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________________ तल से शिखर तक प्रथम आवृत्ति ३००0 प्रतियाँ सिर्फ ५ दिन में समाप्त हो गयीं। पुनः द्वितीय आवृत्ति ८ दिन में समाप्त हो गई। संसार में भाँतिभाँति के लोग हैं। उसकी लोकप्रियता को देखकर कुछ लोगों ने उसकी आलोचना भी की। किन्तु उसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती ही गई। सूर्य को काला कहने से वह काला तो हो नहीं सकता। चतुर्थ यात्रा में दक्षिण की ओर बढ़ना था तो केवल चालीस दिन रहे। किन्तु इन चालीस दिनों में बहुत व्यस्त कार्यक्रम रहा। स्थान-स्थान पर आपश्री के जाहिर प्रवचन हुए। महावीर जयन्ती के पावन प्रसंग पर चौपाटी पर लगभग ७०-८० हजार जनता थी । भात - बाजार के जाहिर प्रवचन में १०-१५ हजार जनता थी। बम्बई में सर्वप्रथम राजस्थानी मुनियों का स्वागत और विदाई समारोह मनाया गया, जिसमें बम्बई में गणमान्य नेतागण उपस्थित थे। इन चालीस दिनों में बम्बई के सैकड़ों कार्यकर्तागण गुरुदेव श्री के निकट सम्पर्क में आए, प्रभावित हुए और कर्मक्षेत्र में दृढ़ता से आगे बढ़ने के लिए उत्प्रेरित हुए। पाँचवीं यात्रा दक्षिण भारत से राजस्थान आते समय की है। इस यात्रा में बम्बई के विविध अंचलों में केवल अठारह दिन रुके, किन्तु कार्यक्रम व्यस्त रहा तथा राजस्थानी संघ ने उपाश्रय के लिए लाखों रुपये दान दिए । अनेक गणमान्य व्यक्तियों से साहित्यिक तथा सांस्कृतिक चर्चाएँ हुईं। गुरुदेव अहमदाबाद भी चार बार पधारे। प्रथम बार प्रेमाबाई हॉल में जाहिर प्रवचन हुए। दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार जाहिर प्रवचन हुए तथा चौथी बार आपने वर्षावास वहीं किया। उस समय वहाँ श्रावकों में जो साम्प्रदायिक मतभेद चल रहे थे, वे आपश्री के प्रभाव से समाप्त हो गए तथा जनमानस में स्नेह-सौजन्य का सरस वातावरण बना। भगवान् महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी का सुनहरा प्रसंग था श्वेताम्बर मन्दिरमार्गी जैन समाज में निर्वाण शताब्दी मनाई जाय इस सम्बन्ध में तीव्र विरोध था। उस कटु वातावरण में आपश्री के प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व के कारण अहमदाबाद में स्थित मन्दिरमार्गी समाज के मूर्धन्य आचार्य श्री नन्दनसूरि जी महाराज ने उस आयोजन में भाग लिया। इस प्रकार उग्र विरोध होते हुए भी महोत्सव भव्य रूप से मनाया गया। हठीसिंह की बाड़ी में तथा नगरसेठ के वंडे में सामूहिक रूप से आयोजन हुए तथा राजस्थानी सोसायटी के विशाल मैदान में मोरारजी भाई देसाई के द्वारा "भगवान् महावीर एक अनुशीलन" ग्रन्थ का विमोचन किया गया और वह आपक्षी को समर्पित किया गया। पूना में भी आपश्री के दो वर्षावास हुए प्रथम की अपेक्षा द्वितीय वर्षावास अधिक प्रेरणादायी रहा। इस अवधि में अनेक मूर्धन्य मनीषियों से सम्पर्क बढ़ा। "जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण", "धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आँगन में", "भगवान् 94000 Jan Education Theriatorel 