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________________ boorhood २०४ गोगुन्दा निकट ग्राम 'सिमटारा' में लेकर जन्म वंश, मात-पिता को किया धन्य! उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । प्राकृत-संस्कृत-हिन्दी-मराठी! गुजराती-कन्नड़-राजस्थानी !! इन भाषाओं पर किया एकाधिकार बन गये फिर तो काव्यकार साहित्यकार प्रवचनकार! नाम था अम्बालाल बनेगा छहकाय का प्रतिपाल नियति ने लिख दिया यही उन्नत भाल पर! 152900CGPA000 वाणी में अद्भुत तेज सिंह-सी गर्जना शब्दों का सरस प्रवाह श्रोता, सुन-सुन कर हो जाता निहाल! बचपन में ही विरक्त रहने लगा गुरुदेव श्री ताराचंद्र जी महाराज की प्रवचन-धारा में जब किया अवगाहन वैराग्य रंग से रंजित होने लगा सुषुप्त आतम-भान जगने लगा! तज दियामात-पितु का दुलार आ गयागुरुदेवश्री की चरण-शरण! करनी जो हैपावन प्रव्रज्या ग्रहण! विद्याजीवी ब्राह्मण कुल में लेकर जन्म आजीवन ग्रहण किया-ब्रह्मचर्य! और भगवान की इस सूक्ति को "बंभचेरेण होइ बम्भणो" को सार्थक कर गया १९८१ विक्रमी संवत् ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन वह किशोर/संयमित हो गया......... एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया............ वीरों की भूमि (मेवाड़) का ये वीर सबको कहताबन जाओ महावीर! हरलो जन-जन की पीर।। प्रवचन सुनने उमड़ती भीड़ अपार जन संकुल ही जन संकुल। सम्पर्क में जो भी आया गुरुवर के यादों की पिटारी संग ले गया जन-जन के अन्तस्थल में गुरुवर पुष्कर का सुवचन उड्रंकित हो गया............॥ गुरुदेव की अति सुखद छत्रछाया में गुरुदेव के ज्ञान-वर्षण से अणगार “पुष्कर" निज ‘ज्ञान पुष्करिणी' भरने लगा। सीखा-आगम-ज्ञान। एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया निज व्यक्तित्व की छोड़ सुवास अनंत में। न जाने कहाँ खो गया.......॥ पाँव-पाँव चलने वाला सूरज गाँव-गाँव, नगर-नगर, डगर-डगर फैलाकर धर्म की रोशनी आया झीलों की नगरी उदयपुर कार्यक्रम थानिज सुशिष्य विद्वद्वर्य देवेन्द्राचार्य का आचार्य पद चादर महोत्सव! कार्यक्रम हो गया सानन्द-सम्पन्न! 5000 -90%ALPRO6902 302R 0000000000 2090Frprivate & Personaruse only in Education international . 3 000- 0 0 0000000000000000000000000 00wjainelibrary.org. 6
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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