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________________ २०८ औचक अंधेरे में फिर डूब गये हैं हम अत्तर आकाश में अश्रु की उमड़ रही हैं अनचाही घटाएँ भीड़ में घिर के भी सन्नाटों में कैद हो गये हम आज लगता है सूरज में कल जैसी आज चमक नहीं है जलते दीपों में वो दमक नहीं है हवाएँ चल रहीं मगर साँस लेने का मन नहीं है। बगिया वही है मगर जिसकी सौरभ प्रसन्न होते थे सब उसमें वह सुमन नहीं है। आपकी सदा जय हो! Jain Education Intemational 1611 धरती रोई, अम्बर रोया, रोया है ऊपर वाला। बीच भंवर में छोड़ चले आप, किस्मत में पड़ गया ताला ॥ आपने उम्र साधना जो की इतिहास हमेशा गायेगा। " आपकी पुनीत प्रेरणाओं पर, युग अपना शीश झुकायेगा ॥ श्रद्धाञ्जलि प्रीति पुष्प पुष्कर सूख गया है नियति के हाथों फूल स्मृतियों को संजोये खड़े हैं। भ्रमरों का बन्द है गूँजन तितलियों की शान्त है धड़कन चलता फिरता पुष्कर देखते देखते झीलों की लहरों में खो गया श्रद्धा के मेरे पास सिर्फ रह गये हैं आँसू जो स्मृति आने पर छलकते हैं भावों के सुमन खार के मध्य खिलते हैं। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ -सीता पारीक "पूजाश्री, विजयनगर (अजमेर) मन बोलता है हर बार हे महामानव तुम्हारे जग पर कई अनगिनत हैं उपकार आपकी सदा जय हो! जय हो! जय हो!! सुमन समर्पित करते हुए fist For Private & Personal Use Only कोमलता आपके कण-कण में थी, जागरूकता रहती थी क्षण-क्षण | अपूर्व साधना जो आपने की, चमकाया जग का हर कण-कण ॥ -मनोज कुमार दीप जो आपने जलाया, वो सदा जलता ही रहेगा। साधना का जो चमत्कार दिखाया, वह सदा फलता ही रहेगा ।। 'जैन 'मनस्वी', भारत की ओ दिव्य विभूति, मैं श्रद्धा के गीत गाऊँगा । वन्दन कर आपके चरणों में श्रद्धा के पुष्प चढ़ाऊँगा । 7 ब्यावर www.jairelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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