00000 २५१ महावीर की प्रतिनिधि कथाएँ" आदि अनेक ग्रन्थों का विमोचन हुआ। इसी समय आपश्री की प्रेरणा से विश्वविद्यालय में जैन चेयर की स्थापना हुई, जिसका जिक्र हमने आरम्भ में किया था। पुष्कर गुरु सहायता फण्ड की स्थापना भी तभी हुई थी एवं तपस्या के ठाठ का तो कहना ही क्या ? जयपुर में आपश्री के तीन वर्षावास हुए। जोधपुर में पाँच इन वर्षावासों में अध्ययन - चिन्तन-मनन के साथ ही जैन एकता के लिए आपश्री ने अथक परिश्रम तथा प्रबल पुरुषार्थ किया। आपश्री के वर्षावासों में तप एवं जप की उत्कृष्ट साधना होती है। आपश्री ने जहाँ भी वर्षावास किए, वहीं-वहीं स्नेह सद्भावना के सरस सुमन खिलते रहे युवकों में धर्म के प्रति आस्था एवं अनुराग जागा । आपश्री की कर्नाटक की यात्रा भी अत्यन्त यशस्वी रही थी। उस प्रान्त में आप जहाँ भी पधारे, वहाँ पर अपूर्व उत्साह का संचार हुआ। जन-जन के मानस में जैन धर्म व दर्शन को जानने, समझने तथा अपनाने की निर्मल भावनाएँ अंगड़ाइयाँ लेने लगी। अनेक शिक्षण संस्थाओं में आपके प्रवचन हुए। रायचूर में स्थानकवासियों के एक सौ दस घर होने पर भी ग्यारह मास खमण तथा अन्य इकसठ तपस्याएँ हुई। बैंगलौर वर्षावास में लगभग ४६ मासखमण हुए तथा तप की जीती-जागती प्रतिमा अ. सी. धापूबाई गोलेच्छा ने १५१ की उग्र तपस्या की। इसके अतिरिक्त अन्य लघु तपस्याएँ भी इतनी अधिक हुईं कि लोग विस्मित रह गए। “पुष्कर गुरु जैन युवक संघ", "पुष्कर गुरु जैन पाठशाला" एवं "पुष्कर गुरु जैन भवन" का भी निर्माण हुआ। अब आइये मद्रास | मद्रास दक्षिण भारत का जाना-माना औद्योगिक केन्द्र है। वहाँ के राजस्थानी बन्धुओं ने अनेक सामाजिक, राष्ट्रीय व सांस्कृतिक कार्य करके अपनी गौरव गरिमा में चार चाँद लगाए हैं। स्थानकवासी जैन समाज द्वारा संचालित अनेक शिक्षण संस्थाएँ यहाँ हैं। उच्चतम शिक्षा केन्द्र से सामान्य शिक्षा केन्द्र तक की व्यवस्था है। समाज द्वारा अनेक आरोग्य केन्द्र भी संचालित हैं। पूज्य गुरुदेव का सन् १९७८ का शानदार वर्षावास मद्रास में हुआ। मद्रास में गर्मी अधिक पड़ने के कारण यहाँ तपस्याएँ कम ही हो पाती हैं। किन्तु आपके वर्षावास में इक्कीस मासखमण हुए मानव समुदाय की सेवा सुश्रूषा के लिए जो व्यवस्था है, उसमें आपक्षी की प्रेरणा से उदारमना महानुभावों ने लाखों रुपयों का दान दिया। आपखी के पावन उपदेश से प्रभावित होकर श्रावक संघ ने "दक्षिण भारतीय स्वाध्याय संघ" की स्थापना की। इस स्वाध्याय संघ की महान् विशेषता यह है कि यह एक असाम्प्रदायिक संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य है-दक्षिण भारत में शुद्ध स्थानकवासी धर्म का प्रचार करना। पर्युषण के पुण्य पलों में स्वाध्यायी बन्धु यत्र तत्र जाकर स्वयं भी धर्म की साधना करते हैं और दूसरों से भी करवाते हैं। दूसरी विशेषता यह है कि बड़े-बड़े उद्योगपति भी इस स्वाध्याय संघ में सक्रिय भाग लेते हैं। Wate & Per
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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