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________________ जो चले गये आँखों से ओझल हुए, मगर स्मृतियों में वे सदा जीवित ही रहते हैं, उनके बाकी बचे निशान आईठाण, जब-जब इन्हें देखेंगे उनसे जुड़ी बातें, स्मृतियों में पुन-पुनः जन्मती रहेगी, वे मरे नहीं, यह कहती रहेगी। श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय का नवनिर्मित प्रवचन भवन जहाँ पर गुरुदेवश्री प्रवचन पीयूष वर्षात थे। ग्रन्थालय का प्राचीन भवन, जहाँ पर गुरुदेवश्री ने संथारा ग्रहण किया। वह सुखपाल पालकी जो अस्वस्थता के समय गुरुदेवश्री के विहार में उपयोगी बनती थी। गुरुदेवश्री के उपकरण-मुखपत्ती, रजोहरण, पात्र, माला, चश्मा, घड़ी, वस्त्र, पुस्तकें आदि। For Private & Personal Use Only www.ainelibrary.ord
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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