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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर उपाध्याय मुनि पुष्कर प्यारे ! हन्त ! हन्त ! सुरलोक सिधारे! (9) जिनके शम, दम, संयम पर थे, लोग सभी बलिहारे जी। उपाध्याय मुनि पुष्करश्री जी, हा हा स्वर्ग सिधारे जी ॥ (२) सुनते ही मनहूस खबर हर, दिल पर बज्रापात हुआ। ऐसा शोक हुआ कुछ गहरा, शोक शोक से मात हुआ । (3) एक-एक से बढ़कर जग में, देखा सन्त निराला है। सन्त आप-सा कहीं कभी भी, पर न मिलने वाला है । लिए प्र (४) सन्त एक बस हीरा ही थे, हीरों में भी जो सिरताज । भूल सकेगा नहीं आपको, सपने में भी जैन समाज ॥ (५) जैन जगत यह चाहे जितनी, कोशिश करने वाला है। रिक्त हुआ जो स्थान आपका, कभी न भरने वाला है। (६) अखिल विश्व का मंगल करने, दुनिया में थे आये जी । अखिल विश्व का मंगल करके, जग से आप सिधाये जी ॥ (७) दर्शन किये आपके जिसने, गुण गाता न थकता है। Jain Education International हर इक ही तो चरण कमल पर, श्रद्धा भारी रखता है । ('लावनी छन्द' वा 'ताटक छन्द) (<) 'श्रमणसंघ' का नाम कह गये रोशन जग में भारी जी सन्त आप- सा विरला होगा, कोई पर उपकारी जी ॥ (९) उपाध्याय पद पा करके भी, कुछ न ज्ञान-गुमान किया। विनय विवेक धर्म पर अपना, केवल केन्द्रित ध्यान किया । (१०) वक्ता कुशल कमाल आप थे, लेखक कोविद कविः कमाल! संयम निर्मल पाला ऐसा, जिसकी मिलनी कठिन मिसाल ॥ (११) लिखे आपने ग्रन्थ सैकड़ों, 'जैन कथाएँ' के सौ भाग । सत्य, दया, अनुकम्पा जित में, भरा हुआ है जप, तप, त्याग ॥ (१२) क्या बतलायें जो दीपाये, उपाध्याय के गुण पच्चीस । आप समान किसी में ही तो, गुण ये होते विदूवे बीस ॥ (१३) झण्डे जैन धर्म के जग में. जगह-जगह लहराये थे। दूर हटा पाखण्ड हजारों, सच्चे मनुज 'बनाये थे। (१४) चादर उत्सव से न पहले, स्वर्गपुरी प्रस्थान किया। योगीराज ! योग के बल से, सब का ही रख मान लिया ॥ Priva enal Use Only -उपप्रवर्तक श्री चन्दन मुनि 'पंजाबी' (१५) प्रिय देवेन्द्राचार्य शिष्य को, देकर अन्तिम आशीर्वाद । स्वर्ग सिधाये, नहीं आपको, कौन करेगा कहिये याद ? (१६) 'मुनि रमेश' 'राजेन्द्र' विज्ञवर, 'मुनि गणेश' 'गीतेश महान्। 'मुनि दिनेश' 'नरेश' 'जिनेन्द्र मुनि', 'मुनि सुरेन्द्र जी' गुण की खान ।। (969) 'शास्त्री' और 'एम. ए. कोई, है 'बी-कॉम' 'विशारद' और ऊँचे शिक्षण से शिष्यों को, विज्ञ बनाया है हर तौर ॥ (१८) १६९ शिष्य-प्रशिष्य आपके जितने, गीत आपके गायेंगे। इन में ही अब आप सर्वदा, नज़र सभी को आयेंगे ॥ (१९) वर्ष बयासी से भी ऊपर, आयु आपने पाई है। दिग्-दिगन्त पर्यन्त देखलो, महिमा भारी छाई है । (२०) मात्र जिक्र क्या अरे ! आज का, वर्ष हजारों के भी बाद नगर 'उदयपुर' के हर उर में, मधुर रहेगी उनकी याद ॥ (२१) स्वर्गवास सुन आज आपका, जो है भारी भौचक स्तब्ध ! 'चन्दन मुनि पंजाबी' करता, चरणों में दो अर्पित शब्द! www.jainehbrang.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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