SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर भारत की राजधानी दिल्ली में हुए उपाध्यायश्री जी आचार्य सम्राट् श्री अमरसिंह जी म. की परम्परा के सन्त रत्न हैं। आचार्यश्री अमरसिंह जी म. हमारे तातेड़ परिवार के थे। उस परिवार के हम लोग हैं अतः सहज अनुराग होना स्वाभाविक था क्योंकि हम आचार्यश्री अमरसिंह जी म. के सातवीं पीढ़ी में हैं, तो उपाध्यायश्री जी भी उनकी सातवीं पीढ़ी में शिष्य हैं। दिल्ली वर्षावास में हमने बहुत ही सन्निकट रूप से आपको देखा। आपकी त्याग, वैराग्य और संयम साधना के प्रति जो जागरूकता देखी तो हमारा हृदय अनन्त आस्था से आपके चरणों में झुक गया। हमने देखा कि उपाध्यायश्री निरर्थक वार्तालाप करना पसन्द नहीं करते थे। जब भी उनके चरणों में पहुँचे तब उन्होंने ज्ञान-ध्यान के सिवाय कोई बात नहीं कही। उपाध्यायश्री को प्रश्नोत्तर करने का बहुत ही शौक था। वे बहुत ही सीधे-सादे शब्दों में आगम के गम्भीर रहस्य बताते थे उनकी आगमों पर अपार आस्था थी। उन्होंने ब्राह्मणकुल में जन्म लिया और गृहस्थाश्रम में वे गायत्री मन्त्र का जाप करते थे। पर जैन श्रमण बनने के बाद उनकी महान् आस्था नवकार महामन्त्र पर थी, और वे नियमित रूप से नवकार महामन्त्र का जाप करते थे। नवकार महामन्त्र की साधना के कारण उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई थी जिसके फलस्वरूप उनके मंगल पाठ को श्रवण कर सभी प्रकार की व्याधियों से लोग मुक्त हो जाते थे। मध्यान्ह में जब वे मंगलपाठ सुनाते थे तो हजारों लोगों की भीड़ एकत्रित होती थी हमने देखा चाँदनी चौक में और वीरनगर में हजारों लोग मंगल पाठ के समय दौड़ते हुए पहुँचते थे । गुरुदेवश्री के दर्शनार्थ समय-समय पर हम लोग पहुँचते रहे। अन्तिम समय में उन्होंने संथारा कर स्वर्ग का वरण किया। धन्य है उनकी साधना और आराधना को हमारी कोटि-कोटि उनके चरणों में भावभीनी वन्दना । विविध विशेषताएँ -धनपत बरड़िया (मदनगंज) सन् १९७३ का वर्षावास गुरुदेव का अजमेर में था। उस वर्षावास में अनेकों बार गुरुदेव के दर्शन हेतु हम पहुँचे। हमारी प्रार्थना को सम्मान देकर गुरुदेवश्री वर्षावास के पश्चात् मदनगंज पधारे। मदनगंज संघ गुरुदेवश्री से अपार प्रभावित हुआ । वर्षों तक हमारी प्रार्थना मदनगंज वर्षावास हेतु चलती रही, और हमारी प्रार्थना सफल हुई सन् १९८२ में । गुरुदेवश्री का वर्षावास मदनगंज में पूर्ण ऐतिहासिक रहा। उस वर्षावास में गुरुदेवश्री की पावन स्मृति को बनाये रखने हेतु " श्री वर्धमान पुष्कर जैन सेवा समिति" का निर्माण हुआ। उसमें चिकित्सालय और विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए बिल्डिंग बन गई और चिकित्सालय प्रारम्भ भी हो गया। गुरुदेवश्री की सेवा में जब भी हम पहुँचे उनकी असीम कृपा हमारे पर रही, हमने सदा ही उनको आल्हादित पाया। उनके भव्य Cain Education International १४५ और दिव्य चेहरे पर सदा ही आध्यात्मिक आलोक जगमगाता रहा है। विविध विशेषताएँ उनके जीवन में थीं। मेरी और मेरे परिवार की ओर से गुरुदेवश्री के चरणों में सादर श्रद्धाञ्जलि । भक्तों के भगवान 10 पोपटलाल तवोटा (पूना) पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. का वर्षावास सन् १९६८ घोडनदी में हुआ। हमारी प्रार्थना को सम्मान देकर गुरुदेवश्री हमारे खेत पर पधारे और श्री संघ की सेवा का हमें सौभाग्य मिला। सन् १९६८ का पूना (सादड़ीसदन) में वर्षावास था । उस वर्ष भी गुरुदेवश्री की सेवा करने का हमें सुयोग मिला। सन् १९७५ में गुरुदेव का वर्षावास रायचूर करने का था। वे अहमदाबाद का वर्षावास सम्पन्न कर रायचूर की ओर बढ़ने की पूर्ण भावना रखे हुए थे, मैं गुरुदेवश्री के चरणों में पहुँचा और पुरजोर शब्दों में प्रार्थना की कि यह वर्षावास सादड़ीसदन पूना को देना होगा। आप हमारी प्रार्थना को ठुकराकर आगे नहीं पधार सकेंगे। गुरुदेव का निन्यानवे प्रतिशत विचार रायचूर का था पर हमारी भक्ति ने रंग दिखाया और गुरुदेवश्री का वर्षावास सादड़ीसदन, पूना में हुआ। और उस वर्षावास में सेवा का लाभ हमें मिला। सन् १९९० में गुरुदेवश्री का वर्षावास पीपाड़ या गढ़सिवाना करने का था । हमने गुरुदेवश्री से प्रार्थना की कि गुरुदेवश्री आपका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है। भयंकर गर्मी है इसीलिए हमारी हार्दिक प्रार्थना है कि आप यह वर्षावास सादड़ी प्रदान करें। और हमारी प्रार्थना ने साकार रूप लिया। संवत्सरी के दूसरे दिन गुरुदेव श्री को हार्ट अटैक आ गया था पर हमारे और संघ के पुण्य प्रताप से गुरुदेवश्री पूर्ण स्वस्थ हो गये सादड़ी वर्षावास में भी गुरुदेवश्री की सेवा का हमें लाभ मिला। वस्तुतः गुरुदेव श्री भक्तों के भगवान थे। उनके चरणों में कोटि-कोटि वन्दन के साथ श्रद्धाञ्जलि | कितने महान थे गुरुदेव ! For Private & Personal Use Only -रमणलाल जयन्तीलाल पुनमिया (बसई) पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. का मेरे पर और मेरे परिवार पर असीम उपकार रहा है। गुरुदेव श्री हमारी प्रार्थना को सन्मान देकर चार बार वसई पधारे। उस समय मेरी बहन काफी संत्रस्त थी। गुरुदेवश्री के मंगलपाठ को श्रवण कर वह पूर्ण स्वस्थ हुई। इसी प्रकार मेरी पुत्री आशा और मेरा भाई जयन्ती भाई भी गुरुदेव श्री के मंगलपाठ को श्रवण कर पूर्ण स्वस्थ हो गये। जिस व्याधि का उपचार डाक्टर के पास भी नहीं था उसका उपचार गुरुदेव के पास था। 100 www.jalnelibrary.or
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy