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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर गुरु तेरा नाम रहेगा (तर्ज बहुत प्यार करते हैं बहुत याद करता है, मेरा ये मन भुला न सकेंगे, जनम जनम यादें तुम्हारी, हरदम सताती एक पल गुरु तुम्हें, भूल न पाती जाने से तेरे-सूना है चमन जीवन में तेरे थी कितनी सरलता अध्यात्मयोगी थे कितनी सजगता करते जो दर्शन, मिटते करम अमृत सी पावन, तुम्हारी थी वाणी भव्य जनों को जो थी कल्याणी सुनते थे जो भी थे मिटते भरम जब तक ये सूरज चांद रहेगा तब तक गुरु तेरा नाम रहेगा श्रद्धा में चरणों में "निरू" का नमन फिर तेरी कहानी याद आई -साध्वी निरूपमा -साध्वी गरिमाजी फिर तेरी कहानी याद आई, फिर तेरा तराना याद आया हम सबको रोता छोड़ तेरा, चुपके से यूँ जाना याद आया एक सुमन खिला था उपवन में सौरभ फैली थी हर दिग् में UKR 00000 Jain Education International तब किसने जाना था मन में मुरझायेगा ये तो किसी दिन में मुरझा के भी अपनी सुरभि से जग को महकाना याद आया तुम प्यार के सागर थे गुरुवर सद्गुण के आकर थे गुरुवर जिन-धर्म प्रचारक थे गुरुवर तुम ज्ञान दिवाकर ये गुरुवर अपने पावन उपदेशों से जन-मन को जगाना याद आया 000 208 तेरा आंगन तो वृन्दावन था, दर्शन तेरा अति पावन था उपदेश तेरा मन भावन था । बस याद के दीप जलाते हैं मानव क्या तू महामानव था चरणों में तेरे जो भी आये उनको अपनाना याद आया तुम्हें भूल न एक पल पाते हैं और श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं तुम्हें भाव से शीष झुकाते हैं। हम भटके थे संसार भवंर तेरा राह दिखाना याद आया......। श्रद्धांजलि 90 (तर्ज बार बार तोहे' ') उपाध्याय पूज्य गुरुवर को याद करे नर नार जीवन जिनका पूर्ण रहा मंगलकार | रि॥ ज्ञान ध्यान में रहकर जप तप खूब किया भवि जीवों को अमृतमय उपदेश दिया १८१ नांदेशमा गाँव में जन्म आपने पाया था मेवाड़ धरा को धन्य धन्य बनाया था सूरजमल और बालि बाई के सूत थे प्राणाधार ॥ १ ॥ तारक गुरु से शिक्षा आपने पाई थी जालोर शहर में दीक्षा ठाई थी संघ धन्य हो गया वहाँ का बोले जय जयकार ॥२॥ चादर महोत्सव पर उदियापुर आये थे अंतिम दर्शन देकर संथारा ठाये थे For Private & Personal Use Only - साध्वी सुप्रभाजी संप्रदायवाद को दूर हटाकर किया धर्म प्रचार ॥ ३ ॥ चैत सुदि ग्यारस का दिन कैसा आया गुरुवर सबको तज के स्वर्ग सिधाया समभावों में रमण किया और जीता मोह अपार ॥४॥ सुप्रभा की श्रद्धाजलि हो चरणों में बारंबार ॥५ ॥ www.jaigelibrary. pra
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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