयोग, दासी या स्वामिनी ?, असली तीर्थयात्रा, प्राणघाती की प्राणरक्षा, जाजली और तुलाधार, अतिलोभ एक दुर्दशा, छह गुरु, भाग्य की बात, आत्मा को देखो, गलत निर्णय, चोरी का दण्ड, विनय की विशेषता आदि शताधिक चरित्र और खण्डकाव्य आपश्री ने लिखे हैं । उनमें से कुछ चरित्र 'ज्योतिर्धर जैनाचार्य' 'विमल विभूतियों', वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार, महाभारत के प्रेरणा प्रदीप आदि कुछ प्रकाशित हुए। हुए हैं तथा बहुत से अप्रकाशित है। इतिहास मानव जाति की बहुत बड़ी अमूल्य सम्पदा है। अतीत की महत्त्वपूर्ण घटनाओं और चली आ रही परम्परागत धारणाओं का यथार्थ चित्रण इतिहास में मिलता है। भारतीय धर्म, दर्शन और समाज की ऐतिहासिक परम्परा अत्यधिक समृद्ध रही है। यह एक ज्वलन्त सत्य है कि व्यष्टि की अपेक्षा समष्टि को व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्त्व देने के कारण भारतीय परम्परा में इतिहास का जिस प्रकार लेखन अपेक्षित था, उस रूप में न हो सका। किन्तु इतिहास लेखन के विविध स्रोत किसी न किसी रूप में सुरक्षित अवश्य रहे हैं। महाकाल के झंझावात में भी वे स्रोत लुप्त " G For Private & Personal Use Only 199081803280 शु www.lainelibrary.org 100 as a 96
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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