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________________ 3000000000000285 1१५० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । महर्षियों ने भी जन्म लेकर जन-जन को पवित्र प्रेरणा प्रदान की है।। आप भारत के महान संत, चिन्तक, अध्यात्मयोगी, मनीषी थे, इसी परम्परा की लड़ी की कड़ी में अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव । हे दया के सागर, पीड़ाहारक, महामानव तुम्हें शत-शत नमन। उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. का नाम गौरव के साथ लिया जा सकता है। उपाध्यायश्री जी म. ओजस्वी और प्रभावशाली प्रवक्ता थे अध्यात्मयोगी चला गया और समर्थ लेखक थे। उनका व्यक्तित्व अद्भुत और अनूठा था, उनका व्यवहार बहुत ही सौम्य था, जो भी उनके सम्पर्क में आया -चाँदमल बाबेल (भीलवाड़ा) उसे ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ, उन्होंने “सत्यं शिवं सुन्दरम्" D जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनके प्रवचनों में भाषा की सरलता "करोड़ों रोज आते हैं, धरा का भार बनने को। और भावों की गम्भीरता रहती थी। आपकी वाणी में ओज था। अनेकों जन्म लेते हैं, जनों के पाश बनने को। आपश्री की आवाज बहुत ही बुलन्द थी। यहाँ तक कि आठ दस कई हैं जन्मते पंडित, जवां से बह्म बनने को। हजार व्यक्ति भी बिना ध्वनि विस्तारक यंत्र के आपके प्रवचनों को उपजते हैं यहाँ कितने, शरीरी सन्त बनने को॥" आनन्द के साथ सुन सकते थे। इस नश्वर संसार में अनन्त प्राणी प्रतिदिन जन्म धारण करते आपने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया और जैन परम्परा में आप हैं और प्रतिदिन काल के विकराल गाल में विलीन हो जाते हैं। दीक्षित हुए। आप आजीवन जैन दर्शन के गंभीर अध्येता रहे, आप जन्म-मृत्यु का यह काल चक्र अनादि काल से चला आ रहा है। एक जैन दर्शन की जो सूक्ष्म मीमांसा करते, उसे श्रवण कर प्रबुद्ध वर्ग दिन जन्म लेना, एक दिन मरण को प्राप्त करना यह विश्व का अत्यधिक प्रभावित होता था। जैन कथा सिरीज माला में आपने अबाध सनातन नियम है। जन्म, मरण इस दृष्टि से अपने परिवेश १११ भागों का निर्माण किया, ये कथाएँ कितनी प्रेरक हैं, इसका में कोई विशेष घटना नहीं रह गयी है। पता ही नहीं चलता कि इस आभास मुझे सन् १९७८ में हुआ, जब मैं दृष्टिरोग से पीड़ित था जन्म-मरण के चक्रव्यूह में कौन, कब और कहाँ जन्म लेता है और और उसका उपचार करने के लिए मद्रास गया हुआ था, मेरी नेत्र इस संसार से कब चला जाता है। इस जन्म-मरण के चक्र को ज्योति पूर्णतया नष्ट हो चुकी थी। मैं उपाध्यायश्री का आशीर्वाद ऐतिहासिक बनाया जा सकता है ? यह प्रश्न विचारणीय है। लेने पहुँचा, उपाध्यायश्री जी ने आशीर्वाद दिया और आचार्य श्री विश्व के इतिहास में बड़े-बड़े धनपति व सताधीश हो चुके हैं। देवेन्द्र मुनिजी म. ने मुझे सांत्वना दी और उन्होंने जैन कथाओं की जिनके प्रासाद गगन से टकराते थे जिनके विशाल भवनों में लक्ष्मी पुस्तकें दी। प्रतिदिन मैं अभिभावकगण से उन कथाओं को सुनता । नृत्य करती थी जिनके शौर्यबल के सामने अनेकों योद्धा हाथ जोड़े लगभग वहाँ दो माह तक मुझे रुकना पड़ा, भारत के सुप्रसिद्ध नेत्र खड़े रहते थे। किन्तु आज विश्व में उनके किस कोने में स्मृति चिन्ह चिकित्सक डॉ. बद्रीनाथ ने मेरी चिकित्सा की। शल्य चिकित्सा के अवशिष्ट हैं? पूर्व मैं दर्शन के लिए पहुँचा। उपाध्यायश्री जी का मंगलपाठ श्रवण किया और आचार्यश्री ने मुझे कहा, हम गुरुदेव से प्रार्थना करेंगे वे विश्व के उदयाचल पर विराट् व्यक्तित्व सम्पन्न दिव्यात्मायें आपके स्वास्थ्य की मंगल कामना करेंगे और आपको नेत्रज्योति समय-समय पर उदित होती रही हैं। जिनके आचार-विचार, ज्ञान अवश्य प्राप्त होगी और यह सत्य सिद्ध हुआ। और चारित्र का भव्य प्रकाश देश, धर्म और समाज के सभी अंचलों को आलोकित करता रहा है। जन-जन के जीवन में ज्योति गुरुदेवश्री के दर्शन से मुझे मानसिक शांति प्राप्त हुई और भरता रहा है। उनकी कथाओं से मेरे मन में अपूर्व शक्ति का संचार हुआ। आपकी साधना अपूर्व थी, मध्याह्न में आप ग्यारह से बारह बजे तक ध्यान वस्तुतः भारत की शस्य श्यामला वसुन्धरा में युगों-युगों से करते थे। बारह बजे का मंगलपाठ सुनने के लिए हजारों की धर्मधारा प्रवाहित होती रही है। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से महावीर जनमेदिनी उपस्थित होती थी। स्थानकवासी परम्परा में ऐसे कम तक के शासनकाल में हजारों-हजार संयमी मुमुक्षु आत्मायें धर्म पथ साधु मिले हैं जिनके मंगल-पाठ में हजारों की संख्या में उपस्थिति पर चलकर आत्म-कल्याण करती हुईं जन-जन को सद्बोध देती हुई हो। आप सिद्ध जपयोगी थे, आपको दृष्टि इतनी पैनी थी कि रही हैं। इसके बाद भी पावन धर्म सलिता निरन्तर प्रवाहित होती देखते ही आपको यह ज्ञात हो जाता था कि यह व्यक्ति अमुक रही है। यह क्रम आज तक चला आ रहा है। व्याधि से संत्रस्त है और गुरुदेवश्री अपार कृपा कर उस व्याधि से इसी क्रम में महान मनस्वी, अध्यात्मयोगी वरिष्ठ उपाध्याय मुक्त होने का सही उपाय जप आदि बताते थे। गुरुदेवश्री ने अपने प्रवर १००८ श्री पुष्कर मुनि म. सा. आये जिनका मेवाड़ की शिष्य और शिष्याओं को शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए भूमि जो कि आनबान की रक्षा के लिये विश्वविख्यात है। ऐसी प्रेरणा दी और साहित्य निर्माण के लिए भी प्रेरणा दी, जिसके पवित्र धरती पर अवतरित हुये। वैसे मानव की महत्ता जन्म से फलस्वरूप ही आचार्य देवेन्द्र मुनिजी म. इतना विराट् साहित्य लिख } नहीं, उसकी पावन साधना से है, आत्मविकास से है। इस महापुरुष सके। अन्य संत भी इस दिशा में आगे बढ़ सके। ने वही कर दिखाया। बचपन में ऐसे संस्कारों का बीजारोपण हुआ मन तात्ताततस्तन्तु EORDD Jain Education International For Private & Personal use only O D www.janelibrary.org DAD A Geo-00066 Go306
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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