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________________ S TATo1010010306 30 20 २०२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । श्रद्धा-सुमन पुष्कर परम पुनीत ग -चन्दनमल बनवट, सीहोर (म. प्र.) -दर्द शुजालपुरी ED "पुष्कर मुनि" स्मृति तुम्हारी आती है। इस भारत की धरती अश्रु बहाती है। द्वीपों में ज्यों श्रेष्ठ है श्री पुष्करवर द्वीप, गुरुओं में अति श्रेष्ठ हैं, पुष्कर परम पुनीत। ज्योति तुम्हारी से प्रज्वलित जग सारा तुम ऐसे स्थापित जैसे ध्रुव तारा सरस्वती तुमको आशीष सुनाती है! पुष्कर मुनि स्मृति तुम्हारी आती है! तीर्थों में पुष्कर बड़ा महातीर्थ है एक, उपाध्याय पुष्कर गुरु पूर्ण तीर्थ हैं नेक। तुमने “सिमटारा" भूमि को धन्य किया "ताराचंद्र गुरु" ज्ञान-गंग का पान किया DOODS00690SARDAN 2-9:29.9 SHORO वाणी तुम्हारी भक्ति-भाव जगाती है! पुष्कर मुनि स्मृति तुम्हारी आती है! वाणी में अति मधुरता, गरजें जैसे मेघ, दिग्विजयी बनते गए कर कर अश्वमेध। गंगा से गंभीर हैं, सरस्वती समवेत, हिमगिरि से उत्तुंग हैं, हीरक कणि से श्वेत। तुम योगी तुम साधक तुम अविनाशी हो कोटि-कोटि जैनों के हृदय निवासी हो बस्ती-बस्ती यश-गाथाएँ गाती हैं! पुष्कर मुनि स्मृति तुम्हारी आती है! तुम उदार तुम सहज सरल और निर्मल थे तुम मनीषियों, विद्वानों के सम्बल थे श्रमणसंघ के स्तंभ हैं, प्रभु के मानस्तंभ, अगणित भक्तों के सुघड़ सुदृढ़ हैं अवलम्ब। 12000 P - 06:00%ADDOD "शिष्यरत्न देवेन्द्र" तुम्हारी थाती है! पुष्कर मुनि स्मृति तुम्हारी आती है! 0.000 58 20030 "उपाचार्य जी के गुरु" उपाध्याय वर श्रेष्ठ, सहन भक्त प्रातः जपें "पुष्कर" अरु “गुरु ज्येष्ठ''। आस्था ही वह आधार है जिस पर धर्म का भवन खड़ा होता है। सब ओर से निराश व्यक्ति अनायास ही धर्म की ओर झुकता है। परम नास्तिक भी संकट पड़ने पर भगवान को मानने लगते हैं। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि धन्य मानता मैं स्वयं सहपाठी गुरुराज, "चंदन" चरणों में नमित कल परसों व आज। t PURNatononferno 2030050000 es00:00:00 29FODerivateersemarUSee STD000000:00 00105SDA reveaf
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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